Sunday, September 24th, 2017 18:11:14
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ऐसा कवि जिसकी कविताओं से घबराते थे अंग्रेज




ऐसा कवि जिसकी कविताओं से घबराते थे अंग्रेजSocial

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बात बहुत पहले की है आज़ादी से भी पहले की। एक संस्कृत के पंडित के पास एक बालक पढ़ने आया इसी पंडित से उसने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। ये बालक आगे चलकर देश के प्रख्यात पदों पर अपनी सेवा देता रहा। साथ ही वीररस का ऐसा कवि बना जो आज भी विस्मरणीय है। इस बालक का नाम था रामधारी सिंह दिनकर। अपने बचपन से ही देशभक्ति की भावना में डूबे रामधारी सिंह की देशभक्ति की कविताएं आज भी हिंदी साहित्य में जिंदा हैं। 23 सितंबर को उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनकी कुछ ख़ास कविताओं और उनकी ज़िन्दगी के बारें में कुछ खास बातें बताने जा रहे है।

हिंदी के सुविख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया नामक स्थान पर हुआ था। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उस दौर के कवि हैं जब हिन्दी काव्य जगत् से छायावाद का युग समाप्त हो रहा था। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद दिनकर जी ने एक हाईस्कूल में अध्यापन कार्य किया। उसके बाद अनेक महत्तवपूर्ण प्राशासनिक पदों पर रहते हुए आप मुज़फ्फ़रपुर कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष बने और बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने। अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों तथा सम्मानों से अलंकृत होने के साथ ही आप भारत सरकार के पद्म विभूषण अलंकरण से भी नवाज़े गए। 24 अप्रेल सन् 1974 को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ये नश्वर देह छोड़कर चले गए।

घबराते थे अंग्रेज
सन 1965 में भारत सरकार ने उन्हें अपना ’हिन्दी सलाहकार’ नियुक्त किया। अपने कार्यकाल में उन्होंने ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंदगीत की रचना की। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-वहाँ प्रकाश में आईं और अंग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। 4 वर्ष में 22 बार उनका तबादला किया गया।

रामधारी सिंह की प्रसिद्ध रचनाएं
उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, संचयिता, संस्कृति के चार अध्याय, सपनों का धुआँ, कविता और शुद्ध कविता, कवि और कविता, भग्न वीणा, स्मरणांजलि, समानांतर, चिंतन के आयाम, रश्मिमाला, व्यक्तिगत निबंध और डायरी, पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष, संस्कृति भाषा और राष्ट्र, श्री अरविंद मेरी दृष्टि में, साहित्य और समाज, अमृत मंथन, कुरुक्षेत्र, बापू, मिट्टी की ओर, काव्य की भूमिका, धूपछाँह, नील कुसुम, नये सुभाषित । अगले पेज पर पढ़ें रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कुछ प्रसिद्ध कविताएं-

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