आपने अक्सर फांसी मिलने वाले अपराधी की अंतिम इच्छा के बारे में बातें सुनी होंगी लेकिन आज हम आपको अंधविश्वास और मान्यता के बीच झूलती एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। यह खबर तो दो-चार महीने पुरानी है लेकिन इतनी अजीब है कि हम आपको इसके बारे में बताने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं।
यह कहानी लंदन की 14 साल की एक लड़की की है। खबरों के मुताबिक यह लड़की एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है और माना जा रहा था कि इस बीमारी से उसकी मौत निश्चित है, लेकिन मरने के बाद वह अपनी एक आखिरी इच्छा पूरी करवाने की बात कहती है। यहां तक तो ठीक है कि वह अपनी आखिरी इच्छा पूरी करवाना चाहती है लेकिन उसकी जो ख्वाहिश है वह हैरान करने वाली है।
इस लड़की ने कहा है कि वह मरने के बाद फिर से जीना चाहती है और उसकी इच्छा पूरी करने के लिए अदालत ने मंजूरी भी दे दी थी। दरअसल इस लड़की ने कोर्ट से कहा था कि उसके शरीर को दफनाया न जाए, बल्कि उसे बर्फ की तरह जमा दिया जाए। इसके पीछे उसका मानना है कि जब एक दिन उसकी यह बीमारी खत्म हो जाएगी तब वह अपना सामान्य जीवन जी सकेगी।
अब इस लड़की ने हाल ही में दम तोड़ दिया है और अदालत के आदेश के बाद कुछ वैसा ही लड़की के लाश के साथ किया गया जिसकी उसने इच्छा जाहिर की थी। इसके पहले लंदन की कोर्ट में इस लड़की ने कहा था कि मै 14 साल की हूं और मैं मरना नहीं चाहती हूं लेकिन मैं जानती हूं कि मैं मरने वाली हूं। मैं जीना चाहती हूं और लंबे समय तक जीना चाहती हूं।
मुझे उम्मीद है कि शायद भविष्य में एक दिन डॉक्टर्स को मेरे कैंसर का इलाज मिल जाएगा। उस दिन वे मुझे जगा सकते हैं। मुझे ये मौका दे दीजिए यही मेरी आखिरी इच्छा है। अब लड़की की मां ने लड़की की आखिरी इच्छा के मुताबिक उसकी बॉडी को क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक में सुरक्षित रखवा दिया है।
क्रायोनिक्स है क्या
इस घटना के बारे में पढ़ने के बाद अब आपके मन में सवाल उठेगा कि यह आखिर है क्या तो आपको बता दें कि क्रायोनिक्स एक ऐसी तकनीक है जिसमें लाइलाज बीमारियों से मरने वाले लोगों के शव को डीप-फ्रीज कर दिया जाता है। इसमें उम्मीद होती है कि शायद भविष्य में जब उनकी बीमारी का इलाज खोज लिया जाएगा, तो वे फिर से जिंदा हो सकेंगे।
दावे में नहीं है कोई दम
हालांकि हकीकत यह है कि तमाम रिसर्च के बाद भी क्रायोनिक्स तकनीक की सफलता साबित नहीं हो सकी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग इस अंधविश्वास में हैं कि ये लाशें दोबारा जिंदा हो जाएगी। इस तकनीक में प्रिजर्वेशन की प्रक्रिया इंसान की मौत होने के 2 मिनट से लेकर अधिकतम 15 मिनट के भीतर शुरू कर दी जाती है। शरीर में खून के थक्के बनने के रोकने के लिए लाश के अंदर विशेष रसायन भरे जाते हैं।
इस तरह रखा जाता है शव
इसके बाद इन रसायनों को सूखी बर्फ में पैक किया जाता है। जमाने वाले तापमान से बस थोड़े अधिक तापमान पर शरीर को रखा जाता है। अंगों को सुरक्षित रखने के लिए भी रसायनों का इस्तेमाल होता है। रसायनों के कारण अंगों के अंदर क्रिस्टल नहीं बन पाते।
फिर मृतक के शरीर को -130 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। इसके बाद शव को एक कंटेनर में रखकर लिक्विड नाइट्रोजन के टैंक में भर दिया जाता है। इसके बाद फिर -196 डिग्री सेल्सियस पर शव को संरक्षित कर दिया जाता है। इस तकनीक का पहला प्रयोग 1967 में पहली बार किया गया था।