Thursday, August 31st, 2017
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यूपी में जीत की चाबी है यह सीट!




Politics

वैसे तो देश की राजधानी दिल्ली है, लेकिन देश की राजनीतिक राजधानी उत्तर प्रदेश है। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पुरे प्रदेश में माहौल गर्म है। अगले महींने से यूपी में शुरु हो रहे चुनाव को जीतने के लिए सभी चुनावीं पार्टियां अपने पुरे दम-खम के साथ उतर रहीं है। लेकिन यूपी का चुनाव जीतने में इस सीट का अजीब सा तिलिस्म हैं। जिससे की सभी पार्टी यह सीट जीतना चाहतीं हैं।

आइए जानते है आखिर उस एक सीट का तिलिस्म क्या हैं? क्यों सभी दल इस सीट को जीतने के लिए बेकरार हैं। क्या यह सीट जीत लेने पर उस पार्टी की सरकार प्रदेश में बन जाती हैं। क्या इस सीट के बिना, जातिगत कार्ड खेलकर भी राजनीतिक पार्टियां यूपी का चुनाव नहीं जीत सकती ?

इस सीट से होती है जीत की शुरुआत
उत्तर प्रदेश में जीत की चाबी हैं यह हस्तिनापुर सीट। गंगा नदी के किनारे बसा हुआ यह शहर मेरठ जिले में आता हैं। यहां कहते है कि जिस पार्टी का विधायक हस्तिनापुर विधान सभा सीट से आता है, उस पार्टी की सरकार प्रदेश में बनती है। लेकिन एक विडम्बना है कि आजादी के 67 सालों के बाद भी इस क्षेत्र में आज तक रेलवे लाइन नहीं बिछ पाई।

यहां नहीं पड़ता जात-पात के नाम पर वोट
यूपी की सबसे बड़ी दिक्कत है कि यहां धर्म, जात के आधार पर वोट मांगे जाते है। लेकिन हस्तिपुर सीट इसमें भी अलग है। इस सीट पर धर्म और जाति के आधार पर वोटों का धुव्रीकरण नहीं होता है। इसके चलते कई पार्टियों के अच्छे उम्मीदवार चुनावी मैदान में भाग्य आज़माने से कतराते हैं। हस्तिनापुर विधानसभा में कुल 3 लाख 22 हजार वोटर है। इनमें से 60 हजार गुर्जर, 75 हजार अनुसूचित जाति, 70 हजार मुस्लिम, जाट 30 हजार, 20 हजार पंडित और बाकि अन्य हैं।

यह है पिछले रिकार्ड
भारत के आजाद होने के बाद सन 1952 में पहली बार यूपी राज्य प्रभाव में आया। लेकिन उस समय हस्तिनापुर सीट नहीं था। यह सीट 1957 से अस्तित्व में आया। तब से ही यह तिलिस्म जारी हैं।
– साल 1957 से लेकर 1968 तक लगातार कांग्रेस पार्टी के विधायक इस सीट से चुने गये और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी।
-साल 1968 में चरन सिंह के मुख्यमंत्री बनने पर भारतीय क्रांति दल के विधायक ने यह सीट जीत ली।
– 1974 में फिर यह सीट कांग्रेस ने जीती है प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनीं।
– 1977 से लेकर 1993 तक में जनता पार्टी और कांग्रेस ने इस सीट काबिज रहीं।
– 2002 में सपा की सरकार बनीं और यह सीट भी सपा ने जीती ।
– 2007 में मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर यह सीट बसपा के पास चली गई।
– 2012 में सपा ने यह सीट जीती और एक बार फिर प्रदेश में सपा की सरकार बनीं।

प्राचीन संबंध है इस शहर का
इस शहर के इतिहास की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं और महाकाव्यों के अनुसार हस्तिनापुर, कौरवों की राजधानी हुआ करती थी।पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां पांडवों और कौरवों के बीच होने वाला महान युद्ध, महाभारत यहीं हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीते थे और उन्होंने यहां 36 साल तक राज किया था।

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