Thursday, August 24th, 2017
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सुनिए, तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाली पहली महिला शायरा बानो की दर्दभरी दास्तां




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ट्रिपल तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक बताया है और इस पर छह महीने की रोक लगा दी है। कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं में खुशी की लहर है। इस फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को काफी राहत मिली है। लेकिन जिस महिला की ट्रिपल तलाक को लेकर की गई पहल की वजह से कोर्ट ने ये अहम फैसला सुनाया आज हम आपको उस महिला के बारे में बताने जा रहे हैं।

उत्तराखंड के कााशीपुर में रहने वाली शायरा बानो ने सबसे पहले मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह के प्रचलन को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। उनका ये संघर्ष एक साल पुराना है, लेकिन उनकी जिन्दगी की दांस्ता उससे भी ज्यादा दर्दभरी है। 36 साल की शायरा ने सोशलॉजी से एमए किया हुआ है। इतनी पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी उन्हें दहेज प्रथा का शिकार होना पड़ा। शादी के बाद अपने मायके जाने पर उन्हें इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था, कि उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूटने वाला है। उनके पति रिजवान अहमद ने उन्हें 15 अक्टूबर 2015 को उनके मायके में एक पत्र के जरिए अचानक तलाक दे दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि – उस समय तो मानो मेरे पैरों तले जमीन खिंसक गई। उन्होंने इस मामले के खिलाफ 23 फरवरी 2016 को कोर्ट में याचिका दायर की।

शायरा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके पति अहमद जो कि एक प्रॉपर्टी डीलर हैं, से उन्हें दो बच्चे हैं। इरफान 13 साल का है और मुस्कान 11 साल की है। उन्होंने बताया कि उनके पति ने जबरदस्ती दोनों बच्चों को अपने पास रखा है। लेकिन वे दोनों बच्चों के अपने पास रखना चाहती हैं।

साल 2002 में शादी के बाद उनके ससुराल वालों ने उन पर खूब जुल्म किए। यहां तक की उन्हें मारने की मंशा से घरवालों ने 6 बार उनका अबॉर्शन कराया। अबॉशर्न की पीड़ा से गुजरना एक महिला के लिए कितना मुश्किल है, समझा जा सकता है। जब उन्होंने इसकी शिकायत अपने पति से की, तो उल्टा उनके पति ने शायरा पर आरोप लगाया कि वह तो अक्सर अपने मायके में ही रहती है।

पुलिस को बताया कि घर से सारे कीमती गहने लेकर अपने मायके में रख आई है। उस दौरान उन्हें काफी फिजिकल और मेंटल पेन का शिकार होना पड़ा। शाहना ने बताया कि वो दिन बीत गया फिर मैंने तय किया कि मैं सिर्फ अपने हक के लिए नहीं बल्कि सभी मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लडूंगी । सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद वह बहुत खुश हैं। वह कहती हैं कि मेरी लड़ाई रंग लाई और अब बाकी सभी मुस्लिम महिलाओं को तलाक के इस खौफनाक दर्द से आजादी मिल जाएगी।

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