हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन स्टैंडर्ड मैंटेन करने के लिए हम अंग्रेजी बोलते हैं। ये कोई आज की बात नहीं। शुरू से ही हम में से कई लोगों का मानना है कि पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी में ही बात किया करते हैं। अधिकतर जगह जहां आप काम करने जाएंगे वहां भी अंग्रेजी को ही ज़्यादा प्रिफरेंस दी जाती है लेकिन अब देश बदल रहा है और बदलते देश में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है।
आपने देखा होगा कि देश के पीएम नरेंद्र मोदी हिंदी में भाषण देते है। उनके कैबिनेट के अधिकतर मंत्री भी हिंदी का ही प्रयोग करते हैं और अब हो सकता है कि इन सभी लोगों और राष्ट्रपति को ऐसा हर वक्त करना पड़े। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ’आधिकारिक भाषाओं पर संसद की समिति’ की इस सिफारिश को ’स्वीकार’ कर लिया है कि राष्ट्रपति और ऐसे सभी मंत्रियों और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए और बयान जारी करने चाहिए, जो हिंदी पढ़ और बोल सकते हों।
राष्ट्रपति भी देंगे हिंदी में भाषण
इस समिति ने हिंदी को और लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 साल पहले 117 सिफारिशें दी थीं। उन पर केंद्र ने राज्यों के साथ गहन विचार-विमर्श किया था। मुखर्जी का कार्यकाल जुलाई में पूरा होगा और अगर इस निर्णय को लागू किया जाएगा तो अगले राष्ट्रपति हो सकता है कि केवल हिंदी में भाषण दें।
एयर इंडिया के टिकटों पर हिंदी
राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन को सभी मंत्रालयों, राज्यों और प्रधानमंत्री कार्यालय के पास अमल के लिए भेजा गया है। मुखर्जी ने जिन अन्य सिफारिशों को स्वीकार किया है, उनमें एयर इंडिया के टिकटों पर हिंदी का इस्तेमाल करने, एयर इंडिया के विमानों में आधी से ज्यादा हिंदी की पत्रिकाएं और अखबार देने और केंद्र सरकार के कार्यालयों में अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की ज्यादा खरीदारी करने की बात शामिल है। समिति ने सिफारिश की थी कि सभी भारतीय विमानों में यात्रियों के लिए हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं हों, क्योंकि ’विमानन कंपनियां हिंदी की बड़े पैमाने पर उपेक्षा करती हैं।’ हालांकि राष्ट्रपति ने नागर विमानन मंत्रालय से कहा कि यह बात सिर्फ सरकारी एयरलाइन तक सीमित रखी जाए।
सरकारी नौकरी के लिए हिंदी अनिवार्य नहीं
संसदीय समिति ने सीबीएसई से जुड़े सभी स्कूलों और केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने का प्रस्ताव भी दिया था। अभी इन स्कूलों में कक्षा 8 तक ही हिंदी पढ़ना अनिवार्य है। राष्ट्रपति ने अपने आदेश में कहा है कि यह सिफारिश ’सिद्धांत के रूप में’ स्वीकार की जा रही है और केंद्र सरकार ’श्रेणी ए के हिंदीभाषी राज्यों’ में चाहे तो ऐसा कर सकती है, लेकिन केंद्र को इस मामले में राज्यों से पहले सलाह-मशविरा करना चाहिए और इस संबंध में एक नीति बनानी चाहिए। राष्ट्रपति ने यह सिफारिश स्वीकार नहीं की है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए हिंदी की एक न्यूनतम स्तर की जानकारी होना जरूरी किया जाए।
शब्दकोष बनाएंगे मंत्रालय
गैर हिंदीभाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों से मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहेगा कि वे विद्यार्थियों को परीक्षाओं और साक्षात्कारों में हिंदी में उत्तर देने का विकल्प दें। यह सिफारिश भी स्वीकार की गई है कि सरकार सरकारी संवाद में कठिन हिंदी शब्दों के उपयोग से बचे और हिंदी शब्दों के अंग्रेजी लिप्यांतरण का एक शब्दकोष तैयार करे। सभी मंत्रालय ऐसा शब्दकोष बनाएंगे और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से तैयार किए जाने वाले 15,000 शब्दों के शब्दकोष का भी उपयोग करेंगे।
उदाहरण देते हुए बताया गया है कि ’डीमॉनेटाइजेशन जैसे शब्दों के लिए विमुद्रीकरण या आम बोलचाल में प्रचलित नोटबंदी जैसे शब्द का उपयोग किया जा सकता है।’ आधिकारिक भाषा पर संसद की इस समिति ने 1959 से राष्ट्रपति को अब तक 9 रिपोर्ट्स दी हैं। पिछली रिपोर्ट 2011 में दी गई थी। 2011 में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इस समिति के अध्यक्ष थे।