स्कर्ट बताती थी देश की हालत, छोटी स्कर्ट से ये अंदाज़ा लगाते थे एक्सपर्ट
दुनिया की तरक्की को मापने के लिए भी लोग न जाने कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते हैं। कोई नेशनल इनकम से देश की तरक्की देखता है तो कोई देश को प्राप्त होने वाले टैक्स से देश की तरक्की को देखता है तो कोई वहां हो रहे डेवलपमेंट को देखकर लेकिन ये जो तरीका हम आपको बताने वाले हैं ना ये कुछ अजीब ही है।
ज़्यादा नहीं कुछ सालों पहले की बात है जब देश की तरक्की मापने के लिए ये तरीका अपनाया जाता था। इस तरीके के मुताबिक लड़की की स्कर्ट और पुरूषों के अंडरवियर के आधार पर ये तय होता था कि देश कितनी तरक्की कर रहा है। इसका नाम हेमलाइन इंडेक्टस यानि स्कर्ट इंडेक्स था, जिसमें स्कर्ट के आधार पर तय किया जाता था कि देश की इकोनॉमी कैसी है।
इस इंडेक्स के मुताबिक जिस देश में लड़कियों की स्कर्ट छोटी होती है, वहां की इकोनॉमी उतनी ही मजबूत होती है। लंबी स्कर्ट वाले देश के हालात आर्थिक रूप से अच्छे नहीं होते। हालांकि वैश्विक स्तर पर इस थ्योरी को अर्थशास्त्रियों ने नहीं माना। लेकिन 1926 में अमेरिका के अर्थशास्त्री जॉर्ज टेलर इसी को मानते थे। उस वक्त की लड़कियों की स्कर्ट से ही देश के पास कितना पैसा है ये लगाया जाता था।
क्या है हेमलाइन इंडेक्स
जार्ज टेलर की थ्योरी के मुताबिक, यह एक प्रकार से फ्रॉक एक्सचेंज है जहां स्कर्ट की लंबाई का इस्तेमाल देश की इकोनॉमी के सूचक के रूप में माना जाता है। इसका मतलब यह है कि गिरते बाजार के साथ छोटी स्कर्ट का चलन भी घट जाता है। इसमें कहा गया कि इकोनॉमी की हालत अच्छी होने पर महिलाएं छोटी स्कर्ट इसलिए पहनी हैं ताकि वह अपनी लग्जरी स्टॉकिंग्स दिखा सकें। इसके अलावा, छोटी स्कर्ट का चलन एक फैशन स्टेटस भी बन गया था।
मंदी के समय ऐसा फैशन काफी कमजोर हो जाता है यानि लोग आर्थिक दिक्कतों में इतने फंसे होते हैं कि उन्हें प्रोवेकेशन का वक्त ही नहीं मिल पाता। तो अमेरिका में यह माना जाता है कि बाजारों में अगर छोटी स्कर्ट की लड़कियां धीरे-धीरे कम नज़र आने लगे तो समझ जाएंगे कि संकट की शुरूआत हो गई है।
ऐसे चर्चा में आया स्कर्ट इंडेक्स
1929 में जब वॉल स्ट्रीट में भारी गिरावट आने लगी तो छोटी-छोटी स्कर्ट का चलन बाजार से गायब हो गया। मंदी के दौरान बड़ी संख्या में बेरोजगारी दर्ज की गई, जिससे स्कर्ट फैशन से बाहर हो गई, जो स्कर्ट भी रही थी उनकी लंबाई ज़्यादा थी। 1939 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इकोनॉमी हालत खराब हो गई थी। उस वक्त लेगिंग्स के फैबरिक की कमी होने से स्कर्ट की लंबाई घुटने तक पहुंच गई।
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