ऐसा कवि जिसने लिखी अपनी दाढ़ी पर कविता
लाल किले पर सुनाई थी ‘क्रांति का बिगुल’
एक बार काका को लाल किले मे आयोजित कवि सम्मेलन में आमंत्रित किया गया और यहां पर कविता सुनाने को कहा गया। काका ठहरे हास्यरस के कवि और कविता सुनानी थी सत्तावन की क्रांति पर। अब वे क्या करते? जब कई प्रसिद्ध कवियों ने वीररस से भरी अपनी कविताएं मंच पर सुना दी तो काका का नाम पुकारा गया। काका ने मंच पर पहुंचकर ‘क्रांति का बिगुल’ कविता सुनाई। काका की इस कविता से सम्मेलन के संयोजक गोपालप्रसाद व्यास इतने प्रभावित हुए कि उठकर उन्हें गले लगा लिया और उनकी तारीफ की।
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