जानिए कैसे बॉस है Facebook के CEO मार्क जुकरबर्ग
फेसबुक के सीईओ दुनियाभर में अपने एक यूनिक आइडिया की वजह से फेमस हुए। कॉलेज के दिनों में दोस्तों को जोड़ने के लिए बनाया गया फेसबुक आज दुनिया की सबसे बड़ी सोशल साइट बन गयी हैं। फेसबुक के बॉस यानी मार्क जुकरबर्ग किस तरह के बॉस है ये आपको हम बताने वाले है। फेसबुक से निकाले गए एक इम्प्लॉई ने फेसबुक की वर्किंग और वर्क कल्चर को लेकर कई खुलासे किए है। इम्प्लॉई का कहना है कि फेसबुक में स्टाफ से 20 घंटे तक काम करवाया जाता और लड़कियों के लिए ड्रेस कोड है, ताकि बाकी इम्प्लॉइज का ध्यान काम से न भटके। कंपनी से निकाले गए एडवरटाइजिंग मैनेजर ने अपनी बुक में ये बातें बताई हैं। उनके मुताबिक, फेसबुक में नौकरी करना नॉर्थ कोरिया में काम करने जैसा है।
इम्प्लॉई ने लिखी बुक
फॉर्मर एडवरटाइजिंग मैनेजर एनटोनियो ग्रेशिया मार्टिनेज को दो साल पहले कंपनी से निकाल दिया गया था। बुक ‘Chaos Monkeys: Obscene Fortune and Random Failure in Silicon Valley’ में उन्होंने लिखा है कि फेसबुक में कई तरह की पाबंदियां हैं, जिससे तानाशाही का अहसास होता है।
ये है फेसबुक का वर्किंग कल्चर
1. फेसबुक में जब कोई नया इम्प्लॉइ ज्वाइन होता है तो उसे ‘फेसवर्सरी’ कहा जाता है।
2. जब कोई इम्प्लॉई फेसबुक छोड़ता है तो उसे ‘डेथ’ कहा जाता है। उसका आईडी कार्ड तहस-नहस कर फोटो अपलोड कर दिया जाता है।
3. यहां पर इम्प्लॉइज पर नजर रखने के लिए खुफिया पुलिस तैनात है जिसे ‘द सेक’ कहा जाता हैं।
ऐसे बॉस है जुकरबर्ग
जुकरबर्ग बाहर की दुनिया के लिए भले ही कैसे भी हो पर वे अपने ऑफिस में काफी स्ट्रिक्ट हैं। हालांकि बुक में भी इन्हे तानाशाह की संज्ञा दी हैं। इस बुक में जुकरबर्ग को लेकर भी कई खुलासे किए गए है कि वे अपने ऑफिस में इम्प्लॉइ के साथ कैसा बिहेव करते है। तो जानते है कि जुकरबर्ग किस तरह के बॉस हैं…
1. जुकरबर्ग को चीजे सीक्रेट रखना पसंद है।
2. एक इम्प्लॉई ने जब नए लॉन्च होने वाले प्रोडक्ट की जानकारी लीक कर दी तो जुगरबर्ग ने उससे जुड़े हर वर्कर को गंदी लैंग्वेज में मेल किया। इसकी सब्जेक्ट लाइन थी ’प्लीज रिजाइन’।
3. एक बार जुकरबर्ग ने स्टाफ से उनके नए ऑफिस को पेंट करने के लिए कहा था। दो दिन बाद जब उन्होंने ऑफिस देखा तो भड़क गए, क्योंकि वहां गंदी ड्रॉइंग्स लगा दी गई थीं।
4. जब भी टारगेटेड एडवरटाइजिंग पर मीटिंग होती, तो जुकरबर्ग टेक्निकल डिटेल्स देखते ही नहीं हैं, क्योंकि उनमें पेशेंस नहीं हैं।
5. 2011 में जब गूगल प्लस लॉन्च हुआ था, तब जुकरबर्ग ने इसे ’टोटल वॉर’ कहा था।
6. गूगल प्लस जुकरबर्ग पर एक बम की तरह गिरा था और उसने पूरी कंपनी को लॉकडाउन कर दिया था।
7. लॉकडाउन का मतलब था कोई आदमी बिल्डिंग से बाहर नहीं निकल सकता।