कश्मीर में स्कूली बच्ची की चीख को समझें नेता

मीडिया में एक तस्वीर आयी। एक स्कूल जाने वाली बच्ची रो रही है। घाटी के ये हालात चिंतनीय है। हमारी हर नीति आतंक के समक्ष घुटने टेक रही है। नेताओं को गंभीर होना होगा। ISI चाल चल रही है। हम समझ कर ना समझ बने हुए हैं। 28 मार्च का वाकया याद होगा। उस दिन बडग़ाम में सुरक्षा बल आतंकियों की गोलियों का सामना कर रहे थे। सैंकड़ों कश्मीरी युवाओं ने सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंका था। 30 सुरक्षाकर्मी जख्मी हो गए थे।
इसमें तीन पत्थरबाजों की मौत हुई थी। आक्रोश फैल गया था। बंदी बुला दी गयी थी। सबजार की मौत के बाद भी हालत बिगड़े हैं। आप जरा अंदाजा लगाईए । एक तरफ आतंकियों की गोलियां दूसरी तरफ पत्थर। सुरक्षा जवान किस तरह से मुकाबला करें? सुरक्षाकर्मियों की कोई सुध नहीं ले रहा है। जनता अपने रखवाले पर ही पत्थर बरसा रही हैं। सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर में हालात कैसे सुधरेंगे?
राजनीतिक सत्ता लाचार नजर आती है। लगता है घाटी पर राजनेताओं का नियंत्रण नहीं है। घाटी में पाक परस्त लोग असरदार हो गए हैं। खुले आम पाकिस्तान से आए आतंकियों का समर्थन हो रहा है। समझ नहीं आता कि घाटी के मुसलमान क्या चाहते हैं ? आतंकवादियों का साथ क्यों दे रहे हैं? पाकिस्तान खुद त्रस्त है। खुद ही आतंकवाद की खेती करता है और परिणाम भुगत रहा है। ISI भी पाकिस्तान की मस्जिदों को निशाना बना रहा है, दरगाहों में विस्फोट कर रहा है।
कश्मीर के युवाओं समझो। पाकिस्तान और आतंकियों का समर्थन बंद करो नहीं किया तो हालात और बिगड़ेंगे। आप वार्ता कीजिए। अपनी समस्या रखिए। हिंसा से क्या मिलेगा ? क्या कश्मीर में देशभक्त नहीं बचा है? यदि बचा है तो देश के समक्ष सबूत दीजिए। बातचीत की पहल कीजिए।
घाटी में हिंसा के परिणाम सामने है । घाटी जल रही है। बच्चे रो रहे हैं। हालात नाजुक हैं। आतंक रुला रहा है। सुरक्षा बल पीटे जा रहे हैं। सरकार को जल्दी कुछ विचार करना चाहिए, निर्णय लेना चाहिए। उस स्कूली बच्ची की चीख को नेताओं को समझना होगा। कश्मीर के भाव को समझना होगा।
कश्मीर के युवाओं आप आगे आइए। गलत राह को त्याग दीजिए। आतंक आपकी समस्या का समाधान नही है। सरकार आपका सहयोग करेगी। रखवालों पर पत्थर मारकर समाधान नहीं होगा। घाटी के लोगों मुल्क आपसे अदब की उम्मीद लगाए है। आइए अपनी बहन , भाई को चैन से स्कूल जाने दीजिए। बेहतर कल की शुरुआत कीजिए।
संजय मेहता
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