भारत 2032 ओलंपिक्स की नीलामी में हिस्सा लेने की तैयारी कर रहा है और कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न सेक्टर्स के प्रभाव पर भी नजर बनाए हुए है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के अध्यक्ष एन रामचंद्रन ने पिछले महीने पत्रकारों से कहा था कि आईओए ने 2032 ओलंपिक्स और 2030 एशियाई खेलों की नीलामी में हिस्सा लेने के लिए सरकार से इजाजत मांगी है।
खेल मंत्रालय का यह कदम बताता है कि ये खराब आईडिया नहीं है, लेकिन वो नीलामी में शामिल होने वाले खर्चे और सबूतों पर ध्यान देगी कि इससे मेजबान देश को फायदा होता है या नहीं। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) 2025 में 2032 ओलंपिक्स के मेजबान की घोषणा करेगा। मगर इवेंट की नीलामी और उम्मीदवार की प्रक्रिया की शुरुआत 9 साल पहले शुरू हो जाती है। इससे सरकार को योजना बनाने के लिए कुछ और समय मिल जाएगा।
तो ये है मेजबानी करने की असली वजह-
2024 गेम्स के लिए हैम्बर्ग, रोम और बुडापेस्ट ने नीलामी में हिस्सा लेने की इच्छा प्रकट की थी, जिससे पेरिस और लॉस एंजिलिस ही प्रतिस्पर्धी के रूप में बचे थे। पेरिस मजबूत मेजबान बनकर उभरा, लेकिन आईओसी ने फैसला किया कि वो उस परंपरा को तोड़ेगा, जिसमें एक देश दो बार गेम्स की मेजबानी कर सकता है। इस तरह लॉस एंजिलिस को मेजबानी सौंपी गई। अब 1984 गेम्स की मेजबानी करने वाला लॉस एंजिलिस 2028 गेम्स की मेजबानी भी करेगा। ऐसे में भारत की स्थिति 15 साल बाद के ओलंपिक्स में हिस्सा लेने की मजबूत हुई है।
खेल मंत्रालय इससे अनजान नहीं है कि भारत खेल महाशक्ति नहीं है। एक सूत्र ने कहा, ‘किसी देश ने ओलंपिक्स की मेजबानी सिर्फ खेल कार्यक्रम को सोचकर नहीं की। जब टोक्यो ने 1964 की मेजबानी की, तब उनका मकसद विश्व युद्धों के बाद अपनी स्थिति सुधारने का था। 1948 में लंदन ने भी किसी खास उद्देश्य से मेजबानी की थी। हमें भी ऐसा कदम लेने के लिए अपनी योजनाओं पर ध्यान देना होगा साथ ही इन योजनाओं पर कैसे काम करना है इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।