पाकिस्तान में हिंदू विवाह कानून को मिली मंजूरी, अब शादियों को मिलेगी कानूनी मान्यता
मानवाधिकारों का उल्लंघन इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ – नसरीन
विधेयक को मंजूर करते हुए समिति की अध्यक्ष एवं मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट की सीनेटर नसरीन जलील ने कहा था कि यह अनुचित है कि हम पाकिस्तान के हिन्दुओं के लिए एक पर्सनल लॉ नहीं बना पाए हैं. यह न सिर्फ इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि मानावाधिकारों का भी उल्लंघन है.
हिंदू सांसद रमेश कुमार वंकवानी को श्रेय
सत्ताधारी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के हिंदू सांसद रमेश कुमार वंकवानी देश में हिन्दू विवाह कानून के लिए तीन साल से लगातार काम कर रहे हैं. उन्होंने सांसदों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि ऐसे कानून जबरन धर्मांतरण को काम करेंगे. वंकवानी ने यह भी कहा कि हिन्दू विवाहिता के लिए यह साबित करना मुश्किल होता था कि वह शादीशुदा हैं, जो जबरन धर्मांतरण कराने में शामिल बदमाशों के लिए एक अहम औजार था. इस कानून से ‘शादी परठ’नामक दस्तावेज का मार्ग प्रशस्त होगा. यह दस्तावेज ‘निकाहनामा’ की तरह होगा जिस पर पंडित दस्तखत करेगा और यह प्रासंगिक सरकारी विभाग में पंजीकृत होगा.
भारत के कानून में ये हैं अंतर
पाकिस्तान में हिंदू विवाह अधिनियम वहां के हिंदू समुदाय पर लागू होगा, जबकि भारत में हिंदू मैरिज एक्ट हिंदुओं के अलावा जैन, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी लागू होता है। पाकिस्तानी कानून के मुताबिक शादी के 15 दिनों के भीतर इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। भारतीय कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है। इस बारे में राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।पाकिस्तान में शादी के लिए हिंदू जोड़े की न्यूनतम उम्र 18 साल रखी गई है। भारत में लड़के की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल निर्धारित है। पाकिस्तानी कानून के मुताबिक, अगर पति-पत्नी एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और साथ नहीं रहना चाहते, तो शादी को रद्द कर सकते हैं। भारतीय कानून में कम से कम दो साल अलग रहने की शर्त है।पाकिस्तान में हिंदू विधवा को पति की मृत्यु के छह महीने बाद फिर से शादी का अधिकार होगा। भारत में विधवा पुनर्विवाह के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है।
भारत तीन तलाक को कब करेगा बेन
जिस तीन तलाक के मुद्दे को बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दा बनाया था, अब उसी से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं ने प्रधानमंत्री से तीन तीन तलाक से निजात दिलाने की अपील की है। तीन तलाक के मुद्दे पर दारुल उलूम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रहीं आतिया साबरी ने प्रधानमंत्री से कहा है कि वो जल्दी से जल्दी इस सामाजिक बुराई से महिलाओं को बचाने की कवायद शुरू करें।
ज्ञात रहे कि 10 लाख से भी ज्यादा मुस्लिमों, खासतौर पर मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक के खिलाफ दायर की गई याचिका पर अपने हस्ताक्षर कर याचिका को अपना समर्थन दिया था। ट्रिपल तलाक को लेकर विवाद नया तो नहीं है, लेकिन पिछले कुछ समय से यह मुद्दा लगातार चर्चा में बना हुआ है। यूपी चुनाव के समय बीजेपी ने विपक्षी दलों- खासतौर पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखने की भी चुनौती दी थी।
कई मुस्लिम देशों में बेन है तीन तलाक
कुरान के अनुसार पहले तलाक का ऐलान करने के बाद आदमी को तीन महीने तक अपने फैसले पर विचार करना होता है। इसके बाद भी अगर वह अपने फैसले पर कायम रहे तो दो बार और तलाक बोलकर ही तलाक माना जाएगा। कई इस्लामिक देशों में यह प्रथा प्रतिबंधित है, लेकिन भारत में यह मान्य है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इस प्रथा के खिलाफ याचिका दायर की है। यह मंच आरएसएस से मान्यता प्राप्त इस्लामिक संगठन है। बताया जा रहा है कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली हालिया जीत के बाद इस याचिका को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। मालूम हो कि बीजेपी ने भी दावा किया है कि तीन तलाक मुद्दे पर उसके विरोध को देखते हुए भारी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने उसे वोट दिया।
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