जानिए इलेक्शन के दौरान ही क्यों लागू होती है आचार संहिता
कुछ ही दिनों बाद यूपी सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का आगाज़ होना है। इसीलिए इन राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू की गई है। वैसे इस बात की जानकारी तो आपको होगी ही। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आचार संहिता चुनाव के दौरान ही क्यों लागू होती ? इसे लागू करने से क्या होता है? यह कब लागू होती है ? राजनीतिक पार्टियों के अलावा क्या इनका आम जनता पर भी असर पड़ता है? चलिए आपको इन सारे सवालों के जवाब देते हैं। लेकिन उससे पहले आपको बताते हैं कि आचार संहिता क्या होती है?
क्या होती है आचार संहिता?
निष्पक्ष और पारदर्शी तौर पर चुनाव हो सके इसीलिए चुनाव आयोग कुछ महत्वपूर्ण निर्देश जारी करता है इसे ही आदर्श आचार संहिता( आचार संहिता/मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट) कहा जाता है। ये ऐसे नियम होते हैं जिनका पालन राजनीतिक पार्टियों और उसके उम्मीदवारों को अनिवार्य तौर पर करना पड़ता है। यदि कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता है तो चुनाव आयोग उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है। यहां तक की उसे चुनाव लड़ने से रोक सकता है। उम्मीदवार के ख़िलाफ़ एफआईआर तक दर्ज हो सकती है और दोषी पाए जाने पर उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।
वैसे ये नियम राजनीतिक पार्टी के साथ बातचीत और सहमति के साथ ही बनाए गए हैं। चुनाव आयोग ने आचार संहिता को हिस्सों में बांट रखा है। जैसे- साधारण आचरण, मीटिंग और जुलूस के लिए जरूरी बातें, सत्ता पर काबिज पार्टी औऱ मतदान के दिन का आचरण। यानी कि हर मौके के लिए अलग-अलग कायदे कानून हैं।
यहां पर हमने चुनाव आयोग (भारतीय निर्वाचन आयोग) शब्द का जिक्र किया तो आपके लिए यह भी जानना ज़रूरी है कि चुनाव आयोग क्या होता है ।
हमारे संविधान के भाग 15 के अनुच्छेद-324 से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिया गया है। जिसमें चुनाव आयोग के बारे में ज़रूरी बातें कहीं गई हैं।
भारतीय संविधान के मुताबिक, चुनाव आयोग एक ऐसी स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है और इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी। हालांकि पहले ये आयोग एक सदस्यीय आयोग था, लेकिन अक्टूबर 1993 में इसे तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया। निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों से किया जाता है, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
क्या कहते हैं आचार संहिता के नियम?
आचार संहिता के सामान्य नियमों पर अगर हम नज़र डाले तो यह राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ आम जनता पर भी काफ़ी हद तक लागू होते हैं। बहरहाल पहले हम राजनीतिक पार्टियों पर लागू होने वाले नियमों के बारे में बात करेंगे।
-आचार संहिता लागू होने के बाद कोई भी राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी ऐसा कोई काम नहीं कर सकता है जिससे किसी समुदाय के बीच मतभेद बढ़े।
-कोई भी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार किसी दूसरी पार्टी या उम्मीदवार पर निजी हमले नहीं कर सकती है। हालांकि उनकी नीतियों की आलोचना हो सकती है।
-कोई भी पार्टी वोट पाने के लिए किसी भी स्थिति में जाति या धर्म आधारित अपील नहीं कर सकती है। इसके अलावा मस्जिद, चर्च, मंदिर या दूसरे धार्मिक स्थल का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के मंच के तौर पर नहीं किया जा सकता है।
-मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल वोटरों डरा नहीं सकते हैं। इसके अलावा उन्हें किसी भी प्रकार की रिश्वत नहीं दे सकते हैं।
-जब भी किसी राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी को कोई मीटिंग करनी होगी तो उसे स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी देनी होगी और उन्हें प्रस्तावित मीटिंग का टाइम और जगह बताना होगा। हालांकि वोटिंग के 48 घंटे पहले कोई भी राजनीतिक पार्टी पब्लिक मीटिंग नहीं कर सकती है।
-प्रत्याशी या राजनीतिक पार्टी किसी निजी व्यक्ति की ज़मीन, बिल्डिंग, कंपाउंड वॉल का इस्तेमाल बिना इजाजत के नहीं कर सकते।
-मतदान केंद्र पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करा सकते है।
-राजनीतिक पार्टियों को यह सुनिश्चित करना है कि उनके कार्यकर्ता दूसरी राजनीतिक पार्टियों की रैली में कहीं कोई बाधा या रुकावट नहीं डाले।
-पार्टी कार्यकर्ता और समर्थकों के लिए यह ज़रूरी है कि दूसरी राजनीतिक पार्टी की मीटिंग के दौरान गड़बड़ी पैदा नहीं करें।
-सरकारी बंगले का इस्तेमाल चुनाव मुहिम के दौरान नहीं किया जा सकता।
-इसके अलावा प्रचार के लिए सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं हो सकता है।
-चुनाव की घोषणा हो जाने से परिणामों की घोषणा तक सभाओं और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह 6 से रात 11 बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह 6 से रात 10 बजे तक इनके उपयोग की अनुमति होगी।
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