आज यानी 7 अगस्त को नाग पंचमी मनाई जा रही। वैसे तो नागों की पूजा करने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों से चली आ रही है। इन्हें भगवान का आभूषण माना गया है। यू तो भारत में नागों के कई मंदिर हैं। लेकिन हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहें है जो साल में सिर्फ एक दिन और वो भी नांगपंचमी पर ही खुलता है। उसी दिन इस मंदिर में भक्तों को नागदेवता के दर्शन हो पाते है।
दरअसल, हम बात कर रहे है धार्मिक नगरी उज्जैन की। जहां एक ऐसा अनोखा मंदिर स्थित है। नागचंद्रेश्वर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की मान्यता है कि नागदेव स्वयं इस मंदिर में मौजूद रहते हैं और वह सिर्फ नागपंचमी के दिन ही दर्शन देते हैं।
तीन खंड़ों में है मंदिर
ये मंदिर तीन खंडो में विभक्त है। सबसे नीचे खंड में भगवान महाकालेश्वर दूसरे खंड में ओंकारेश्वर और तीसरे खंड में दुर्लभ भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। मंदिर के पट नागपंचमी की मध्य रात्रि 12.00 बजे पट खुलते है और परंपरा अनुसार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत भगवान नागचंद्रेश्वर महादेव का प्रथम पूजन करते हैं। पूजन के बाद मंदिर के पट सभी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खेल दिए जाते हैं।
दुनिया में और कहीं नहीं ऐसी प्रतिमा
इस मंदिर को परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आस-पास बनवाया था। फिर 1732 में सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। कहा जाता है कि जो प्रतिमा यहां है वो दुनिया में और कहीं नहीं। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं।
इनके दर्शन से हो जाते हैं सर्पदोष मुक्त
कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।