एक युवराज जो अपने राजा पिता की इकलौती संतान और हुकूमत का अकेला वारिस था। लेकिन उसने अपने इस राजसी जीवन को ना अपनाकर अपने लिए कुछ और ही रास्ता बनाया और फिर बन गया सन्यासी।
वांग्चुक नामग्याल, सिक्किम के आखिरी राजा पाल्डेन थोंडप के बेटे हैं। सिक्किम के भारत में विलय के समय वह वहां के युवराज हुआ करते थे। उनके पिता की सिक्किम में हुकूमत चलती थी, लेकिन अब वह बौद्ध संन्यासी बन चुके हैं। वह सिक्किम, अरुणाचल, नेपाल और भूटान में फैले सैकड़ों बौद्ध मठों में ध्यान और साधना करते हैं। पुरानी हकूमत के नाम पर उनके पास बस यादें है और सामने आध्यात्म का एक बड़ा संसार।
नामग्याल फैमिली ने 1642 से सिक्किम पर शासन करना शुरू किया था। फुटसोंग नामग्याल इसके पहले शासक थे, वहीं वांग्चुक नामग्याल के पिता पाल्डेन थोंडप नामग्याल इसके आखिरी शासक थे। 1975 में सिक्किम के भारत में विलय तक वह राजा के पद पर रहे। इसके बाद सिक्किम भारत का हिस्सा बन गया। सिक्किम का भारत में जब आधिकारिक विलय हुआ तब वांगचुक नामग्याल करीब 22 साल के थे। वह अपने पिता के दूसरे बेटे थे। वह 1952 में पैदा हुए और अब करीब 64 साल के हो चुके हैं। वह शाही परिवार के एक मात्र वारिस हैं।
रायल फैमिली से जुड़े लोग अक्सर इस फिराक में रहते हैं कि कैसे उनकी संपत्ति में और इजाफा हो। – हालांकि वांग्चुक नामग्याल जब बड़े हुए तो उन्होंने सबकुछ छोड़ दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 35 साल पहले उन्होंने अपनी शाही पदवी ही छोड़ दी। इसके बाद वह बौद्ध संन्यासी हो गए। वह आमतौर पर पब्लिक में कम दिखाई पढ़ते हैं। वह पिछले 35 साल से सिर्फ ध्यान और साधना कर रहे हैं और यही उनके जीवन का सत्य है।