वैदिक कारण
शादी के दिन निभाई जाने वाली ‘कन्यादान’ की रस्म हमें इस सवाल का उत्तर देती है। वैदिक समझ के अनुसार कन्यादान करते समय एक पिता केवल अपनी पुत्री को दान में नहीं देता बल्कि इस समय वह अपनी जिम्मेदारियों को समाप्त करते हुए होने वाले दूल्हे को अपनी बेटी सौंपता है।
कन्यादान की रस्म
वह कन्यादान करते समय कहता है कि मैंने अपनी बेटी को लालन-पालन करके बड़ा किया, अपना प्रत्येक धर्म निभाया और अब यह तुम्हारी अमानत है। इसकी देखभाल आगे से तुम करोगे।
मनु संहिता के तर्क
मनु संहिता के अनुसार भी यह एक पति का धर्म है कि वह अपनी पत्नी की हर प्रकार की जरूरतों का पूरा ख्याल रखे। इस महान ग्रंथ के अनुसार एक पत्नी शादी के बाद अपने पति के ही घर जाती है, जिसके बाद पति की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह सारी उम्र उसे खुशी दे।
स्त्री का देवी रूप
एक और वैदिक तथ्य के अनुसार स्त्री ‘देवी’ का रूप मानी जाती है। वह लक्ष्मी है, अन्नपूर्णा है, सभी का भला करने वाली है। शादी के बंधन में बंधने के बाद वह अपने पति के घर की देवी मानी जाती है। इसलिए उस देवी को साथ लेकर आने की मान्यता बनी हुई है।
पाप से बचें
यदि दूल्हा शादी करके अपनी दुल्हन को वहीं छोड़ आए तो यह वैदिक धर्म के अनुसार एक ‘पाप’ के समान है।
अथर्ववेद के अनुसार
हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध अथर्व वेद में भी इस सवाल के पीछे कारण बताए गए हैं। इसके अनुसार एक वधु, वर के लिए नदी के समान है। एक ऐसी नदी जो उसके सागर जैसे घर में जाकर अपनी पवित्रता घोलती है। कुछ और मान्यताएं जानेंगे अगले पेज पर-