जेएनयू की पढ़ाई छोड़कर बना गांव का मुखिया
दिल्ली के जेएनयू में पढ़ने वाले 30 साल के अमृत आनंद ने अपने करियर को ऐसी दिशा दी है जो शायद कोई भी युवा नहीं करना चाहेगा। अमृत ने जेएनयू में पढ़ने के बाद गांव का मुखिया बनने का सोचा हैं। उन्होने अपने करियर को गांव की सेवा में लगाने के लिए कदम आगे बढ़ाया है। अमृत आनंद जेएनयू में रिसर्च स्कॉलर थे
अमृत ने जर्मन लिटरेचर की पढ़ाई की हैं और हाल ही में उन्होने गांव के मुखिया के लिए अपना नॉमिनेशन भरा है। उनका मानना है कि एक मुखिया गांव में किसी भी काम को कर सकता है और गांव का तेजी से विकास कर सकता है। जब उन्होने ये बात अपने घरवालों को बताई तो उन्होने खूब विरोध किया और कहा कि इतना पढ़ाने के बाद गांव का मुखिया क्यो बनना चाहता है लोग क्या कहेंगे। पढ़ाई-लिखाई छोड़ गांव वापस आने की क्या जरूरत है. जब उन्होंने अपना प्रचार शुरू किया, लोगों ने ‘दिल्ली का बाबू’ बोल कर उनका मजाक उड़ाया। कहा, ‘जैसे आया है वैसे वापस लौट जाएगा।’ पसैन पंचायत से चुनाव लड़ते हुए, खजूरा गांव के अमृत ने कुल 23 लोगों की चुनाव में हराया। पसैन पंचायत क्षेत्र में कुल 17 गांव आते हैं।
अमृत ने बताई वजह
अमृत ने पढ़ाई छोड़कर गांव का मुखिया बनने के पीछे की वजह बताते हुए कहा है कि ये फैसला उनका खुद का है वे जब भी गांव आते थे तो सोचते थे कि एक मुखिया गांव में कितने बदलाव ला सकता हैं कई समस्याओं की जड़ों पर सीधे चोट कर सकता है। लोगों की शिकायतें आती हैं कि गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों के नाम की लिस्ट में बहुत गलतियां हैं। लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत घर नहीं मिलते। मैंने गांव वालों से दो चीजें कही हैं। एक, सिस्टम के अंदर घुसे दलालों को हटाएंगे। दूसरा, गांव में इतने टॉयलेट होंगे कि किसी को खुले में नहीं जाना पड़ेगा। हम ये प्रोपोजल रखेंगे कि टॉयलेट बनाने के काम को मनरेगा का हिस्सा बनाया जाए।
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