शिया और सुन्नी में क्यों बंटा इस्लाम, पढ़ें पूरी कहानी
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जिस तरह ईसाई धर्म में दो समुदाय कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट हैं, जैन धर्म में दिगम्बर और श्वेताम्बर हैं उसी तरह इस्लाम भी दो समुदाय में बंटा हुआ है एक शिया और दूसरा सुन्नी। ईसाई और जैन धर्म के समुदायों की तरह ही शिया और सुन्नी समुदाय भी प्यार से साथ रहते हैं। इतना ही नहीं इनके कई रिवाज़ भी एक जैसे ही हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि प्यार के बावजूद भी इस्लाम दो समुदाय में कैसे बंट गया? दरअसल इसके पीछे भी एक कहानी है। तो आइए जानते हैं क्या है इस्लाम के शिया और सुन्नी में बंटने की कहानी।
जब इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद को 632 ई० में फांसी हुई तो इसके बाद से ही उनके अनुयाईयों के बीच आपस में असहमति का स्वर उभरने लगा। इसकी बड़ी वजह पैगंबर मोहम्मद द्वारा अपनी फांसी से पहले अपने किसी उत्तराधिकारी का ऐलान नहीं करना था। नतीजतन उसके बाद मुस्लिमों में अगुवाई के सवाल पर बहस खड़ी हो गई।
इस्लाम के कुछ अनुयाइयों का मानना था कि अगला खलीफा आपसी सहमति से तय करना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ़ कुछ अनुयाइयों ने मांग की कि उनके बाद खलीफा मोहम्मद के वंश से चुना जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
उस समय अनुयाइयों का एक तबका हजरत अली का नाम लेकर आगे आया। हजरत अली पैगम्बर साहब के चचेरे भाई और दामाद थे लेकिन वहीं दूसरे तबके का मानना था कि मोहम्मद की सारी निशानदेही हजरत अबु बकर की तरफ जाती है इसलिए उन्हें ही खिलाफत दी जानी चाहिए और ऐसा ही हुआ।
उसके बाद हजरत अली के समर्थकों को शिया कहा जाने लगा। वहीं दूसरे पक्ष के लोगों को सुन्नी। मुस्लिम आबादी में सुन्नी की संख्या ज्यादा है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, इनकी संख्या 85 से 90 प्रतिशत के बीच है। दोनों समुदाय के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं और उनके अधिकांश धार्मिक आस्थाएं और रीति रिवाज एक जैसे हैं। समाजिक स्तर पर इनका आपस मे कोई बैर नहीं है।
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