विवादो से घिरे जस्टिस कर्नल को सजा, किन्तु लापता
इन दिनों जस्टिस कर्णन के भारत से बाहर जाने की ख़बरें आ रही है। मीडिया में बताया जा रहा है कि उन्होंने अदालत की अवमानना की जिसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने की जेल की सजा दी है, इसी के चलते जस्टिस कर्णन देश छोड़कर चले गए। बताया जा रहा है कि अब वे सिर्फ राष्ट्रपति के बुलाने पर ही वापस आएंगे। ये मामला जरा उलझा हुआ है लेकिन हम आपको बताते हैं जस्टिस कर्णन का मामला आखिर है क्या?
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जस्टिस कर्णन न्यायधीश के तौर पर अपने कार्यकाल में विवादों में घिरे रहें। उन्होंने कई बार दलित होने के कारण भेदभाव होने की शिकायत कीं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक के कई जजों पर उन्होंने गंभीर आरोप लगाए। बात यहां तक बढ़ गई कि सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने की जेल की सजा दी है।
कौन हैं जस्टिस कर्णन
जस्टिस कर्णन कुड्डालोर जिल के एक गांव में मध्यमवर्गीय परिवार में 12 जून 1955 को जन्में थे। उनके पिता स्कूल के हेडमास्टर थे, उनके परिवार में कुल आठ बच्चे थे, सभी बच्चों की शिक्षा इनके पिता ने काफी अच्छी तरह कराई थी। जस्टिस कर्णन के दो भाई हैं, एक भाई वकील हैं तथा दूसरा तमिलनाडु के विशेष सुरक्षा फोर्स में शामिल हैं।
ऐसे बने जस्टिस
कर्णन ने चेन्नई के न्यू कॉलेज से बीएससी की डिग्री ली, इसके बाद मद्रास लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने मेट्रो वॉटर जैसी सरकारी एजेंसियों में सलाहकार के तौर पर काम किया। कर्णन कई मामलों में सरकारी वकील बनकर भी पेश हुए। साल 2009 में वे जस्टिस ए. के. गांगुली की सिफारिश पर मद्रास हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए।
जज बनते ही खड़ा किया विवाद
जस्टिस कर्णन के अपने साथी न्यायधीशों के साथ शुरू से ही विवाद रहे हैं। साल 2011 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को उन्होंने एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘‘दलित होने के कारण उनके साथ भेदभाव हो रहा है और उन्हें नीचा दिखाया जा रहा है।’’ उन्होंने अपने चैंबर में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर मद्रास हाईकोर्ट के 4-5 न्यायधीशों पर भेदभाव करने का आरोप लगाया था।
लिव इन रिलेशन को लेकर दी थी विवादित टिप्पणी
जस्टिस कर्णन 2013 में फिर से सुर्खियों में आए थे। इस बार उन्होंने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर टिप्पणी दी थी। उन्होंने कहा था कि ‘‘दो व्यस्कों के बीच अगर शारीरिक संबंध हो और फिर बच्चे का जन्म हो तो उन्हें पति-पत्नि के रूप में देखा जाना चाहिए।” उनकी इस टिप्पणी पर पूरे भारत में मजाक बनाया गया था जिसके बाद कर्णन ने आदेश भी दिया था कि उनकी टिप्पणी का आदेश न बनाया जाए।
साल 2014 में उन्होंने एक और धमाकेदार विवाद खड़ा किया था। उस समय जब दो न्यायधीशों सिविल जजों की नियुक्ति के मामले देख रहे थे, वो अदालत में घुसे ओर कहा कि सिविल जजों के नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। उन्होंने कहा था कि वो इस मामले में हलफनामा भी दायर करेंगे।
चीफ जस्टिस पर लगाए आरोप
जस्टिस कर्णन के इस रवैये से वहां के न्यायधीश काफी परेशान थे। साल 2014 में जब संजय सिंह किशन कॉल मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश 20 जजों ने सुप्रीम कोर्ट में उनके तबादले की अपील का खत भेज दिया था लेकिन ज़्यादा कुछ हुआ नहीं। साल 2015 में जस्टिस कर्णन ने फिर एक नया विवाद खड़ा किया और अपने एक साथी जज पर अपनी एक महिला सहायक से बदतमीजी का आरोप लगाया। जस्टिस कर्णन के आरोपों से मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस किशन कौल भी नहीं बच सके। उन्होंने जस्टिस किशन कौल पर आरोप लगाए कि वो दलित हैं इसलिए उन्हें मामूली केस दिए जा रहे हैं।
तबादले के नोटिस पर लगाई रोक
जस्टिस कर्णन का हमेशा आरोप रहता था कि उन्हें सिर्फ तलाक, गुजारा भत्ता या फिर मुआवजे के केस ही दिए जा रहे हैं। कोई महत्वपूर्ण केस उनके हिस्से में नहीं आया है। अन्य जस्टिसों की अपील पर आखिर जस्टिस कर्णन के तबादले का समय आ ही गया। साल 2016 में कर्णन का तबादला कलकत्ता हाईकोर्ट में कर दिया गया तो उन्होंने खुद ही इस नोटिस पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट के जजों पर किया केस
इसके बाद जस्टिस कर्णन ने अपने चीफ जस्टिस को नोटिस जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कर्णन के तबादल पर रोक को खारिज कर दिया। जिसके बाद कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के उन जजों के खिलाफ ही केस दर्ज करवा दिया। कर्णन की इस हरकत से सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि कर्णन को कोई काम न दिया जाए।
इस फैसले के बाद कर्णन ने माफी मांगी और कलकत्ता हाईकोर्ट जाने को तैयार हुए। कर्णन ने यहीं पर सांस नहीं ली कलकत्ता हाईकोर्ट जाने के बाद उन्होंने 3 जनवरी 2017 को पीएम मोदी को खुला खत लिखा जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाईकोर्ट के 20 जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए।
कर्णन ने जिन जजो पर आरोप लगाए थे उनमें से अधिकतर रिटायर हो चुके थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अदालत की अवमानना मानते हुए 13 फरवरी को कर्णन को पेश होने के आदेश दिए तो कर्णन ने कहा कि उनके खिलाफ सिर्फ ससंद ही एक्शन ले सकती हैं। जब वो अदालत में पेश नहीं हुए तो उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया।
इस वारंट को भी कर्णन ने नकार दिया और सीबीआई और संसदीय सचिवों को इस मामले की जांच के आदेश दिए। 13 अप्रैल को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को 28 अप्रैल को उनके सामने पेश होने के आदेश दिए। इसके बाद सात जजों की एक बेंच ने कर्णन की मानसिक जांच करने का आदेश दे दिया।
इस पर कर्णन ने कहा कि उनकी मानसिक स्थिति बिलकुल ठीक है। जस्टिस कर्णन ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के सात जजों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया और चीफ जस्टिस समेत अन्य जजों को पांच साल की सजा सुना दी। लेकिन इस लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ही सर्वोपरी रहा और सारा मामला सुप्रीम कोर्ट के हाथ चला गया और सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 6 महीने की सजा सुनाई गई।
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