ऐसा उपन्यासकार जिसकी रचनाओं में होते थे ‘लाचार हीरो और दमदार हीरोइन’
बात 2002 की है जब स्कूल खुले ही थे और पढ़ाई होना शुरू ही हुआ था। उस समय स्कूल से तड़ी मारकर पिक्चर जाने में खूब मजा आता था। स्कूल से ज्यादा दूर तो नहीं लेकिन थोड़ी ही दूर पर एक टॉकीज हुआ करता था। जिसमें उस समय एक फिल्म लगी। पोस्टर देखने से तो लगा था कि किसी शराबी की फिल्म होगी। अब हाथ में शराब का गिलास और लबों पर ‘पारो’ का नाम होगा तो क्या सोचेगा कोई बच्चा। ये फिल्म थी ‘देवदास’। उस समय तो ज्यादा समझ में नहीं आई क्योंकि इस तरह की गंभीरता से भरी वो मेरी पहली फिल्म थी मै तो सिर्फ एंग्री यंग मेन के एक्शन का ही दीवाना था। लेकिन जब आज देखते है तो इस फिल्म को गंभीरता काफी हद तक समझ में आती है। इस फिल्म ने उस समय अच्छा बिजनेस भी किया था और कई अवार्ड भी मिले। लेकिन ये फिल्म इससे पहले भी कई बार बन चुकी थी। एक बार तो लीजेंड्री किंग दिलीप कुमार खुद भी देवदास बन चुके हैं। हिंदी के अलावा ये दूसरी भाषाओं में भी बन चुकी थी। कहा जाता है कि अभी तक इसे 12 बार बनाया जा चुका है।
ऐसी फिल्म जो बचपन में समझ में नहीं आई और उसे 12 बार बनाया जा चुका हो ऐसी फिल्म में कुछ तो ख़ास होगा। इस फिल्म की ख़ासियत थी इस फिल्म की कहानी जिसे बार-बार सिनेमाघरों के पर्दे पर लाया जा रहा था। इस फिल्म की कहानी हिंदी साहित्य के महान लेखक व उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास ‘देवदास’ की है। जिस पर बाद में फिल्में बनने लगी। बांग्ला भाषा में लिखा ये उपन्यास 1917 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की ख्याति यू तो दूर-दूर तक फैली है ऐसा कोई नहीं है जो इसके परिचय से मोहताज हो। इस उपन्यास के लेखक भारत में एक महान लेखक तथा उपन्यासकार हुए है। 15 सितंबर को शरतचंद चटोपाध्याय के जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताने जा रहे है उनकी रचनाओं और उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ ख़ास बातें…
शरतचंद्र चटोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में हुआ था। शरतचंद्र के माता-पिता की कुल नौ संतानें थे जिनमें वे एक थे। शरतचंद्र की लेखनी ने अठारह साल की उम्र में ही अपना कमाल दिखा दिया था। मात्र अठारह साल की उम्र में ही उन्होंने ‘बासा’ नाम से एक उपन्यास लिख दिया था लेकिन उनकी यह रचना प्रकाशित नहीं हो पाई।
अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही वे पढ़ाई छोड़कर बर्मा आ गए और यहां पर 30 रूपए मासिक से क्लर्क की नौकरी की। शरतचंद्र का साहित्य हमेशा से ही यर्थाथवाद को दर्शाता था जो लोगों को पसंद आता था। उनकी कहानियों तथा उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज का यर्थाथ चित्र अंकित है। उनकी कहानियों में प्रेम के लिए भी अलग जगह थी। उनकी कहानियों में प्रेम एवं स्त्री-पुरूष संबंधों का सशक्त चित्रण हुआ है। उनकी कुछ कहानियां मार्मिक भी है जो पाठकों के दिलों को छूती है।
शरतचंद्र के उपन्यासों में कुछ ऐसा होता था जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करता था। उनके उपन्यास एवं कहानियां सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करती थी। महात्मा गांधी ने कहा था- “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।“ विश्वविख्यात बांग्ला कथाशिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने गांधी जी के उपरोक्त कथन को अपने साहित्य में उतारा था। उन्होंने पतिता, कुलटा, पीड़ित दहबी-कुचली और प्रताड़ित नारी की पीड़ा को अपनी रचनाओं में स्वर दिया। शरतचंद्र के मन में नारियों के प्रति बहुत सम्मान था वे नारी हृदय के सच्चे पारख़ी थे। उनकी कहानियों में स्त्री के रहस्यमय चरित्र, उसकी कोमल भावनाओं, दमित इच्छाओं, अपूर्ण आशाओं, अतृप्त आकांक्षाओं, उसके छोटे-छोटे सपनों, छोटी-बड़ी मन की उलझनों और उसकी महत्त्वकांक्षाओं का जैसा सूक्ष्म, सच्चा और मनोवैज्ञानिक चित्रण-विश्लेषण हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
कृतियाँ
शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, अभागिनी का स्वर्ग, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, अनुपमा का प्रेम, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, ब्राह्मण की लड़की, सती, विप्रदास, देना पावना आदि प्रमुख हैं। इन्होंने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर ’पथेर दावी’ उपन्यास लिखा था। कई भारतीय भाषाओं में शरत के उपन्यासों के अनुवाद हुए हैं। शरतचंद्र के कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फ़िल्में भी कई बार बनी हैं। 1974 में इनके उपन्यास ’चरित्रहीन’ पर आधारित फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर देवदास फ़िल्म का निर्माण तीन बार हो चुका है। पहली देवदास (1936) कुन्दन लाल सहगल द्वारा अभिनीत, दूसरी देवदास (1955) दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला द्वारा अभिनीत तथा तीसरी देवदास (2002) शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय द्वारा अभिनीत है। इसके अतिरिक्त 1974 में चरित्रहीन, परिणीता 1953 और 2005 में भी बनी थी, बड़ी दीदी (1969) तथा मँझली बहन, आदि पर भी चलचित्रों के निर्माण हुए हैं।
प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय की मृत्यु 16 जनवरी 1983 को हुई थी। शरतचंद्र एक ऐसे लेखक है जिनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित कई भाषाओं में चाव से पढ़ी जाती हैं। उनके साहित्य की सच्चाई तथा मार्मिकता आज भी उनके उपन्यासों में ज़िंदा है।