इस तरह श्रीलंका को मुक्ति मिली लिट्टे के आतंक से
श्रीलंका के इतिहास में श्रीलंकाई गृहयुद्ध बहुत खास है, जिसके जख्म आज भी लोगों को नजर आते हैं। 23 जुलाई 1983 को ये युद्ध आरंभ हुआ था जिसका अंत मई 2009 में हुआ था। ये लड़ाई श्रीलंका सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध था। 30 महीनों के सैन्य अभियान के बाद इस युद्ध का विराम श्रीलंकाई सरकार के द्वारा लिट्टे को 18 मई 2009 के दिन ही परास्त करने पर हुआ था। श्रीलंका के लोगों के लिए आज का दिन आजादी का दिन भी माना जाता है, लिट्टे के परास्त होने पर ही लोगों को आज के ही खुला वातावरण मिला सांस लेने के लिए।
लगभग 25 वर्षों तक चले इस गृहयुद्ध में दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। यह युद्द द्वीपीय राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हुआ। लिट्टे द्वारा अपनाई गई युद्ध नीतियों के चलते 32 देशों ने इसे आतंकवादी गुटो की श्रेणी में रखा जिनमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के बहुत से सदस्य राष्ट्र और अन्य कई देश हैं।
एक चौथाई सदी तक चले इस जातीय संघर्ष में सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही लगभग 80 हजार लोग मारे गए थे। बड़े-बड़े निर्णय हुए इस बीच और लंबे युद्ध चले। कितने ही घर आज भी इससे प्रभावित हैं। लोगों के जेहन में ये युद्ध पूरी तरह बस गया है, जिसे वे याद तो नहीं करना चाहते हैं, पर यादें पीछा नहीं छोड़ती है। पर लिट्टे की मौत पर लोगों एक नई रोशनी नजर आई श्रीलंका में।
लिट्टे ने किए कई हमले
श्रीलंका में जाफना के महापौर की हत्या लिट्टे ने कर दी। तमिल सांसद की हत्या, सैनिक काफिले पर हमला, आम नागरिकों की सामूहिक हत्या। और न जाने कितने ही ऐसी घटना है जिन्हें लिट्टे ने अंजाम दिया। श्रीलंका के देशवासियों का जीना मुश्किल हो गया था उस समय। लिट्टे की मौत से कई देश को राहत मिली थी।
युद्ध में भारतीय हस्तक्षेप भी रहा
भारन ने कई कारणों से श्रीलंका संघर्श में हस्तक्षेप किया था। इनमें क्षेत्रीय शक्ति के रुप में स्वंय को प्रदर्शित करना और तमिलनाडु में स्वतंत्रता की मांग को दबाना सम्मिलित था। चूंकि तमिलनाडु के लोग सांस्कृतिक कारणों से श्रीलंकाई तमिलों के हितों के पक्षधर रहें हैं। इसलिए भारत सरकार को भी संघर्श के दौरान श्रीलंका की सहायता के लिए आगे आना पड़ा।
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