पीएम मोदी : बनना था साधू, बन गए प्रधानमंत्री
साल 1950 में वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 66 बरस के हो जाएंगे। एक चाय बेचने वाला कभी देश का पीएम भी बनेगा ये किसी ने सोचा नहीं था। मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया। बचपन से ही उनका संघ की तरफ खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। वे 1967 में 17 साल की उम्र में अहमदाबाद पहुंचे और उसी साल उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे।
1980 के दशक में जब मोदी गुजरात की भाजपा ईकाई में शामिल हुए तो माना गया कि पार्टी को संघ के प्रभाव का सीधा फायदा होगा। वे वर्ष 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए।
मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। इसके बाद 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया। इस पद पर वो अक्टूबर 2001 तक रहे। लेकिन 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई। उस समय गुजरात में भूकंप आया था और भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ जिसमें कई हिंदू कार्यसेवक मारे गए। इसके ठीक बाद फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ़ दंगे भड़क उठे। इन दंगों में सरकार के मुताबिक एक हजार से ज्यादा और ब्रिटिश उच्चायोग की एक स्वतंत्र समिति के अनुसार लगभग 2000 लोग मारे गए। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौर किया तो उन्होंनें उन्हें ’राजधर्म निभाने’ की सलाह दी जिसे वाजपेयी की नाराजगी के संकेत के रूप में देखा गया।
मोदी पर आरोप लगे कि वे दंगों को रोक नहीं पाए और उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया। जब भारतीय जनता पार्टी में उन्हें पद से हटाने की बात उठी तो उन्हें तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे की ओर से समर्थन मिला और वे पद पर बने रहे। गुजरात में हुए दंगों की बात कई देशों में उठी और मोदी को अमरीका जाने का वीजा नहीं मिला। ब्रिटेन ने भी दस साल तक उनसे अपने रिश्ते तोड़े रखे।
मोदी पर आरोप लगते रहे लेकिन राज्य की राजनीति पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती गई। मोदी के खिलाफ दंगों से संबंधित कोई आरोप किसी कोर्ट में सिद्ध नहीं हुए हैं। हालांकि, खुद मोदी ने भी कभी दंगों को लेकर न तो कोई अफसोस जताया है और न ही किसी तरह की माफी मांगी है। महत्वपूर्ण है कि दंगों के चंद महीनों के बाद ही जब दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में मोदी ने जीत दर्ज की थी तो उन्हें सबसे ज्यादा फायदा उन इलाकों में हुआ जो दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित थे।
इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे। फिर 2012 में भी मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रहे और अब केंद्र में अपने नेतृत्व में सरकार चला रहे हैं।
गुजरात में अपना जादू बिखेरने वाले मोदी कभी साधु बनना चाहते थे। इतना ही नहीं एक वक्त था जब उन्होंने चाय की दुकान भी लगाई। मोदी के जीवन में इसी तरह के कई उतार-चढ़ाव आए।
मोदी बचपन में आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे। काम भी अलग तरह का कर जाते थे। एक बार वो घर के पास के शर्मिष्ठा तालाब से एक घड़ियाल का बच्चा पकड़कर घर लेकर आ गए। उनकी मां ने कहा बेटा इसे वापस छोड़ आओ, मोदी इस पर राजी नहीं हुए। फिर मां ने समझाया कि अगर कोई तुम्हें मुझसे चुरा ले तो तुम पर और मेरे पर क्या बीतेगी, जरा सोचो। बात मोदी को समझ में आ गई और वो उस घड़ियाल के बच्चे को तालाब में छोड़ आए।
मोदी को हम कई तरह के गेट अप में देखते हैं। दरअसल स्टाइल के मामले में मोदी बचपन से ही थोड़े अलग थे। कभी बाल बढ़ा लेते थे तो कभी सरदार के गेट अप में आ जाते थे। रंगमंच उन्हें खूब लुभाता था। मोदी स्कूल के दिनों में नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अपने रोल पर काफी मेहनत भी करते थे।
मोदी वड़नगर के भगवताचार्य नारायणाचार्य स्कूल में पढ़ते थे। पढ़ाई में एक औसत छात्र थे, लेकिन पढ़ाई के अलावा बाकी गतिविधियों में वो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। एक तरफ जहां वो नाटकों में हिस्सा लेते थे, वहीं उन्होंने एनसीसी भी ज्वॉइन किया था। बोलने की कला में तो उनका कोई जवाब नहीं था, हर वाद-विवाद प्रतियोगिता में मोदी हमेशा अव्वल आते थे।
बचपन में मोदी को साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता था। मोदी खुद संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे और इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे और आखिर में हिमालय पहुंच गए और कई महीनों तक साधुओं के साथ घूमते रहे।
वर्ष 2005 में मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से इनकार कर दिया। हालांकि नरेंद्र मोदी इससे बिलकुल भी विचलित नहीं हुए। नरेंद्र मोदी की राजनीतिक ताकत में लगातार इजाफा होता रहा। बीजेपी के अग्रणी नेताओं में नरेंद्र मोदी की गिनती लंबे समय से होती रही है।
मोदी शाकाहारी हैं। उन्होंने सिगरेट, शराब को कभी हाथ नहीं लगाया। वो आम तौर पर अपने आधी बाजू के कुर्ते में नजर आते हैं, लेकिन जब मौज में आते हैं तो सूट-बूट में निकलते हैं किसी हीरो की तरह।
मोदी तकनीक का इस्तेमाल भी बखूबी करते हैं। अगर आज फेसबुक और ट्वीटर पर देखें तो सबसे ज्यादा उनके फॉलोअर्स मिल जाएंगे। इंटरनेट पर पॉपुलर नेताओं की सूची में वो अव्वल हैं।
ये तस्वीर भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के लंबे सफर को स्पष्ट तौर पर जाहिर करती है।