क्यों भागे बावरे माया के पीछे
शुभ दीपावली, एक महोत्सव। सुख, समृद्धि, धन, वैभव को पाने के लिए हम करते इस दिन महालक्ष्मी का पूजन, उनकी आराधना। ताकि हमारा और हमारे परिवार का सम्पूर्ण जीवन आनंद और खुशियों के संग बीते। सदियों से हम यह करते आ रहे हैं किंतु कभी हमने यह सोचा है धन तो आया, वैभव तो आया पर ना सुख आया और ना ही समृद्धि आई। आख़िर ऐसा क्यों? धन चाहा धन मिला, वैभव चाहा वैभव मिला किंतु उसके बाद भी रह गए हम खाली हाथ। सुख और समृद्धि कहां रह गई? खुशियों का वह मंजर दिखाई नहीं देता। आनंद के वो पल कहां हैं? ये सारे प्रश्न कल भी थे और आज भी ज़िंदा हैं।
धन बहुत कमाया, विज्ञान में हमने उन्नति बहुत की, साधनों का अम्बार लगा दिया, दुनिया इतनी सिमट गई कि कल तक जो हमें ख्वाब लगते थे वो आज हमारी मुट्ठी में हैं। हमारी पहुंच का सिलसिला सिर्फ़ इस धरती पर ही नहीं रुका, आसमां भी छू लिया हमने। आपस में हमें अब बातचीत करने के लिए लंबा इंतजार ही नहीं करना पड़ता, इस इन्टरनेट की दुनिया ने सेकंड में पहुंचा दिया। ऐसा बहुत कुछ कर लिया फिर भी वह ’किंतु’ आज भी ज़िंदा है, वह ’लालसा’ आज भी ज़िंदा है। सोने के हिरण की तरह वह हमारे आगे-आगे और हम उसके पीछे-पीछे। क्या कभी सोचा है ऐसा क्यों?
कारण साफ है, कहीं न कहीं कोई तो लोचा है। कुछ तो है जो हमारी समझ के बाहर है। कुछ तो ऐसा है जो हम पकड़ नहीं पा रहे हैं। हमारे तमाम प्रकार के गुरु फेल हो रहे हैं। धर्म गुरु कहते हैं धन के पीछे मत भागो, तो दूसरी ओर मैनेजमेंट गुरु कहते हैं धन को टारगेट करो, वही सक्सेस की कहानी है। अब कोई करे तो क्या करे, टोटल कन्फ्यूज़न। एक तरफ हमारे धर्म गुरु तो दूसरी ओर हमारे मैनेजमेंट गुरु और बीच में हम। निश्चित तौर पर कहीं न कहीं कुछ गलत तो है। हमें तो एक बात ही समझ आती है धन तो चाहिए उसके बगैर कोई काम नहीं होता, उसके बगैर कुछ हासिल नहीं होता, उसके बगैर सोसाइटी में कोई कीमत नहीं होती, कोई आनंद नहीं होता, कोई खुशियां नहीं आ सकती है। इसलिए धन तो चाहिए ही। बस हम उसको पाने की लालसा में कुछ भी कर जाते हैं, कोई भी कीमत चुका जाते हैं। यही ’कुछ भी’ शब्द में ही लोचा है। यहां आकर धन दो भाग में बंट गया, एक अच्छा धन तो दूसरा बुरा धन। अच्छा धन मतलब अच्छी नीयत और तरीके से कमाया गया धन और बुरा धन मतलब बुरी नीयत और तरीके से कमाया धन। निश्चित तौर पर बुरी नीयत से कमाया धन वैभव तो दिला सकता है, समाज में कुछ समय के लिए रुतबा तो दिला सकता है किंतु हमारे जीवन में सुख और समृद्धि नहीं ला सकता। यह ’माया’ है जिससे हमें धर्म गुरुओं ने दूर रहने के लिए कहा है। वहीं दूसरी ओर अच्छी नीयत से कमाया धन वैभव के साथ सुख और समृद्धि भी हमारे जीवन में लाता है। यही ’महालक्ष्मी’ का रूप है, जिसकी आराधना हम करते हैं।
ये दोनों ही रास्ते धन की ओर जाते हैं किंतु दोनों ही एक दूसरे के अपोज़िट हैं। एक गलत तरीके से पाया गया धन यानि ’माया’ गलत तरीकों पर ही खर्च होती है जैसे जुआ, शराब, सिगरेट, गलत प्रकार के धंधे, अय्याशी इत्यादि। जो हमें परेशानी ही देती है, सुकून हमारा छीन लेती है। वही दूसरी ओर अच्छे तरीके से कमाया धन यानि ’लक्ष्मी’ की आगमन होता है तो उस राह में खुशियां ही खुशियां होती हैं। क्योंकि उस राह से पाया धन अच्छे कार्यों में ही खर्च होता है जैसे दान-धर्म, मदद, अच्छी वस्तुएं जो हमें खुशियां देती हैं, घर-परिवार पर किया खर्च इत्यादि जो हर प्रकार से हमें खुशियां और मन को सुकुन देता है। कुल मिलाकर बात यह है कि दीपावली को करना है शुभ तो आराधना के साथ हमारे कर्म भी ’लक्ष्मी जी’ को पाने के ही हों ना कि ’माया’ को पाने की दौड़।
धन मिले, वैभव मिले, मिले संपदा अपार
संग हो जब
अपनों का प्यार और सुख समृद्धि की बहार
शुभ दीपावली!