समाज के अनछुए पहलुओं को दिखाती हैं मीरा नायर की फिल्में
फिल्में देखना तो हर इंसान को पसंद है पर कुछ ही लोग होते है जो फिल्में बनाते है। फिल्में में हम हमारी लाइफ को तो देखते ही है पर साथ ही वो भी देखते है जो हम कभी नहीं कर पाते। जैसे किसी हीरो की तरह लड़ना हमारे बस की बात नहीं होती। फिल्म इंडस्ट्री में कई लोग है और हर इंसान की एक कहानी है। फिल्मों में आमतौर पर डायरेक्टर एक ऐसी ही फिल्म बनाना चाहता है जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हो सके। इसके लिए वे फिल्म में हर तरह का मसाला डाल देते है जिससे फिल्म काफी चटपटी हो जाती है। पर कुछ लोग ऐसे भी है जो लीक से हटकर फिल्में बनाने के शौकीन होते है। वे समाज को वहीं दिखाने की कोशिश करते है जिनसे समाज नज़रे चुराता है। कुछ ऐसी ही फिल्में बनाती है इंडियन अमेरिकन फिल्ममेकर मीरा नायर। 15 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताने जा रहे है उनकी फिल्मों और उनकी ज़िन्दगी के बारे में कुछ ख़ास बातें…
हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘क्वीन ऑफ कातवे’ को लेकर चर्चा में आई मीरा नायर ने भारत में कई लीक से हटकर फिल्में बनाई है जिन्होंने विदेशों के फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीते है। भारतीय मुद्दों को लेकर उन्होंने कई बार फिल्में बनाई है। अपनी फिल्मों को लेकर मीरा नायर कई बार सुर्खियों में और कई बार विवादों में आई है। भारत में फिल्म ‘कामसूत्र’ को लेकर वे काफी विवादों में आई थी।
मीरा नायर का जन्म 15 अक्टूबर 1957 को राउरकेला, ओड़ीसा में हुआ था। उनके पिता अमित नायर आईएएस तथा माँ प्रवीण नायर सोशलवर्कर थी। मात्र तेरह साल की उम्र में ही मीरा ने शिमला के कैथेलिक मिशनरी स्कूल को ज्वाइन करने के लिए घर छोड़ दिया था। यहीं से उन्हें दिल्ली के मिरान्डा हाउस जाने का मौका मिला। जब वे 19 साल की थी तब उन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप ऑफर की थी लेकिन उन्होंने उसे छोड़कर हॉवर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई को चुना।
फिल्ममेकर बनने से पहले मीरा नायर एक एक्टर हुआ करती थी। वे बादल सरकार के लिए लिखे प्ले में बंगाली रोल किया करती थी। फिल्ममेकिंग करियर शुरू करने से पहले उन्होंने इंडियन कल्चर और ट्रेडिशन पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी। साल 1978 से 1979 के बीच उन्होंने एक ब्लैक एंड व्हाईट फिल्म ‘जामा मस्जिद स्ट्रीट जर्नल’ बनाई। इस 18 मिनट की फिल्म में मीरा ने पुरानी दिल्ली को बहुत अच्छे तरीके से बताया है।
मीरा की दूसरी डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी ‘सो फॉर फ्रॉम इंडिया’। 52 मिनट की ये फिल्म एक न्यूजपेपर डीलर की कहानी है जो इंडिया का है और न्यूयॉर्क में न्यूजपेपर डीलर है। उसकी वाइफ प्रेग्नेंट होती है और अपने पति का घर लौटने का इंतज़ार करती है। मीरा नायर की इस फिल्म ने अमेरिकन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का अवार्ड जीता था।
मीरा नायर का नाम लेते ही फिल्म सलाम बॉम्बे का नाम हमेशा याद आता है। ‘सलाम बॉम्बे’ मीरा नायर की डेब्यू फीचर फिल्म थी। हालांकि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखाया लेकिन इस फिल्म ने 23 इंटरनेशनल अवार्ड जीते। इस फिल्म के बाद मीरा नायर ने कई ऐसी फिल्में बनाई जो लीक से हटकर थी और समाज को आइना दिखाती थी। इस फिल्म के बाद मीरा ने ‘मिसिसिपी मसाला, दि पेरेज फेमिली और कामसूत्र जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों को देश में ही नहीं विदेशों में भी काफी सराहना मिली।