इस एक दिवसीय सेमिनार में विवादित इस्लामिक रीतियों, तीन तलाक व महिलाओं के विरुद्ध पक्षपात के संबंध में संवेदनशीलता की कमी पर रोशनी डाली गई
तीन तलाक को तुरंत खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर पूरे देश के लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त की हैं। भले ही यह फैसला भारतीय प्रजातंत्र के लिए एक नया मोड़ साबित हुआ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब कई प्लेटफार्मों पर बहस व चर्चा का नया विषय है। ऐसे में, विद्यार्थियों में सर्वांगीण शिक्षा व प्रेरणादायक प्रतिस्पर्धी क्षमताओं पर ध्यान केन्द्रित करने वाले उच्च गुणवत्तायुक्त शैक्षणिक संस्थान शारदा यूनिवर्सिटी के स्कूल आॅफ लॉ ने 31 अगस्त 2017 को, ब्लॉक 7 में यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम में ‘तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विश्लेषण’ शीर्ष पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
इस संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि थे आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व केबिनेट मंत्री, एवं प्रोफेसर अफजल वानी, स्कूल ऑफ लॉ एंड लीगल स्टडीज, जीजीएसआईपी यूनिवर्सिटी, दिल्ली को इस कार्यक्रम के लिए सम्मानित अतिरिक्त के रूप में आमंत्रित किया गया था। आरिफ मोहम्मद ने इस पिछड़ी प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई है और 1980 के दशक में शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बचाव करने के लिए आलोचना भी सही हैं। इस संगोष्ठी ने विवादित इस्लामिक रीतियों, तीन तलाक व महिलाओं के विरुद्ध पक्षपात के संबंध में संवेदनशीलता की कमी पर रोशनी डाली।
फैसले के सार पर जोर देते हुए, प्रोफेसर अफजल वानी ने कहा, “मूल लक्ष्य मानव का सम्मान हासिल करना है, जहां संबंध पारस्परिक हैं। आज के समय में महिलाओं की स्थिति ऊंची हो गई है और लक्ष्य है बेहतर सौहार्दपूर्ण सामाजिक संबंध स्थापित करने का।“
उन्होंने आगे स्पष्ट किया,”मुस्लिम व्यक्तिगत कानून बोर्ड को फैसले को निष्कासित और निष्पक्ष रूप से पढ़ना चाहिए और कानून का सार पेश करना चाहिए जो पारस्परिक सम्मान का उदाहरण हो भारत का संविधान सर्वोच्च पद धारण करता है और पहले की गई घोषणाओं के अनुसार ट्रिपल तलाक़ उपयुक्त नहीं है। हमारा संविधान एक प्रतीकात्मक न्यायशास्त्र को बाहर लाने का लक्ष्य रखता है।“
श्री आरीफ मोहम्मद खान ने कहा, “धर्म की स्वतंत्रता के साथ, हर किसी को अपने अधिकारों का प्रचार करने, अभ्यास और उपदेश देने का अधिकार है। हालांकि, धर्म का अधिकार हमें किसी अन्य व्यक्ति का दमन करने और दबाने का लाइसेंस नहीं देता है। 90% मुसलमान, आज कुरान का पवित्रता से पालन नहीं कर रहे हैं और उन्होंने काम करने की सुविधाजनक पद्धतियां और प्रक्रियाएं बनाई हैं।“
महिलाओं की स्थिति पर उन्होंने कहा, “ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश फिर से देश में सांप्रदायिक शांति लाने में मदद करेगा और इस फैसले ने ए.आई.एम.पी.एल.बी (AIMPLB) और मुस्लिम विवाह को कमजोरकर दिया है, दूसरी तरफ, महिला सशक्तिकरण और न्याय को अब काफी बढ़ावा मिलेगा।“
शारदा यूनिवर्सिटी हमेशा ही सामाजिक बनावट पर विद्यार्थियों की समझ का सम्मान करके अपने विद्यार्थियों में प्रेरणादायक विचार व चुनौतीपूर्ण पारंपरिक विचारधाराओं का विकास करने में आगे रही है। इस बार भी, लगभग 90 मिलियन भारतीय मुस्लिम महिलाओं को प्रभावित करने वाले, बहस के इस महत्वपूर्ण सामाजिक विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित करके, इस यूनिवर्सिटी का लक्ष्य अपने विद्यार्थियों की सामाजिक बुद्धिमत्ता क्षमता को बेहतर करना और उनके अकादमिक क्षेत्र का विस्तार करना है।
शारदा यूनिवर्सिटी के बारे में:
शारदा यूनिवर्सिटी ग्रेटर नोएडा, दिल्ली एलसीआर स्थित एक अग्रणी शैक्षणिक संस्थान है। प्रसिद्ध शारदा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की एक उपक्रम, इस यूनिवर्सिटी ने खुद को सर्वांगीण शिक्षा और विद्यार्थियों में प्रतियोगी क्षमताओं का विकास करने पर मुख्य रूप से ध्यान देने वाले एक उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित किया है। यह यूनिवर्सिटी यूजीसी से स्वीकृत है और इसे एनसीआर में कई विषयों वाले एकमात्र कैम्पस होने पर खुद पर गर्व है, यह 63 एकड़ से ज्यादा के क्षेत्र में फैली है और विश्व स्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित है। शारदा यूनिवर्सिटी शोध व शिक्षण में उत्कृष्टता के लिए एक स्वीकृत प्रतिष्ठा के साथ भारत के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से बनने का वादा करती है। अपनी बेहतरीन फैकल्टी, विश्व स्तरीय शिक्षण मानकों, और अभिनव अकादमिक कार्यक्रमों के साथ, शारदा का प्रयोजन भारतीय शिक्षा प्रणाली में नए मापदंडों की स्थापना करना है।