जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने चेतावनी दी है कि यदि राज्य को दिए गए विशेषाधिकारों से छेड़छाड़ की गई तो वहां तिरंगा थामने वाला कोई नहीं होगा। उन्होंने आगे यह भी कहा कि एक ओर हम संविधान के दायरे में कश्मीर समस्या हल करने की बात करते हैं और दूसरी ओर कोड़े मारते हैं। संविधान के अनुच्छेद 35(ए) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने पर भड़कते हुए महबूबा ने ये बातें कहीं।
गिरे हुए तिरंगे को कोई नहीं उठाएगा – महबूबा
उन्होंने साफ कहा कि नेशनल कांफ्रेंस की तरह मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों और उनकी पार्टी PDP अपने कार्यकर्ताओं के लिए खतरा मोल लेंगे, जो कश्मीर में राष्ट्र ध्वज की रक्षा कर रहे हैं। इस धारा में किसी तरह के हेरफेर को मंजूरी नहीं दी जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि यदि इसमें बदलाव होता है तो मुझे यह कहते हुए झिझक नहीं होगी कि कश्मीर में गिरे हुए तिरंगे को भी कोई नहीं उठाएगा।
मोदी इतिहास पुरुष बन सकते हैं – महबूबा
महबूबा ने पीएम मोदी की तारीफ की लेकिन यह भी कहा कि मेरे लिए “इंडिया इज इंदिरा” और “मोदी मैन ऑफ मोमेंट” हैं। जब मैं पढ़ रही थी तब इंदिरा गांधी ही मेरे लिए भारत थी। हो सकता है कुछ लोगों को मेरी यह बात अच्छी न लगे, लेकिन इंदिरा भारत थी। संघ परिवार द्वारा नेहरू-गांधी परिवार की नापसंदगी के विपरीत उन्होंने यह बात कही। मोदी को मौजूदा दौर के नेता बताते हुए उन्होंने कहा कि वे इतिहास पुरुष बन सकते हैं, उनका नेतृत्व देश के लिए मूल्यवान है। उसे बढ़ावा देने की जरूरत है। उनके साथ मिलकर कश्मीर को दलदल से निकालने का रास्ता खोजा जाना चाहिए।
कश्मीर भारत का एक सिद्धांत है, कितना स्वीकार करना है? – महबूबा
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में महबूबा ने नाराजी भरे अंदाज में कहा कि अनुच्छेद 35 ए को चुनौती देने का काम कौन कर रहा है? क्यों कर रहे हैं? मेरी पार्टी व अन्य दल सारी जोखिम उठाकर जम्मू-कश्मीर में राष्ट्र ध्वज थामते हैं। इन अधिकारों को चुनौती देकर आप भारतीयों व भारत पर भरोसा करने वाले तथा चुनाव में भाग लेने वालों को कमजोर कर रहे हैं, जो सम्मान की जिंदगी जीना चाहते हैं। कश्मीर भारत का एक सिद्धांत है और सवाल यह है कि भारत कश्मीर के सिद्धांत को कितना स्वीकार करने को तैयार है। यही समस्या का मूलभूत सवाल है।
कश्मीर ने मुस्लिम बहुल होने के बाद भी भारत के साथ रहने का फैसला किया था
महबूबा ने आगे कहा कि देश के विभाजन के वक्त भी कश्मीर ने मुस्लिम बहुल होने के बाद भी धार्मिक आधार पर विभाजन के 2 राष्ट्र के सिद्धांत को नहीं माना और भारत के साथ रहने का फैसला किया। भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर को लेकर विशेष प्रावधान हैं। दुर्भाग्य से समय बीतने के साथ कुछ ऐसा हुआ कि दोनों पक्ष बेईमानी करने लगे। केंद्र और राज्य की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र और लालची हो गया और राज्य को 70 साल तक पीड़ा भोगना पड़ी। समस्या के हल की बजाए प्रशासकीय कदम उठाए जाएं। सीएम ने आगे कहा कि समस्या का हल करने की बजाए हमने प्रशासकीय कदम जैसे कि सरकारों की बर्खास्तगी, साजिश व देशद्रोह के आरोप लगाने जैसे कदम उठाए। अलगाववादी हिंसा से निपटने के लिए सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई गई। इन कदमों से कश्मीर के सिद्धांत को सुलझाने में मदद नहीं मिली।
NGO “वी द सिटिजंस” ने दायर की है यह याचिका
“वी द सिटिजंस” नामक NGO ने 2014 में एक रिट याचिका दायर की है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 35A और धारा 370 को यह कहते हुए चुनौती दी है कि इन प्रावधानों के चलते जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य के कई लोगों को उनके मौलिक अधिकारों तक से वंचित कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के लिए 3 जजों की एक पीठ गठित करने की बात कही है जो 6 हफ्तों के बाद इस पर सुनवाई शुरू करेगी।
एक संछिप्त नज़र में समझें अनुच्छेद 35A और धारा 370 को
‘अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके। भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।