न्यूक्लियर बम से ज्यादा ज़िंदगियां तो काले-गोरे ने बर्बाद कर दीं
भारत में गोरेपन ने अपनी गहरी जड़ें फैला रखी हैं और महिलाओं के लिए गोरा होना और भी ज्यादा जरूरी है। यहां गोरी महिलाओं को सुंदर और प्रतिष्ठित माना जाता है वहीं गहरे रंग वाली महिलाओं को शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ता है उन्हें हमेशा गोरी महिलाओं से कम आंका जाता है।
पिंकी ब्यूटी पार्लर एक ऐसी ही फिल्म है जो गोरे और काले के प्रति समाज के नज़रिए को दिखाती है। फिल्म की कहानी हमें बनारस की गलियों से होती हुई दो बहनों पिंकी और बुलबुल की ज़िंदगी में ले जाती है जो बनारस में अपनी एक ब्यूटी पार्लर चला रही होती हैं। दो बहनों में बड़ी बुलबुल एक छोटा लेकिन फेमस पिंकी ब्यूटी पार्लर चलाती है। अपने मां-पिता की मौत हो जाने के बाद बुलबुल ही अपनी छोटी बहन पिंकी की मां और पिता दोनों है। बचपन से ही काला रंग होने की वजह से बुलबुल की तुलना उसकी छोटी बहन पिंकी से की जाती है। दोनों उस समाज में जी रही थीं जहां गोरे को खूबसूरत और काले को बदसूरत माना जाता है। पिंकी गोरी है इसलिए वो हमेशा अपने मां-पिता की आंखों का तारा रही। ऐसे में बुलबुल के हिस्से का प्यार भी पिंकी को ही मिल जाता था। लेकिन बुलबुल ने अपने काले रंग को ही अपनी तकदीर मानकर इस सच के साथ जीना सीख लिया था। फिल्म में उसकी बहन से लगातार उसकी तुलना होती जो उसे अपने कालेपन की याद दिलाती है।
फिल्म शुरू होती है उस सीन से जिसमें सुबह-सुबह बुलबुल की पार्लर असिस्टेंट उसके मृत शरीर को पंखे से लटका हुआ देखती है। इसके बाद इस मामले में पुलिस इंस्पेक्टर जटाशंकर अपनी जांच शुरू कर देता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है वैसे-वैसे वो लोग सामने आते जाते हैं जो पिंकी की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें एक बुलबुल की एक क्लाइंट लता श्रीवास्तव भी शामिल होती है जो कोर्ट में बुलबुल के खिलाफ इस बात का केस दर्ज करा देती है कि बुलबुल ने उसे खूबसूरत बनाने के झूठे वादे किए हैं। यहां तक कि उसकी छोटी बहन पिंकी भी इस लिस्ट में शामिल है।
फिल्म की कहानी अक्षय सिंह ने लिखी है और उन्होंने ही इसे डायरेक्ट किया है। 129 मिनिट की ये फिल्म समाज की कुरीतियों को दिखाती है। इस फिल्म में मामी फिल्म फेस्टिवल में भेजा गया है। 20 अक्टूबर से 27 अक्टूबर तक चलने वाले इस फिल्म फेस्टिवल में 54 देशों की लगभग 180 फिल्मों को दिखाया जाएगा।