सिंधु जल समझौते पर मोदी सरकार गंभीर, खत्म हुई हाईलेवल मीटिंग
उरी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान में बहुत ज़्यादा तनाव बढ़ चुका है। इसी के मद्देनजर सोमवार को पीएम नरेन्द्र मोदी ने सिंधु जल समझौते पर हाईलेवल मीटिंग की। पीएम की ये बैठक करीब डेढ़ घंटे तक चली। सूत्रों के मुताबिक बैठक में संधि के फायदे और नुकसान पर चर्चा हुई। मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में कोई फैसला नहीं लिया, सिर्फ अधिकारियों से जानकारी ली। उन्होंने इस संधि के कानूनी, राजनीतिक व सामाजिक पहलुओं का ब्यौरा अफसरों से लिया। बता दें कि मोदी ने बैठक के दौरान अफसरों से कहा कि हम खून और पानी एक साथ नहीं बढ़ने देंगे। पाकिस्तान के साथ 56 वर्ष पहले किये गये सिंधु जल समझौते को रद्द करने की संभावना पर भारत ने गंभीरता से विचार करना शुरु कर दिया है।
ये मंत्रालय हुए बैठक में शामिल
इस बैठक में विदेश मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी शामिल हुए। हालांकि जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस बैठक में शामिल नहीं थीं। बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र शामिल थे। इसके अलावा इन दोनों मंत्रालयों के अन्य अधिकारी भी शामिल हुए। बता दें कि मोदी ने की ये बैठक उनके आवास लोक 7, कल्याण मार्ग पर में हुई है।
रद्द हो जाना चाहिए ये समझौता
हालांकि अभी पीएम मोदी ने सिंधु समझौते पर अपनी कोई राय नहीं दी हैं। लेकिन विदेश मामलों के जानकार ब्रह्मचेलानी ने इस मामले पर अपने विचार साझा किए है। ब्रह्मचेलानी ने कहा कि मेरा मानना है कि भारत को बिना वक्त गवाए 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौते को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर पाकिस्तान का बड़ा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। भारत की ओर से सिंधु नदी जल समझौता रद्द किए जाने पर पाकिस्तान को दिया जाने वाला सिंधु नदी का पानी रोक दिया जाएगा। सिंधु नदी को पाकिस्तान की जीवन रेखा कहा जाता है। सिंधु नदी पर ही पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था और खेती टिकी है।
एक नज़र सिंधु जल समझौता पर
बता दें कि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच यह जल संधि हुई थी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाक के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों व्यास, रावी और सतलज का नियंत्रण भारत को दिया गया था। वहीं दूसरी ओर पाक को पश्चिम की तीन नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम के नियंत्रण की जिम्मेदारी दी गई थी। भारत सिंधु, रावी, व्यास, चिनाब, झेलम और सतलुच नदियों का 80 प्रतिशत पानी पाक को देता है। अब यदि भारत यह समझौता तोड़ता है तो पाकिस्तान की कमर टूट जाएगी क्योंकि पाक की कृषि भूमि इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है। इसके अलावा पाक पर बिजली का संकट भी टूट पड़ेगा। बता दें कि सिंधु, झेलम और चेनाब में वाटर बेस्ड इलेक्ट्रिसिटी प्रोजेक्ट चल रहा है। अगर ये समझौता कैंसल हुआ तो पाक पानी के साथ- साथ बिजली के लिए भी तरसेगा। वैसे पहले से ही पाक बिजली के संकट से जूझ रहा है।