संगम नगरी इलाहाबाद की सबसे बड़ी पहचान गंगा और यमुना नदियों के संगम को लेकर है। इन्हीं दोनों नदियों के मिलान को लेकर विश्वभर में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती है, लेकिन अब भी यहां की हिस्ट्री में कई ऐसे रहस्य छुपे हैं, जिसके बारे में कम ही चर्चा की जाती है।
इन्हीं रहस्यों में से एक है। इलाहाबाद के यमुना नदी पर बना पुराना पुल। आपको बता दें कि ब्रिटिश हुकूमत ने यमुना नदी पर इस पल का निर्माण करवाया था, जिसे बने अब पूरे 162 साल हो गए हैं। लेकिन इसके रहस्य को जितना सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है। वह उतना ही उलझता जा रहा है।
कहा जाता है कि इसके निर्माण के वक्त यहां पर बलि दी गई थी और यही वजह थी कि जब यमुना पर नए पुल का निर्माण होने लगा तो लोगों में यह अफवाह फैली थी कि अपने लड़कों को बचा कर रखिए वर्ना उन्हें पुल में बलि देने के लिए उठाया जा सकता है।
खैर, इस बारे में कोई भी चर्चा करने के पहले आपको इस पुल के बारे में बता दें तो बेहतर है। अग्रेंजो के जमाने में इस पुल का निर्माण 44 लाख 46 हजार 300 रुपए में हुआ था और यह नायाब इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है। इस पुल से आज भी 400 से भी ज्यादा ट्रेनें गुजरती हैं।
-इस पुल का निर्माण कार्य पहले स्वतंत्रता संग्राम के पहले 1855 में शुरू हुई थी। जो कि छ साल में बनकर तैयार हो गया और 3150 फीट लंबे इस पर आवागमन की शुरूआत ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर सिवले की देखरेख में 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ।
-पुल में 14 लाख, 63 हजार, 300 रुपए के लोहे के ठोस गार्डर लगाए गए है। निर्माण के समय इस पर सिर्फ एक लेन ही थी, जरुरत बढ़ी तो 1913 में इसका दोहरीकरण किया गया। जबकि इसी रीगार्ड रिंग 1929 में हुई।
-कहा जाता है कि इस पुल के निर्माण के दौरान कई मुशिकलें खड़ी हुई और यमुना के तेज बहाव के चलते पिलर नंबर 13 को बनाने में 20 महीने से भी ज्यादा का वक्त लग गया था। पुल का एक पिलर की डिजाइन एलीफैंट फुट मार्का (हाथी पांव) जैसी है।
-यहां के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि निर्माण कार्य के दौरान सुबह से लेकर देर रात तक मजदूर जितना कार्य करते शाम को वह बह जाता था। जिसका किसी को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। इसके बाद प्रयाग के एक जानकार तीर्थ पुरोहित ने कंपनी को सलाह दी थी कि जब तक यमुना में मानव बलि नहीं दी जाएगी। तब तक पुल निर्माण का कार्य पूरा नहीं होगा।
-इलाहाबाद के कई बुजुर्ग किवदंतियों के आधार पर दावा करते हैं कि तब पुल के निर्माण के दौरान यमुना में एक बलि दी गई। इसके बाद पिलर नंबर 13 तैयार हुआ। जो कि हाथी के पॉव के आकार का है। इस पिलर के निर्माण के लिए 9 फीट नीचे कर कुंआ खोदा गया। इसके बाद राख एवं पत्थर का फर्श बनाकर पिलर का निर्माण किया गया।
-हालांकि यहां पर हम स्पष्ट करते चलें कि यह केवल किवदंतियां हैं जिसका हम दावा नहीं करते हैं। हां, इंजीनियरिंग के नमूने पर इसे भारत के सबसे पुराने और मजबूत पुल की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
-बताते चलें कि आगरा का यमुना पुल, दिल्ली यमुना भी सेम इसी तर्ज और उसी वक्त बनाया गया था। इलाहाबाद का यह पुल आज भी हावड़ां और दिल्ली को रेलवे मार्ग से कनेक्ट करने का कार्य करता है। इसे ऐतिहासिक धरोहरों में भी शामिल किया गया है।