इसलिए 12 साल में मनाया जाता है सिंहस्थ कुंभ
यह वो समय था जब देवता लोग धरती पर रहते थे। धरती पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। उनका काम था धरती का निर्माण करना, धरती को रहने लायक बनाना और धरती पर मानव सहित अन्य आबादी का विस्तार करना।
देवताओं के साथ ही उनके भाई बंधु दैत्य भी रहते थे। तब यह धरती एक द्वीप की ही थी अर्थात धरती का एक ही हिस्सा जल से बाहर निकला हुआ था। वो भी बहुत छोटा-सा हिस्सा था। इसके बीचों-बीच था मेरू पर्वत।
धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया।
दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इंद्र को लक्ष्मी से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ समुद्र मंथन के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन। यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं। जब देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया। वे समुद्र के बीचोंबीच में स्थिर रहे और उनके ऊपर रखा गया मदरांचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बनाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना शुरु कर दिया।
देवता और दैत्यों के सहयोग से जो समुद्र मंथन हुआ उसमें अन्य वस्तुओं के अलावा अमृत से भरा हुआ एक घड़ा भी निकला था। देवता दैत्यों को अमृत नहीं देना चाहते थे। देवराज इंद्र के इशारे पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की कोशिश कर रहा था तब कुछ राक्षसों ने उसका पीछा किया। अमृत कुंभ के लिए स्वर्ग में बारह दिव्य दिन यानी 12 मनुष्य वर्ष तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदे गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और इलाहाबाद थे। ये बूंदे गंगा, यमुना, गोदावरी और क्षिप्रा नदियों में मिल गईं। इससे इन नदियों के जल में आध्यात्मिक और अतुलनीय शक्तियां उत्पन्न हो गईं। इन स्थानों की पवित्र नदियों को अमृत की बूंदे प्राप्त करने का श्रेय मिला इसलिए इन स्थानों पर 12 साल के अंतराल में कुंभ महापर्व मनाया जाता है। क्षिप्रा के पावन जल में ’अमृत-संपात’ यानी अमृत गिरने से सिंहस्थ महापर्व उज्जैन में मनाया जाता है। अन्य स्थानों पर भी यह पर्व कुंभ के नाम से मनाया जाता है। कुंभ के नाम से ये पर्व अधिक प्रसिद्ध है। प्रत्येक स्थानों पर 12 सालों का एक क्रम एक समान है। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग की गणना से बारह दिन तक संघर्ष हुआ था जो धरती के लोगों के लिए बारह वर्ष होते हैं। प्रत्येक स्थान पर कुंभ पर्व के लिए अलग-अलग ग्रह स्थिति निश्चित है।
सिंहस्थ कुम्भ महापर्व चार स्थानों अर्थात हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित किया जाता है। लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान के लिए आते हैं और श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि इससे उन्हें जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होगी।