गुजरात के एक छोटे से गांव इखार से निकलकर मुनाफ पटेल ने क्रिकेट में बड़ा नाम कमाया। स्कूल में पढ़ते हुए वो क्रिकेट भी खेलते थे, लेकिन कभी क्रिकेटर बनना नहीं चाहते थे। गरीबी के कारण परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए मुनाफ ने बचपन में एक मार्बल फैक्ट्री में मजदूरी तक की है। यहां 8 घंटे काम करने के लिए उन्हें 35 रुपए रोज मिलते थे।
इसलिए क्रिकेटर नहीं बनना चाहते थे मुनाफ….
गुजरात के इखार गांव में मुनाफ सबसे तेज बॉलिंग करते थे, बावजूद इसके उन्होंने कभी क्रिकेटर बनने का नहीं सोचा। इसका कारण ये था कि वो गरीब घर से थे। क्रिकेट ट्रेनिंग लेने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। मुनाफ के पिता दूसरों के खेतों में काम कर पैसे कमाते थे। कई बार तो दिनभर में सिर्फ 7 रुपए मिलते थे। मुनाफ इस गरीबी से परिवार को निकालने चाहते थे, इसलिए उन्होंने ने भी कम उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था।
ऐसे पहुंचे क्रिकेट में
स्कूल में मुनाफ क्रिकेट खेलते थे और पैसे कमाने के लिए मजदूरी भी। उनके काम करने की बात उनके एक दोस्त ने स्कूल टीचर को बता दी। तब टीचर ने मुनाफ से कहा था कि जब पैसे कमाने की उम्र हो तब कमाना, अभी सिर्फ खेल पर ध्यान दो। कुछ साल बाद उनकी मुलाकात एक दोस्त यूसुफ से हुई। यूसुफ ही उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए बड़ौदा लेकर आए। चप्पल में क्रिकेट खेलने वाले मुनाफ को जूते भी यूसुफ ने ही दिलवाए थे और क्रिकेट क्लब में एडमिशन दिलवाया।
पूरे गांव की करते हैं मदद
2011 वर्ल्ड कप में सचिन तेंडुलकर और एमएस धोनी जैसे दिग्गजों के साथ खेल चुके मुनाफ पटेल आज भी अपने गांव में ही रहते हैं। वो यहां लोगों की मदद करते हैं। गांव में हर कोई आर्थिक मदद के लिए मुनाफ के पास आता है और वो बिना सवाल किए उन्हें पैसे दे देते हैं। मुनाफ के अनुसार, ‘यदि हमारे पास कोई मदद के लिए आता है और मैं उससे सवाल पूछूं तो पिता कहते हैं कि सवाल क्यों पूछ रहा है। उससे उसका पेट नहीं भरेगा।’
क्रिकेट खेलने से पिता नहीं थे खुश
मुनाफ जब मजदूरी छोड़कर क्रिकेट खेलने लगे तो उनके पिता खुश नहीं थे। पिता चाहते थे कि वो ना सिर्फ उनके साथ काम करें, बल्कि कुछ समय बाद अफ्रीका जाकर पैसे कमाकर लाएं। उनके इखार गांव से हर साल कुछ लोग पैसे कमाने के लिए अफ्रीका जाते थे। मुनाफ के एक रिश्तेदार वहीं रहते थे इसलिए उनके पिता मुनाफ को वहां भेजना चाहते थे। मुनाफ ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘इसमें पिता की गलती नहीं थी। गांव में तब शायद ही किसी को पता हो कि क्रिकेट खेलकर पैसा भी कमाया जा सकता था।’
पहले मोरे और फिर सचिन ने दिया मौका
2003 में क्रिकेट कोचिंग के दौरान मुनाफ पर पूर्व इंडियन क्रिकेटर किरण मोरे की नजर पड़ी। उन्होंने मुनाफ के टैलेंट को पहचानते हुए उन्हें ट्रेनिंग के लिए चेन्नई के एमआरएफ स्कूल भेजा। यहां फास्ट बॉलिंग की उन्होंने कई बारीकियां सीखीं। यहां मुनाफ पर दुनिया के दिग्गज क्रिकेटर्स डेनिस लिली और स्टीव वॉ ने उनकी बॉलिंग की तारीफ की। इसके बाद मुनाफ पर सचिन तेंडुलकर की नजर पड़ी। सचिन ने ही उन्हें मुंबई रणजी टीम में मौका दिया। मुनाफ को बड़ौदा टीम में जगह नहीं मिली थी। वहीं, अजीत अगरकर के टीम इंडिया में आ जाने के कारण मुंबई को एक स्पेशलिस्ट फास्ट बॉलर की जरूरत भी थी।
चोटों ने खराब किया करियरः
मुनाफ ने 2006 से 2011 तक टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेला। वर्ल्ड कप जीतने के बाद वो चोटिल होने के कारण कई महीनों तक क्रिकेट से दूर रहे। इसके बाद उनकी एंट्री टीम में नहीं हो सकी। हालांकि, वो 2016 तक डोमेस्टिक क्रिकेट खेलते रहे हैं। मुनाफ ने भारत के लिए दो वनडे वर्ल्ड कप (2007 और 2011) खेले।
आईपीएल-2 से पहले हुई थी इंगेजमेंट
मुनाफ और तस्लीमा की इंगेजमेंट 2009 में हुए आईपीएल सीजन 2 से ठीक पहले हुई थी। इसके बाद मुनाफ सीजन-2 खेलने के लिए साउथ अफ्रीका चले गए थे। तब वो राजस्थान रॉयल्स टीम में थे। तब से ही तस्लीमा ने क्रिकेट देखना शुरू किया था। करीब 1 साल के बाद 2010 में दोनों की शादी हुई। ये बेहद निजी समारोह था जिसमें सिर्फ क्लोज फ्रेंड्स और फैमिली मेंबर्स को ही बुलाया गया था। इनके दो बेटे अमीन और अमार हैं। सगाई के वक्त तस्लीमा ने 12वीं तक की पढ़ाई की थी। उनके पिता गुजरात के पलेज सिटी के एक मिल में मैनेजर हैं। कभी मुनाफ के पास क्रिकेट खेलने के लिए जूते तक नहीं थे, लेकिन आज वो SUV कार रखते हैं। गांव के कई लोग उनकी कार मांगकर भी ले जाते हैं