Friday, September 22nd, 2017 08:25:41
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अर्थव्यवस्था को रिवर्स गियर लगा बैठी अपरिपक्व सरकार




editorial

मोदी, मोदी, मोदी, मोदी दम्भ, मोदी युग…

व्यक्तिगत जयकार में फंसी सरकार अपनी अपरिपक्वता के चलते राजनैतिक फायदे के लिए देश हित व उसकी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को रिवर्स गियर में डाल विपरीत दिशा में बहा कर ले जा रही है। वर्तमान हालात पर नज़र डालें तो ये नोटबंदी वाला फैसला उल्टा बैठता जा रहा है जो सरकार की अपरिपक्वता को दर्शा रहा है। कहने को तो सरकार द्वारा चंद लोगों तक सीमित रख इसे बेहद गोपनीय रखा गया था, दूसरा इसे बहुत सोच-विचार कर छः महीने पूर्व से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि छः माह की तैयारी एकदम अपूर्ण थी, उससे उत्पन्न परेशानियों का अंदाज़ा सही ढंग से नहीं लगाया जा सका क्योंकि आज दिनांक तक भी आम आदमी ही परेशान नज़र आ रहा है। कैश की किल्लत अभी भी बरकरार है। चंद वह लोग जिन्होंने इसका निर्णय लिया, वे सक्षम नहीं थे। इस देश में एक से बढ़कर एक इकॉनॉमिस्ट है जिनकी राय इतना बड़ा कदम उठाने से पूर्व ली जा सकती थी किन्तु ऐसा नहीं किया गया। इसके परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ेंगे।

पहली बात तो नोटबंदी ही सही उपाय नहीं था। जिन वजहों से इसे लागू किया गया उनको समाप्त करने के बहुत से तरीके विद्यमान हैं, उस पर लगता है गंभीरता से विचार ही नहीं किया गया। चाहे आतंकवाद हो, चाहे कालाधन हो या चाहे भ्रष्टाचार हो, नोटबंदी से इन सभी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, जैसा कि सरकार कह रही है। आतंकवाद फिर भी रूक नहीं रहा है उन तक तो हमारे नये नोट भी आसानी से पहुँच गए। कालाधन अलग-अलग तरीकों से सफेद हो गया, सरकार कुछ ना कर सकी। आगे भी कालाधन पैदा न हो इसका कोई उपाय सरकार के पास नहीं है। भ्रष्टाचार तो, नोटबंदी और इसको जिस प्रकार लागू किया गया, उससे तो और बड़ा ही है साथ ही भविष्य में भी अधिक होने की संभावना है। इसका जीता-जागता प्रमाण कालेधन का सफेद हो जाना है जिसमे सम्पूर्ण मशीनरी ने अभूतपूर्व साथ दिया। यहाँ तक कि सरकार के नुमाइंदों व नेताओं ने भी इसका भरपूर उपयोग किया। 10 प्रतिशत से 35 प्रतिशत के रेट में आसानी से पुराने नोट नए नोट में कन्वर्ट हो गये, ऐसा सुनने में आया है। जिन बातों को लेकर सरकार ने आम जनता को लुभावने भाषण देकर तकलीफों में डाल दिया वे एक-एक करके गलत साबित होते जा रहे हैं। सरकार के इस निर्णय से बाज़ार में जो स्थिति नज़र आ रही है वो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को विपरीत दिशा में धकेल रही है।

-इस नोटबंदी के चलते बाज़ार से कैश एकदम से खत्म होने से व्यापार ठप्प सा हो गया है जिसका नुकसान सभी को उठाना होगा।

-नोटबंदी के बाद सरकार द्वारा नित नये नियम बनाना, व्यापारियों को कालेधन के नाम पर चोर साबित करना, रोज-रोज उन्हें धमकाना, बाज़ार के भविष्य को अनिश्चितता में धकेल रहा है।

-साधारण सी बात है यदि व्यापार नहीं चलेगा, खरीददार नहीं मिलेंगे तो व्यापारी को तो घाटा होगा ही, नौकरियों पर भी इसका असर पड़ेगा। नई नौकरियां तो दूर की बात, लगी नौकरियां भी समाप्त होने लगेगी। बेरोजगारी बढ़ेगी। सरकार को भी टैक्स नहीं मिलेगा, जिससे सरकारी खजाने पर भी असर पड़ेगा। सरकार भी आगे चलने में दिक्कतों का सामना करेगी। यह बात सरकार को तब पता चलेगी जब इसके असर मालूम होना शुरू होंगे।

-सरकार ने नोटबंदी की आड़ में जो राजनैतिक खेल वोट बैंक का शुरू किया है जिसमें गरीबों को अमीरों से लड़ाया है वो बेहद खतरनाक ओर विपरीत दिशा में लेकर जाएगा क्योंकि चाहे व्यापार चलाना हो, देश चलाना हो या गरीबों को रोटी देना हो सबकुछ धन से ही सम्भव है और बगैर अमीरों के गरीब को रोटी भी नहीं मिल सकती और न ही सरकार को टैक्स के रूप में पैसा, जिसका उपयोग भी वह गरीबों के उत्थान में करता है वही पूंजी लगाने के लिए, रिस्क लेने के लिए अमीरों की भी जरूरत पड़ती है। राजनैतिक फायदे के लिए इस प्रकार के भाषण सुनने में अच्छे लगते हैं किन्तु अर्थव्यवस्था व स्वस्थ समाज के लिए बेहद खतरनाक है।

-जहाँ तक बात कैशलेस होने की है, सम्पूर्ण व्यवस्था डिजिटल होने की है वहां भी सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम जल्दबाज़ी में आत्मघाती होकर लिया गया है। पहली बात तो कैशलेस होने व डिजिटल होने से कोई भ्रष्टाचार नहीं रूकता, कालाधन नहीं रूकता। इसके लिए विश्व में उन देशों की तरफ देखा जा सकता है जहां पूर्व में इसे लागू किया जा चुका है। दूसरा यह कदम जल्दीबाज़ी में लिया गया इसलिए है क्योंकि हमारी बहुत बड़ी आबादी अभी इतनी परिपक्व नहीं है जो इसका उपयोग कर सके। उन्हें इस पर आने में अभी काफी समय लगेगा। इसके लिए सरकार के पास भी साइबर क्राइम से निपटने के लिए, साइबर सेफ्टी के लिए कोई बड़ी तैयारी नहीं है। इससे उत्पन्न होने वाली समस्या से निपटना बहुत मुश्किल होगा।

-कैशलेस व डिजिटल होने से समस्याओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा उल्टा उसके न होने से जरूर फर्क पड़ेगा जबकि वह आम गरीब व्यक्ति कैश के होने से अपने को ज्यादा सेफ महसूस करता है और कैश होने में गलत भी क्या है? यह भी देश की सरकार द्वारा चलन में लाई गई मुद्रा है। निचले स्तर पर ये अधिक सामयिक और उपयोगी है बजाय डिजिटल के।

इस प्रकार हम यदि देखें तो सरकार के ये तमाम कदम कहीं न कहीं देश की अर्थव्यवस्था को विपरित दिशा में ले जा रहे हैं जिससे उबर पाने में देश को फिर सालों-साल लग जाएंगे तब तक विश्व हमसे कही अधिक आगे निकल जाएगा और उसके सामने हमें खड़े रहना भी मुश्किल होगा। अंत में इतना ही कह सकते है कि अभी तक कि सभी सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय में ये नोटबंदी का निर्णय देश की अर्थव्यवस्था को रिवर्स गियर में डालने वाला है जो देश के लिए घातक साबित होगा और सरकार की अपरिपक्वता को दर्शा रहा है।

विशेषः- इसके पूर्व नोटबंदी के तत्काल बाद संपादकीय में जो आशंका जताई गई थी वो एकदम सटीक बैठी है जिसे आप नीचे दी गई लिंक में देख सकते हैं।

  1. आम आदमी की कमर तोड़ देगा मोदी का दम्भ
  2. लोग तो सिर्फ़ धन कमाना चाहते हैं, काला और सफ़ेद तो सरकार का खेल है

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