जानिए पिता पर क्यों भारी पड़ रहे हैं अखिलेश
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वर्ष 1990 में आई फ़िल्म ‘बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी’ जैसा सीन पिछले छह महीनों से समाजवादी पार्टी में देखने को मिल रहा है। जिस पिता ने बेटे को पॉलिटिक्स में एंट्री दिलाई वहीं बेटा उनसे दस कदम आगे चलता दिखा। इस बात का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी से निकाले जाने के बाद महज 24 घंटे से भी कम वक्त में अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव को मनाने में कामयाब हो गए। इसके साथ ही उन्होंने यूपी में अपनी कुर्सी भी बचा ली। अखिलेश के बारे में एक बात यह कही जाती है कि वह बचपन से भले ही शर्मिले स्वभाव के हैं लेकिन उनका दिमाग काफ़ी तेज है।
बता दें कि अखिलेश ने साल 2000 में पहली बार राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ा था। अखिलेश ने न केवल यह चुनाव लड़ा बल्कि जीत भी दर्ज की। जिस सीट पर अखिलेश ने चुनाव लड़ा था वह उनके पिता मुलायम सिंह यादव की ही थी।
इस जीत ने मुलायम को काफ़ी खुशी दी थी। एक पिता के तौर पर मुलायम के लिए यह गर्व की बात थी कि उनके बेटे का राजनीति में प्रवेश हुआ है। लेकिन एक नेता के तौर पर उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि एक दिन उन्ही का बेटा उनसे इतना आगे निकल जाएगा।
साल 2012 में अखिलेश एक युवा नेता के तौर पर उभर कर सामने आएं। 38 वर्ष के अखिलेश उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सीएम बनने से पहले अखिलेश तीन बार सांसद भी बने।
लेकिन राजनीति से जुड़े जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही अखिलेश को अहसास होने लगा कि वह अपने फ़ैसले लेने में स्वतंत्र नहीं हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने महसूस किया की उन पर इतना ज्यादा दबाव है कि वह चाह कर भी खुद फै़सले नहीं ले सकते। पार्टी की छवि भी आम जनता के बीच कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी।
अखिलेश के सामने पहली चुनौती थी अपनी छवि साफ़ सुथरा रखना, जिसमें वक्त बे वक्त चाचा शिवपाल आड़े आते थे। आजम खान, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी जैसों को पार्टी में शामिल करने के ख़िलाफ़ हमेशा से अखिलेश ने आवाज उठाई है। इसके साथ ही अखिलेश को धीरे-धीरे यह भी समझ में आ गया कि पॉलिटिक्स में सारा खेल जनता के विश्वास का है। इसीलिए अखिलेश ने राज्य में कुछ ऐसी योजनाएं लाना शुरू किया जिससे वह जनता का विश्वास जीत सके।
अखिलेश का यह आइडिया काम आया और वह जनता का विश्वास जीतने में सफल हो गए। यूपी में उनकी पकड़ खासकर युवाओं में काफ़ी मजबूत हो गई। आज अखिलेश की इस छवि का ही यह कमाल है कि जनता के साथ ही सपा के आधे से ज्यादा सदस्य उनके साथ खड़े हुए हैं।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश जनता के बीच अपनी पॉजिटिव छवि कब तक बनाए रखते हैं।
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