ऑपरेशन पोलो : जब पटेल ने निज़ाम को घुटने टेकने पर किया मजबूर
- - Advertisement - -
आज़ादी से पहले भारत पर दो तरह का शासन हुआ करता था। एक तो वो जिस पर अंग्रेज सीधे शासन किया करते थे। दूसरा देश का वो हिस्सा था जिस पर 562 से भी ज्यादा रियासते थी जिस पर रजवाड़े राज किया करते थे। भारत के आज़ाद होने से पहले ये फैसला लिया गया कि इन रियासतों का भारत में विलय किया जाए। जिसमें मुख्य भूमिका निभाई सरदार वल्लभभाई पटेल ने। रियासतों को भारत में विलय करना कोई आसान काम नहीं था। इन रियासतों में कुछ राजा ऐसे भी थे जो नहीं चाहते थे कि उनका राज उनसे छिने और रियासतों का भारत में विलय हो।
6 मई 1947 को सरदार पटेल ने रियासतो और रजवाड़ों को भारत में विलय करने का मिशन शुरू किया। गांधीजी की सलाह पर उन्होंने उस समय के वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन को गृहमंत्रालय का मुख्य सचिव बना कर रियासतों से भारत में विलय के मुद्दे पर बातचीत शुरू की। उस समय सरदार पटेल ने ताकत का इस्तेमाल करने के बजाय कूटनीती और बातचीत का सहारा लिया था।
रियासतों के विलय के बदले सरदार पटेल ने रियासतों के वशंजों को प्रिवी पर्सेज के जरिए नियमित आर्थिक मदद का प्रस्ताव रखा। रियासतों से उन्होंने देशभक्ति की भावना से फैसला लेने को कहा। साथ में सामने 15 अगस्त 1947 तक भारत में शामिल होने की समय सीमा भी तय कर दी। इसके साथ ही इशारों-इशारों में ये भी साफ कर दिया कि वो अपने मकसद में ताकत का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेंगे। उस समय अधिकतर रियासतें भारत में विलय के लिए तैयार हो गई थी। लेकिन कुछ रियासतें उस समय विलय के विरूद्ध थी।
15 अगस्त 1947 को जब देश आज़ाद हुआ उस समय सिर्फ तीन रियासतें ऐसी थी जिनका भारत में विलय नहीं हो पाया था। ये थी जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर। उस समय इन तीनों रियासतों का विलय सिर्फ ताकत के दम पर नहीं हुआ बल्कि इसके लिए साम-दंड-भेद की नीति अपना कर इनका भारत में विलय किया गया। आज़ादी के बाद जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर का विलय तो भारत में हो गया था। लेकिन हैदराबाद का विलय भारत में नहीं हो पाया था।
उस समय हैदाराबाद का शासक निजाम हुआ करता था। हैदराबाद के भारत में विलय के लिए पहले तो सरदार पटेल ने बातचीत की लेकिन निजाम जब विलय के लिए तैयार नहीं हुआ तब सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने अपनी एक टुकड़ी हैदारबाद भेजी। भारतीय सेना के इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन पोलो’ कहा गया।
निजाम ने उस समय भारत को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर और भारतीय करेंसी पर रोक लगा दी थी। वह हैदराबाद में खुद की करेंसी चलाता था। निजाम ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रूपए भी दिए थे और कराची में उसने अपने एक अधिकारी को नियुक्त भी कर रखा था। निजाम के मुस्लिम देशों के साथ दोस्ताना संबंध थे और ज्यादातर मुस्लिम देश उसके सर्मथक थे। इसी बात के चलते हैदराबाद रेडियो ने यह भी घोषणा कर दी थी कि यदि भारत सरकार ने हैदराबाद के विरूद्ध युद्ध छेड़ा तो हजारो पाकिस्तानी सैनिक भारत की ओर मार्च कर देंगे। हैदाराबाद के विमान बॉम्बे, मद्रास, कलकत्ता और दिल्ली जैसे शहरों पर बम बरसा सकते है।
कई लेखकों का मानना है कि निजाम इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहता था। इस कारण आज भी संयुक्त राष्ट्र में ये बात होती है कि हैदाराबाद का भारत में विलय 1956 में आंध्र राज्य के साथ मिलाकर आंध्रप्रदेश बनाने के लिए किया गया था।
हैदाराबाद का भारत में विलय ताकत के दम पर करना काफी मुश्किल था क्योंकि हैदाराबाद का शासक मुस्लिम था यहां पर सांप्रदायिक दंगे भड़कने की आशंका थी। उस समय हैदराबाद में एमआईएम नामक एक संगठन था जिसका नेता कासिम रिजवी था। कासिम ने भारत को धमकी दी थी कि अगर भारतीय रियासत हैदराबाद आती है तो उसे डेड़ करोड़ हिन्दुओं की राख और हड्डी के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा। जब सैन्य कार्रवाई का फैसला लेना था तो भारत के नेता एकजुट नहीं थे। कुछ का मानना था कि वहां हिन्दुओं का कत्लेआम होगा और प्रतिक्रिया स्वरूप यहां मुस्लिमों को खतरा हो सकता है। कुछ नेता ये भी मानते थे कि पाकिस्तान हैदराबाद की मदद के लिए भारत पर हमला कर सकता है।
लेकिन निजाम से बातचीत के बाद जब भारत के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो सरदार पटेल ने हैदराबाद में सैनिक टुकड़ियां भेजने का आदेश दे दिया। भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर जनरल जे एन चौधरी कर रहे थे। भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम दिया था। यह ऑपरेशन लगभग 108 घंटे चला। पहले और दूसरे दिन भारतीय सेना को कुछ परेशानी हुई लेकिन फिर विरोधी सेना ने हार मान ली और 17 सितंबर की शाम को हैदराबाद की सेना ने अपने हथियार डाल दिए। 18 को मेजर जनरल चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने हैदराबाद शहर में प्रवेश किया। 19 सितंबर को रिज़वी गिरफ्तार कर लिया गया। इस अभियान के दौरान समूचे भारत में कहीं भी कोई साम्प्रदायिक घटना नहीं घटी।
- - Advertisement - -