17 अगस्तः बंटवारे की रेखा रेडक्लिफ और जीवनभर के ज़ख्म
15 अगस्त 1947 की वो रात जब देश आज़ाद हुआ था और दो भागों में बंट गया था। भारत अब दो नामों से पहचाना जाने लगा, भारत और पाकिस्तान। इस बंटवारे की कीमत एक देश ने नहीं बल्कि वहां रह रहे लाखों लोगों ने चुकाई थी। ये बंटवारा दो कौमों के नाम पर हुआ था, हिंदू और मुसलमान। इस बंटवारे के बाद बहुत से ‘हिंदू’ पाकिस्तान से भारत आ गए और बहुत से ‘मुसलमान’ भारत से पाकिस्तान चले गए। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। दोनो देशों ने इस बंटवारे की कीमत एक कत्लेआम के साथ चुकाई। कितने ही लोगों के परिवार बिछड़ गए। लाखों जाने चली गईं। सच कहा जाए तो भारत और पाकिस्तान का ये बंटवारा भारत के दिल पर ज़ख्म जैसा है जो कभी भरा नही जा सकता।
इस बंटवारे के पीछे की हकीकत कई लेखकां और राजनेताओं ने अपनी बातो और पुस्तकों में बताने की कोशिश की। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में मुख्य भूमिका निभाने वाली ‘रेडक्लिफ रेखा’ को यहां पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 17 अगस्त 1947 को इस रेखा का प्रकाशन हुआ था और भारत और पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए। इस रेखा और बंटवारे के चलते ही लोग अपना सबकुछ छोड़कर सीमापार आए। आइए आपको बताते है कि भारत और पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटने वाली इस काल्पनिक ‘रेडक्लिफ रेखा’ को कैसे और किसने बनाया था।
हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत का 15 अगस्त को है। इसका मतलब कि पाकिस्तान भारत से एक दिन पहले आज़ाद हुआ था। आपको बता दें कि आज़ादी के दो दिन बाद यानी 17 अगस्त को भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था। यही वो दिन था जब एक देश, दो हिस्सों में बंट गया था। भारत और पाक को दो हिस्सों में बांटने का काम किया एक काल्पनिक रेखा ‘रेडक्लिफ रेखा’ ने। इस रेखा को बनाने वाले व्यक्ति ने कभी भारत को देखा तक नहीं था। वह कभी भारत नहीं आया था।
आज से 70 साल पहले जब देश का बंटवारा हुआ तब कभी भारत में कदम न रखने वाले ब्रिटिश कानूनविद ‘सिरिल रेडक्लिफ’ ने इस रेखा को बनाया था। इस रेखा को बनाने में काफी विवाद हुआ और काफी सवाल इतिहास के पन्नों में ही दबे रह गए। कोई नहीं जानता कि रेडक्लिफ ने इस बंटवारे में किस तरीके से भारत और पाकिस्तान को अलग किया था। रेडक्लिफ की नक्शे पर बनाई इस काल्पनिक रेखा ने एक शरीर को दो हिस्सों में बांटने जैसा काम कर दिया था जो एक दूसरे के बिना नहीं चल सकता था।
इस बंटवारे को लेकर कई इंट्रेस्टिंग बातें भी हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करती हैं कि दो देशों का बंटवारा आखिर इतनी आसानी से कैसे कर दिया गया।
-ब्रिटिश कानूनविद सिरिल रेडक्लिफ जो कभी भारत नहीं आए, उन्होनें भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की रेखा बनाई जिसे ‘रेडक्लिफ रेखा’ कहा गया।
-भारत और पाक के बंटवारे की रेखा खींचने की जिम्मेदारी उन्हें 8 जुलाई 1947 को दी गई थी। उनके पास काफी कम समय था। इसे पूरा करने के लिए।
-रेडक्लिफ को भारत के भूगोल की काफी जानकारी थी।
-ब्रिटिश सरकार ने उन्हे सिर्फ 5 हफ्तों में इस नक्शे पर इस रेखा को बनाने के लिए कहा था।
-इस नक्शे का काम उन्होनें 9 और 12 अगस्त को ही पूरा कर लिया था।
जानकारी के अनुसार रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान का बंटवारा महज कुछ नक्शों, जाति, धर्मो के आधार पर किया था। हालांकि उन्हें इसे बनाने मे काफी परेशानी आई क्योंकि भारत एक विविधता वाला देश था। ऐसे में उन्हें बहुत सोच-समझकर इस बंटवारे को करना था। लेकिन बहुत मशक्कत के बाद बनी इस रेखा ने भारत के दिल पर बंटवारे का एक गहरा ज़ख्म छोड़ दिया।
इस बंटवारे के बाद लोगों के दिमाग में कई सवाल रह गए जिनके जवाब वे रेडक्लिफ से जानना चाहते थे। इसी बात को लेकर कुलदीप नैयर ने उनका इंटरव्यू भी लिया था और उनसे सवाल भी किए थे। रेडक्लिफ़ ने कुलदीप नय्यर से बात करते हुए कहा था, “मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए। उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया। न ही ज़िलों के नक्शे थे मेरे पास. मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है। लेकिन मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर ही नहीं था। मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया। अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी। पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें ख़ुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया।”
बंटवारे के कारण लाखों लोगों की जान गई, क्या रेडक्लिफ़ को इसे लेकर अफ़सोस था? कुलदीप नय्यर ने बताया कि इस बारे में रेडक्लिफ़ से कोई सीधी बात नहीं हुई लेकिन उन्हें बातचीत से ऐसा लगा कि रेडक्लिफ़ संवेदनशील इंसान थे और उन्हें काफ़ी ग्लानि महसूस हुई।
हालांकि अब बंटवारे को 70 साल हो चुके है और इसे बनाने वाले सिरिल रेडक्लिफ भी अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन इन दोनो देशों के बीच आज भी इसको लेकर काफी विवाद हैं और दूरियां है जो शायद ही कभी पूरी हो सके।
Courtesy-BBC