अगर कोई पुरूष कभी गुलाबी रंग के कपड़े पहन ले, तो लोगों को ये सुनते जुरूर सुना होगा कि ये क्या लड़कियों का रंग पहन रखा है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो गुस्सा होने के बजाए खुश हो जाइए, क्योंकि गुलाबी लड़कियों का नहीं पुरूषों का ही रंग है। ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि इतिहास खुद इस बात का गवाह है।
वैसे आमतौर पर लोगों के मन में ये मिथ है कि पिंक कलर लड़कियों का होता है और ब्लू कलर लड़कों से जुड़ा होता है। ज्यादातर घरों में यदि लड़की जन्म ले, तो उसके कमरे की अलमारी से लेकर पालना, बेड , खिलौने तक सबकुछ पिंक कलर का डिजाइन किया जाता है। यहां तक की पिंक पार्टी ड्रेस तक को लड़कियों से गुलाबी रंग को हरसंभव तरीके से जोड़ दिया जाता है। ये मिथ लोगों में इतना गहरा है कि अगर कोई लड़का पिंक कलर पहन ले, तो उसे ही अहसज महसूस होने लगता है। मगर सवाल यह उठता है कि आखिर पिंक कलर लड़कियों का कलर क्यों माना जाता है, आखिर गुलाबी रंग लड़कियों की पहचान से कैसे जुड़ गया। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है।
इतिहास में पिंक कलर है पुरूषों का कलर-
हम भले ही पिंक कलर को लड़कियों का कलर मानते हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि पिंक कलर लड़कियों का नहीं बल्कि पुरूषों का कलर है। वो ऐसे कि गुलाबी रंग लाल रंग से बनता है और लाल रंग हमेशा से खून, युद्ध और ताकत का रंग रहा है। अगर याद करें तो देखेंगे कि पुराने रोमन सैनिकों के हेल्मेट पर लगी कल्सी अक्सर लाल या गुलाबी होती है। 1794 की किताब ए जर्नी थ्रू माय रूम में लिखा गया है कि पुरूषों के कमरों में गुलाबी रंग ज्यादा होना चाहिए , क्योंकि ये लाल रंग से जुड़ता है और उत्साह बढ़ाता है।
तो फिर कैसे गुलाबी रंग बना लड़कियों की पहचान-
अगर इतिहास में गुलाबी पुरूषों का रंग है, तो ये लड़कियों की पहचान कैसे बना ये आप जरूर सोच रहे होंगे। इन कलरों के स्टीरियोटाइप तय होने में युद्ध का बड़ा रोल रहा है। फस्र्ट वल्र्डवॉर के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिससे ये स्टीरियोटाइप तय हुए। दरअसल, फस्र्ट वल्र्ड वॉर के समय नए रोजगार बने। जैसे टाइपिस्ट, सेके्रटरी, वेटर और नर्स । ये जॉब्स व्हाइट कॉलर जॉब नहीं थी, लेकिन मजदूरों वाली ब्लू कॉलर जॉब भी नहीं थीं, इसलिए इसे पिंक कॉलर जॉब कहा गया। पिंक कॉलर जॉब की एक सबसे बड़ी खासियत ये थी कि इस जॉब की तरक्की बहुत लिमिटेड थी, इसलिए इसे वुमन ऑरिएन्टिड जॉब बना दिया। बस इसी दौर से पुरूषों का गुलाबी रंग से मोह खत्म हो गया। एक नॉबेल “द ग्रेट गैट्सबी” में नायक से एक आदमी कहता है कि कोई भी खानदानी अमीर गुलाबी सूट नहीं पहनता है । इस बात का मतलब लड़के या लड़की से नहीं बल्कि अमीर और गरीब से है।
1950 में तय हुई लड़कियों के लिए गुलाबी तो लड़कों के लिए नीले रंग की धारणा-
दूसरा वल्र्ड वॉर हुआ तो गुलाबी को लड़कियों का रंग मान लिया गया। इसके पीछे कारण तो बहुत थे। काला रंग पश्चिम के समाज में विधवाओं का रंग माना जाता था। युद्धकाल में जब कोई महिला काला कपड़ा पहनती थी, तो माना जाता था कि उसका पति उसके साथ नहीं है। इसी तरह से नीला रंग जींस के साथ जुड़कर मर्दानगी की नई पहचान बन गया। मर्लिन ब्रांडो और जेम्स डीन जैसे अभिनेताओं के निभाए काउबॉय किरदारों के चलते नीली जींस और नीला रंग लड़कों के साथ पूरी तरह से जुड़ गया।
इसी बीच में एक और नई बात हुई।नए पैदा हुए बच्चों के लिए अस्पतालों में लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीले कपड़े यूज होने लगे। इसके पीछे बड़ी व्यवहारिक वजह थी। सफेद कपड़ों में नवजात बच्चों को दूर से देख कर लड़के लड़की का अंतर करना मुश्किल होता था।
इसके बाद फैशन इंडस्ट्री में गुलाबी रंग का ट्रेंड आया। लड़कियों के लिए ड्रेस, रूम से लेकर आउटफिट और एक्सेसरीज तक गुलाबी रंग की बनने लगीं। वैसे उस समय के राष्ट्रपति आइजनहावर की पत्नी ने इस गुलाबी रंग को इतनी हवा दी , क्योंकि गुलाबी रंग उनका फेवरेट था। इसी तरह सबकुछ लड़कियों के लिए गुलाबी रंग का बनने लगा और गुलाबी फिर लड़कियों का फेवरेट कलर बन गया।