मोदी सरकार का मानना है कि बाढ़ और सूखे से बचने का टिकाऊ तरीका नदियों को जोड़ना है, इन आपदाओं के साथ ही सिंचाई और बिजली पैदा करने के लिये भी यह परियोजना महत्वाकांक्षी साबित हो सकती है, लेकिन पर्यावरणवादी इसके विरोध में आ गए हैं। वहीं सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भरपूर पानी वाली नदियों जैसे गंगा, गोदावरी और महानदी से बांध और नहरों का जाल बना कर जलमार्ग तैयार किए जाएंगे, अन्य नदियों केन, बेतवा, ताप्ती, नर्मदा, दमन गंगा एवं पिंजाल को भी यही प्रक्रिया अपना कर लिंक किया जाएगा, यही बाढ़ और सूखे से लड़ने का एकमात्र तरीका है।
पीएम मोदी ने इस पर निजी तौर पर दिलचस्पी ली
इस परियोजना को 5 लाख करोड़ रु. से ज्यादा की लागत से अमलीजामा पहनाया जाएगा, जिसके तहत भारत की बड़ी नदियों को आपस में जोड़ा जाना मुख्य लक्ष्य है। इसके लिए बड़ी संख्या में नहर, पुल और बांध बनाए जाएंगे। इस बारिश के चालू सीज़न में भारत में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। इससे पहले के 2 साल में देश ने सूखे का दंश भी झेला। मोदी सरकार ने इस विशाल परियोजना के पहले चरण पर तेजी से अमल के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। पीएम मोदी ने इस पर निजी तौर पर दिलचस्पी दिखाई है। इस परियोजना से हजारों मेगावाट बिजली भी पैदा होगी। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोग इसे इको सिस्टम के लिये खतरा बताते हैं। उनके अलावा इस परियोजना का विरोध करने वालों में एक राजपरिवार और बाघों के एक नेशनल पार्क के चाहने वाले हैं।
शुरुआत केन-बेतवा से
परियोजना के तहत उत्तर मध्य भारत के इलाके में केन नदी पर 22 किमी लंबा बांध बना कर बेतवा नदी से जोड़ा जाना है। दोनों नदियां यूपी और एमपी के कुछ इलाकों से हो कर बहती हैं। इन दोनों राज्यों में BJP की सरकार है और पीएम को उम्मीद है कि केन बेतवा प्रोजेक्ट दूसरे राज्यों के लिए भी नजीर बनेगा। जल संसाधन राज्य मंत्री संजीव बालयान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में बताया है कि हमने बेहद कम समय में सभी विभागों से मंजूरी हासिल कर ली है और आखिरी मंजूरी भी इस साल मिल जाएगी। उनके अनुसार केन बेतवा प्रोजेक्ट सरकार की वरीयता सूची में सबसे ऊपर है। 425 किमी लंबी केन नदी बाघों के एक अभयारण्य से हो कर गुजरती है। सरकार की योजना इस अभयारण्य के करीब 6.5% हिस्से को साफ कर के बांध बनाने की है, इसके लिये दूर दराज के 10 गांवों से करीब 2000 लोगों को यहां से हटाना होगा।
इसके बाद ताप्ती नदी को नर्मदा और दमन गंगा को पिंजाल से जोड़ने पर काम
सूत्र बताते हैं कि मोदी सरकार इस परियोजना को अगले कुछ ही हफ्ते में मंजूरी दे देगी। इसके बाद पीएम निर्माण कार्य शुरू करने की योजना को हरी झंडी दिखा देंगे। सरकार पश्चिम भारत में ताप्ती नदी को नर्मदा और दमन गंगा को पिंजाल नदी से जोड़ने के लिए भी कागजी कार्रवाई तेजी से निपटा रही है। यह परियोजना नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात और उसके पड़ोसी एमपी और महाराष्ट्र से जुड़ी है। इन तीनों राज्यों में भी BJP की सरकार है।
प्लस पाइंट हैं तो माइनस भी
नदियों को जोड़ने का पहली बार प्रस्ताव 2002 में BJP के नेतृत्व वाली सरकार के शासन में ही आया था। इस पर काम रुक गया क्योंकि राज्य सरकारों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर मतभेद थे और सरकार को अलग-अलग विभागों से मंजूरी लेने में भी काफी वक्त लगा। इस बार BJP के शाशन वाले राज्यों से शुरुआत कर अधिकारियों ने उम्मीद लगाई है कि समझौते तेजी से होंगे और काम जल्दी शुरू होगा।
पहले जल संरक्षण पर ध्यान दिया जाए
मोदी सरकार नदियों को जोड़ने की परियोजना को बाढ़ और सूखे का समाधान बता रही है। इस साल भी पूर्वी और उत्तर पूर्वी इलाके में जहां बाढ़ ने तबाही मचाई वहीं भारी बरसात के कारण मुंबई भी ठहर गई थी। इससे उलट दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में ऐसा सूखा पड़ा कि सरकार को पीने के पानी का कोटा तय करना पड़ा। हालांकि इसके बावजूद बहुत से लोग इस परियोजना के विरोध में भी हैं। कुछ कहते हैं कि अरबों डॉलर खर्च करने से बेहतर है कि पहले जल संरक्षण पर ध्यान दिया जाए।
वन्य अभयारण्य में बांध बनाना पर्यावरण के लिये एक बड़ी आपदा
केन नदी पर जिस 77 मीटर हाइट वाले और 2 किमी बड़े बांध का प्रस्ताव है, उससे करीब 9000 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी, जो मुख्य रूप से जंगली इलाका है। इसमें एक बड़ा हिस्सा पन्ना टाइगर रिजर्व का आएगा, जो मध्यप्रदेश में खजुराहो मंदिर के पास है। यह बाघ अभयारण्य 30-35 बाघों और करीब 500 गिद्धों का बसेरा है। ब्रिटिश शासन के दौर में पन्ना के रजवाड़े इस इलाके पर हुकूमत करते थे। राजपरिवार के सदस्य श्यामेंद्र सिंह कहते हैं कि वन्य अभयारण्य में बांध बनाना पर्यावरण के लिये एक बड़ी आपदा को न्यौता देना है।इसकी वजह से जंगल में बाढ़ और निचले इलाकों में सूखा पड़ेगा।
अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने बाघों और गिद्धों की सुरक्षा के बारे में विचार कर लिया है।1915 में ब्रिटिश सरकार ने गंगाउ बांध बनाया था, वहां से थोड़ी ही दूर पर दाउधान गांव है, जहां ना तो बिजली है, ना ही दूसरी बुनियादी सुविधाएं।
यहां के लोग फिलहाल ये जानना चाहते हैं कि उन्हें यहां से हटने के बदले में क्या मिलेगा। गांव में रहने वाले बुजुर्ग मुन्ना यादव घर से थोड़ी दूर पर बहती नदी को देखते हुए कहते हैं कि हमने अपने गांव में कभी बिजली नहीं देखी, अगर हमारे बच्चों को यहां से जाना पड़ा और अगर बांध से सबका भला होगा तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे।