विश्व में भारतीय योग का ध्वज महर्षि पतंजलि के कारण फहरा रहा है। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि विश्व योग दिवस पर यूपी के गोंडा जिले के कोंडर गांव में महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि का हाल बियाबान है। योगकर्ताओं द्वारा योग के प्रारम्भ या अंत में महर्षि पतंजलि का नाम नहीं लिया जाना, यह बताता है कि नई जनरेशन के दिलो-दिमाग से धीरे-धीरे उन्हें भुला दिया जाएगा। एक संगठन ”श्री पतंजलि जन्मभूमि न्यास योग” द्वारा महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिलाने के लिए क़रीब 2 दशक से संघर्ष किया जा रहा है। यह संस्था राज्य सरकार के साथ-साथ यूनेस्को को भी कई बार पत्र लिख कर उक्त मांग कर चुका है।
व्याकरण महाभाष्य में अपनी जन्मस्थली का ज़िक्र किया
न्यास योग के अध्यक्ष भगवदाचार्य का कहना है कि क़रीब 2200 साल पहले जन्मे महर्षि पतंजलि ने स्वयं व्याकरण महाभाष्य में अपनी जन्मस्थली का ज़िक्र किया है। पतंजलि ने स्वयं को बार-बार गोनार्दीय कहा है। प्राचीन अयोध्या तथा श्रावस्ती के बीच स्थित भू-भाग को गोनार्द क्षेत्र माना जाता है। तो दूसरी तरफ डा.भगवती लाल राजपुरोहित इसे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 12 किलोमीटर दूर स्थित गोनार्द (गोनिया) को जन्मस्थली मानते हैं। ईश्वर व महापुरुषों के जन्म को लेकर विवाद तो लोगों का शगल जैसा लगता है। पतंजलि की जन्मभूमि को संरक्षित करके इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया जाना चाहिए।
कोंडर गांव में योग शिविर का आयोजन नहीं
भगवदाचार्य ने यह भी कहा कि राजधानी लखनऊ से क़रीब 150 कि.मी. दूर स्थित पतंजलि की जन्मभूमि पर कोई आश्रम या धर्मशाला तक नहीं है। साफ पानी, बिजली, सुगम यातायात की सुविधाएं नहीं है। उनके अनुसार सबसे बड़ा योग शिविर इसी स्थान पर लगना चाहिए। जिला प्रशासन ने पतंजलि की जन्मस्थली के विकास के लिए अपर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया था, जानकारी के अनुसार इस समिति ने कोई सिफारिश अब तक नहीं की। भगवदाचार्य ने बताया कि योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा इस बार जिले की तहसीलों, ब्लाकों में योग दिवस का आयोजन किया जा रहा है। परंतु कोंडर गांव में योग शिविर का आयोजन नहीं किया जा रहा है।