लगातार भारतीय सेना के ऊपर हो रहे हमले और उसकी बर्बरता बढ़ती ही जा रही है। उनपर अनुशासन और समझदारी का परिचय देने का दबाव बना ही रहता है। ऐसे में सैनिकों के ऊपर जान का जोखिम और उनके पलटवार ना कर पाने का दर्द बढ़ाता ही जा रहा है। ये किसी भी देश की सेना या सुरक्षा एजेंसी के लिए परीक्षा की घड़ी हो सकती है। हमें गर्व है कि हमारी सेना इसका जिम्मेदारी के साथ निर्वहन कर रही है। किन्तु ऐसा कब तक? क्या वजह है कि हम इसका माकूल जवाब देने की बजाय सिर्फ शब्दों के बाण छोड़ रहे हैं? क्या वजह है कि हमारी सरकार और अन्य राजनैतिक पार्टियां महज बयानबाजी में उलझी पड़ी हैं?
पार्टियां कोई सी भी हों, जो सरकार में होती हैं वो पता नहीं कौन सी विवशता के चलते चुप्पी साध लेती हैं और विपक्ष उन पर आरोप लगाने लगता है। जबकि वो ही पार्टियां जब सत्ता में होती हैं उन्होंने भी चुप्पी ही साधी होती है। अब इन सबकी क्या विवशता है ये वे ही जाने, किन्तु नुकसान देश व सैनिकों के अपमानित होने का है। यह हर दृष्टि से हमारे देश के कमजोर होने को इंगित करता है। यही वजह है कि पाकिस्तान जैसा पड़ोसी राष्ट्र, जो कभी हमारा अंग था, वो हर समय हमारे खिलाफ आतंक का षडयंत्र रचता रहता है, जवाब में हम कुछ नहीं कर पाते हैं। जब भी कुछ हार्ड स्टेप्स लेने की सोचते हैं, दुनिया के सरमायेदार हमें धैर्य रखने का सुझाव देने आ जाते हैं।
जबकि ये ही देश, जब भी इन पर कुछ घटता है, बगैर किसी से पूछे, कोई शब्द कहे तुरत फुरत कार्यवाही कर डालते हैं। इन्हें दुनिया में किसी को जवाब देना नहीं होता। इनके खिलाफ जो भी होता है वह आतंक ही होता है और जब हमारी समस्या होती है तो हमें उसे बातचीत से ही सुलझाना होता है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री का 56 इंच का सीना बस देशवासियों के खिलाफ ही खुलता है। आतंक के नाम पर लिया नोटबंदी का निर्णय आतंक को तो नहीं मिटा सका, हां देशवासियों और उनकी इकॉनोमी पर ऐसा कहर बनकर बरसा कि लोग उस से उभर भी नहीं पा रहे हैं। इस सरकार की तरफ हमारी सारी सेना, सारा देश टकटकी और आस लगाए बैठा है कि शायद इस बार प्रधानमंत्री जी का 56 इंच का सीना खुले और देश की अस्मिता की रक्षा हो सके, हमारे सैनिकों की शहादत बेकार नहीं जाये, उनके कतरे कतरे का बदला लिया जा सके।
जयहिंद