गोल्ड मेडल विनर का हुआ ऐसा हाल, अब मांग रही मदद
हर स्पोर्ट्स मैन का सपना होता है,कि वह कड़ी मेहनत कर देश के लिए मैडल जीत कर लाए। ऐसी ही सोच रखने वाली तीरंदाज गोहेला बोरो अपनी जिंदगी के लिए लड़ रही हैं, वे दुर्लभ स्व प्रतिरक्षित बीमारी से पीड़ित हैं और अपने इलाज के लिए पैसे जुटाने में भी अक्षम हैं। 2015 नेशनल गेम्स में गोहेला ने गोल्ड मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया था, कम उम्र में तीरंदाज में नाम कमाने वाली वे पहली महिला हैं।
तीरंदाजी में जीते 77 मेडल
गोहेला ने महज 12 साल की उम्र में 2008 में अपना करियर शुरु किया था। राष्ट्रीय,राज्य और जिला स्तर पर उन्होंने अब तक 77 मेडल जीते हैं। बीमारी से लड़ते हुए भी उन्हें उम्मीद हैं,कि वे एक बार फिर खड़ी होंगी और देश के लिए बड़ी प्रतियोगिता में मेडल जीत कर लाएगी। गोहेला नेशनल गेम्स के दौरान लगातार 8 घंटे मेहनत करती थी। वे जल्द अच्छी होकर फिर अपना हुनर लोगों को दिखाना चाहती हैं।
इलाज का खर्चा उठाने में असमर्थ
2016 के नेशनल गेम्स की तैयारियों के दौरान गोहेला को शरीर में बेहद दर्द महसूस होने लगा। चलने-फिरने की तकलीफ के साथ ये परेशानी शुरु हुई। परेशानी बढ़ने के बाद वे 5 महीनें बिस्तर पर ही रही। करीब 1 साल तक वे असम के कोकराझार स्थित अपने घर में ही बिना किसी ट्रीटमेंट के पड़ी रहीं। उनकी मां स्ट्रीट वेंडर है, और पिता मजदूर के तौर पर काम करते हैं। गोहेला बेहद निर्धन परिवार से हैं, इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ होने के कारण वे 1 साल तक बिस्तर पर पड़ी रही।
1 साल बाद मिली मदद
फेसबुक के जरिए डिस्कवरी क्लब को गोहेला की बीमारी के बारे में पता चला, क्लब ने असम सरकार को सूचित किया। इसके बाद उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में एडमिट कराया गया,लेकिन उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट की जरुरत थी। फंड एकत्रित होते ही 8 अप्रैल को दिल्ली
एम्स अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। फिलहाल गोहेला का इलाज जारी है।
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