जानिये कैसे हो सकते हैं फेसबुक-व्हाट्सएप के कॉल तथा मैसेज प्रभावित
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केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वो जल्द ही व्हाट्सएप, फेसबुक, स्काइप, वीचैट और गूगल टॉक जैसे ओवर-द-टॉप (OTT) सर्विसेस के सभी टेलीकॉम ऑपरेटर्स के लिए एक रेग्युलेटरी सिस्टम तैयार करेगी। आपके नॉलेज के लिए बता दें कि OTT सर्विस का मतलब यह है कि इंटरनेट के जरिए ऑडियो, विडियो और अन्य मीडिया कन्टेंट ग्राहकों को उपलब्ध तो कराया जाए लेकिन इसके लिए कई अन्य सिस्टम मसलन-केबल, सैटलाइट, टेलिविजन आदि की जरूरत न पड़े।
टेलिकॉम विभाग का तर्क है कि OTT सर्विस ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए वे टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स के नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं, इसके अलावा ये ऐप आधारित प्रोडक्ट्स की पेशकश करते हैं और साथ ही मैसेजिंग और वाइस कॉल सुविधाएं मुहैया कराकर प्रतिस्पर्धा पैदा करते हैं। हालांकि ये किसी भी रेग्युलेटरी सिस्टम के अधीन नहीं होते हैं, यानि कि इन पर किसी का नियंत्रण नहीं होता।
आपको बता दें कि इससे पहले वॉट्सऐप ने एक याचिका के विरोध में अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था। कर्मण्य सिंह सरीन ने व्हाट्सऐप की प्राईवेसी पॉलिसी पर सवाल उठाते हुए कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। व्हाट्सएप ने जवाब दिया था कि OTT सर्विसेस इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के तहत कुछ हद तक नियंत्रित होती हैं। लेकिन इन पर टेलिकॉम प्रोवाइडर्स की तरह वाइस कॉल और मैसेज की सेवाएं प्रदान करने पर नियंत्रण नहीं होता।
OTT सर्विसेज की प्राइवेसी पॉलिसी पर याचिकाकर्ता की ओर से कड़े सवाल उठाने और बाद में केंद्र सरकार के भी इससे सहमत होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 5 जजों की संवैधानिक पीठ को सौंपने का आदेश दिया है। इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को की जाएगी। OTT सर्विस प्रोवाइडर्स इस मामले का विरोध कर रहे हैं।
वॉट्सऐप और अन्य ओटीटी सर्विसेज की ओर से कोर्ट में पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और केके वेणुगोपाल ने कहा कि पूरे विवाद में प्राइवेसी का कोई मुद्दा ही नहीं है जैसा कि याचिकाकर्ता का दावा है। वकीलों के मुताबिक, यह यूजर और OTT सर्विस प्रोवाइडर्स के बीच कॉन्ट्रैक्ट का मामला है।
इस पर याचिकाकर्ता की वकील माधवी दीवान ने कहा कि वॉट्सऐप पर प्राइवेट मेसेजेस के मामले में प्राइवेसी की कमी निजता का हनन है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह मूल रूप से संविधान के आर्टिकल 21 के तहत राइट टु लाइफ से जुड़ा हुआ मामला है। इसके अलावा, दो लोगों के बीच बातचीत के दौरान गोपनीयता की कमी आर्टिकल (19)(a) के तहत मिलने वाली फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का हनन भी है।
सिब्बल ने इस पर यह दलील दी कि प्राइवेसी के उल्लंघन का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि वॉट्सऐप पर एंड टु एंड इनक्रिप्शन टेक्निक का इस्तेमाल होता है, ताकि कोई दूसरा इन मेसेजेस को न पढ़ सके।
आपको बता दें कि सितंबर 2016 में व्हाट्सऐप की नई पॉलिसी आई थी जिसके तहत वाट्सऐप के यूजर्स के डाटा का इस्तेमाल फेसबुक अपने व्यवसायिक फायदे के लिए कर सकता है।
इसके पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की पीठ ने यह मत दिया कि जब मामला व्यापक तरीके से जनसरोकार से जुड़ा हो तो वह एक संवैधानिक मुद्दा बन जाता है। वहीं, सिब्बल ने यह कहते हुए विरोध किया कि वह दिल्ली हाई कोर्ट में कामयाब हुए थे और इसे किसी संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जरूरत नहीं।
बता दें कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने कहा था कि फेसबुक-वॉट्सऐप पर डेटा सुरक्षित नहीं है, जो संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि वॉट्सऐप और फेसबुक को टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स की तरह देखना जाना चाहिए, जिन्हें ग्राहकों की जासूसी करने पर बंद किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि वॉट्सऐप और फेसबुक पर 15 करोड़ 70 लाख यूजर्स हैं, ऐसे में उन्हें उपलब्ध करवाई जाने वाली सर्विस को पब्लिक यूटिलिटी सर्विस के तौर पर देखा जाना चाहिए। अगर इसे एक बार पब्लिक यूटिलिटी सर्विस की श्रेणी में डाल दिया जाता है तो सरकार को इसमें आने वाले डेटा को प्रॉटेक्ट करना चाहिए।
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