कुछ ऐसा होता है नागाओं का श्रृंगार
नागा साधुओं को सबसे ज्यादा हैरत और अचरज के साथ देखा जाता है। यह आम जनता के बीच कौतुहल का विषय होते हैं। यदि आप सोच रहे हैं कि नागा साधु बनना आसान है तो आप गलत सोच रहे हैं। नागा साधुओं को दीद्वा लेने से पहले खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना होता है।
वर्तमान में कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधू की दीक्षा दी जाती है। इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी काफी है। वैसे तो महिला नागा साधू और पुरुष नाग साधू के नियम कायदे समान ही है। फर्क केवल इतना ही है कि महिला नागा साधू को एक पीला वस्त्र लपेट कर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहन कर स्नान करना पड़ता है। नग्न स्नान की अनुमति नहीं है, यहां तक कि कुम्भ मेले में भी नहीं।
श्रृंगार सिर्फ महिलाओं को ही प्रिय नहीं होता, नागाओं को भी सजना-संवरना अच्छा लगता है। फर्क सिर्फ इतना है कि नागाओं की श्रृंगार सामाग्री महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधनों से बिल्कुल अलग होती है। उन्हें भी अपने लुक की उतनी ही फिक्र होती है जितनी आम आदमी को। नागा साधु प्रेमानंद गिरि के अनुसार नागाओं के भी अपने विशेष श्रृंगार साधन हैं। ये आम दुनिया से अलग हैं लेकिन नागाओं के प्रिय हैं। जानिए नागा साधु कैसे करते हैं अपना श्रृंगार…
भस्म
नागा साधुओं को सबसे ज्यादा प्रिय होती है भस्म। रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। यह भस्म भी ताजी होती है। भस्म शरीर पर कपड़ों का काम करती है।
फूल
कई नागा साधु नियमित रूप से फूलों की मालाएं धारण करते हैं। इसमें गेंदे के फूल सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं क्योंकि ये अधिक समय तक ताजे बने रहते हैं। नागा साधु गले में, हाथों पर और विशेषतौर से अपनी जटाओं में फूल लगाते हैं।
तिलक
नागा साधु सबसे ज्यादा ध्यान अपने तिलक पर देते हैं। यह पहचान और शक्ति दोनों का प्रतीक है। तिलक रोज एक जैसा लगे इस बात पर नागा साधु बहुत ध्यान देते हैं। वे कभी भी अपने तिलक लगाने के तरीके को बदलते नहीं हैं।
रूद्राक्ष
भस्म की तरह ही नागाओं को रूद्राक्ष भी बहुत प्रिय है। कहा जाता है कि रूद्राक्ष भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुए हैं। इस कारण लगभग सभी शैव साधु रूद्राक्ष की माला पहनते हैं। ये मालाएं साधारण नहीं होतीं। इन्हें बरसों तक सिद्ध किया जाता है।
लंगोट
आमतौर पर नागा साधु निवस्त्र ही होते हैं लेकिन कई नागा साधु लंगोट धारण भी करते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं जैसे भक्तों के उनके पास आने में कोई झिझक न रहे। कई साधु हठयोग के तहत भी लंगोट धारण करते हैं जैसे- लोहे की लंगोट, चांदी की लंगोट, लकड़ी की लंगोट आदि।
हथियार
नागाओं को सिर्फ साधु नहीं बल्कि योद्धा माना गया है। वे युद्ध कला में माहिर, क्रोधी और बलवान शरीर के स्वामी होते हैं। अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते हैं।
चिमटा
नागाओं को चिमटा रखना अनिवार्य होता है। धुनि रमाने में सबसे ज्यादा काम चिमटे का ही पड़ता है। चिमटा हथियार भी है और औजार भी। यह नागाओं के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा होता है। ऐसा उल्लेख भी कई जगह मिता है कि कई साधु चिमटे से ही अपने भक्तों को आर्शीवाद देते थे।
रत्न
कई नागा साधु रत्नों की मालाएं भी धारण करते हैं। महंगे रत्न जैसे मूंगा, पुखराज, माणिक आदि रत्नों की मालाएं धारण करने वाले नागा कम ही हैं। उन्हें धन से मोह नहीं होता लेकिन ये रत्न उनके श्रृंगार का आवश्यक हिस्सा होते हैं।
जटा
जटाएं भी नागा साधुओं की सबसे बड़ी पहचान होती हैं। मोटी-मोटी जटाओं की देख-रेख भी उतने ही जतन से की जाती है। काली मिट्टी से उन्हें धोया जाता है। सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है। फूलों और रूद्राक्ष से जटाओं का श्रृंगार किया जाता है।
दाढ़ी
जटा की तरह दाढ़ी भी नागा साधुओं की पहचान होती है। इसकी देख रेख भी जटाओं की तरह ही होती है। नागा साधु अपनी दाढ़ी को भी पूरे जतन से साफ रखते हैं।
पोषाक चर्म
जिस तरह भगवान शिव शेर की खाल को वस्त्र के रूप में पहनते हैं वैसे ही कई नागा साधु जानवरों की खाल पहनते हैं। हालांकि शिकार और पशु खाल पर लगे कड़े कानूनों के कारण अब पशुओं की खाल मिलना मुश्किल होता है फिर भी कई साधुओं के पास जानवरों की खाल देखी जा सकती है।
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