दिल्ली के वृद्धाश्रम में गांधीजी के पोते, मोदी ने की फोन पर बात
महात्मा गांधी के लाड़ले, दुलारे पोते कनुभाई के वृद्धाश्रम में रहने की ख़बरें प्रकाशित होने के साथ ही केंद्र सरकार हरकत में आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद रविवार को खबर मिलते ही कनुभाई से फोन पर गुजराती में बात की। आपको बता दे कि कनुभाई महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के बेटे हैं कनुभाई बापू के साथ उनकी मृत्यु तक साये की तरह रहे है और उनकी मृत्यु के बाद वे विदेश पढ़ने चले गए। उनका कहना है कि गांधीजी ने देश को आजाद करवाकर कांग्रेस को सौंप दिया लेकिन उसने इसे बेच दिया।
कनुभाई मदर्स डे के मौके पर वृद्धाश्रम शरण लेने पहुंचे। जिसके बाद जानकारी मिलते ही पीएम मोदी ने उनसे फोन पर गुजराती में बातचीत की। मोदी के निर्देश पर दिल्ली स्थित एक ओल्ड एज होम में केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा उनसे मिलने गए। शर्मा ने बताया कि मोदी के निर्देश पर खुद उन्हें कनुभाई से मिलकर मौका स्थिति की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। साथ ही उनकी सभी जरूरतें सरकार पूरी करेंगी।
उधर कनुभाई ने पीएम मोदी से बात की और कहा कि वे अच्छे इंसान हैं। उन्होंने मोदी के साथ बिताए दिनों की यादें ताजा की। उन्होंने कहा कि मैंने मोदी का समर्थन किया है, मैं उनका पुराना भक्त हूं।
कनुभाई का जीवन
महात्मा गांधी के पोते कनुभाई ने पहले आजादी की लड़ाई लड़ी। देश आजाद होने के बाद वे विदेश में पढ़ाई करने चले गए। उन्होने नासा जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में नौकरी की। उनके जीवन के अंतिम पड़ाव में पहले गुजरात और अब दिल्ली के वृद्धाश्रम में आए हैं।
इससे पहले वे वर्ष 2014 में भारत आएं थे और नवसारी में एक वृद्धाश्रम में रहे वहां पर उन्हे ठगी का शिकार होना पड़ा। इसके बाद वे सूरत आ गए।
कनुभाई व उनकी धर्मपत्नी ने जीवन के 40 साल अमेरिका में बिताएं थे। उनकी पत्नी शिवालक्ष्मी ने बॉयोकेमस्ट्री में पीएचडी कर बोस्टन में शैक्षणिक कार्य किया। अमेरिका से भारत आने के विषय में कनुभाई कहते हैं कि लोगों ने ही उनसे कहा कि वह भारत जाएं और वहां जाकर कुछ करें। आर्थिक रूप से संपन्न कनुभाई से जब वृद्धाश्रम मे रहने के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यहां शांति मिलती है।
अगर कनुभाई के स्वभाव की बात की जाए तो वे सभी से घुल-मिल जाते है। वे सभी लोगों से धीरे-धीरे बातें करते है और उनके और गांधीजी से जुड़े कई किस्से बताते है। उनकी पत्नी शिवालक्ष्मी जी ज्यादा बात नहीं करती हैं। दिल्ली में आकर वह खुश हैं। वह कहते हैं कि पहले से ही यहां आना चाहते थे, लेकिन कुछ समय लग गया।