भारत के पास दुश्मनों का विनाशक
नई दिल्ली। भारत और फ्रांस के बीच 9 साल से लंबित राफेल फाइटर जेट्स डील पर साइन कर दिया गया। फ्रांस के साथ 7.8 बिलियन यूरो यानि करीब 59 हजार करोड़ रुपये के इस सौदे के तहत भारत को 36 राफेल लड़ाकू विमान मिलेंगे। डिलिवरी 36 महीनों के अंदर शुरू होगी और 66 महीनों में ही सरे जेट्स भारत को मिल जाएंगे। भारत की तरफ से मनोहर पर्रिकर जबकि फ्रांस की तरफ से वहां के डिफ्रेंस मिनिस्टर जीन वेस ली ड्रायन ने इस पर साइन किए।
क्यों जरूरी राफेल
विशेषज्ञों के मुताबिक भारत रफेल इसलिए खरीद रहा है क्योंकि वो अंतरराष्ट्रीय सीमा पर देश की सुरक्षा को और चाक-चौबंद करना चाहता है। राफेल दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है। दरअसल, एयरफोर्स के पास अभी 44 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, लेकिन पुराने प्लेन फेज आउट होने से 34 स्क्वाड्रन ही बचे हैं। फाइटर्स प्लेन की सख्त जरूरत है। आखिरी बार वायुसेना को 1996 में रूस से सुखोई 30 एमकेआई मिले थे। पुराने हो चुके मिग-21 और मिग-27 विमान बेड़े से हटाए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि इस सौदे के लिए बातचीत 1999-200 में शुरू हुई थी। सौदे के तहत हजारों पन्नों के अनुबंध दस्तावेजों को अंतिम मंजूरी के लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति को भेजा जाएगा। करार के बाद राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति 36 महीने के भीतर यानी वर्ष 2019 में शुरू होने का अनुमान है। 36 विमान 66 महीने के भीतर भारत आ जाएंगे। सौदे के तहत विमान हथियार प्रणाली से लैस होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग डेढ़ साल पहले अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान 36 राफेल विमान खरीदने की घोषणा की थी। इस दौरान दोनों देशों ने गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील के लिए समझौता भी किया था। राफेल लड़ाकू विमानों को फ्रांस की डसाल्ट एविएशन कंपनी बनाती है।
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