‘‘लहरो से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’’ 20 साल के मुस्तफा ने इन पंक्तियों को सच में भी साबित कर दिया है। इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया की फाउंडेशन परीक्षा में मुस्तफा ने ऑल इंडिया पहली रैंक हासिल की हैं। मुस्तफा सिबात्रा आज से पहले इन्हें कोई नहीं जानता था पर आज सभी छात्रों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। मुस्तफा के अलावा देशभर के टॉप 25 छात्र में 17 छात्र गुजरात से हैं।
20 साल के मुस्तफा सिबात्रा अहमदाबाद के रहने वाले हैं। उनके पिता स्कूल वैन के ड्राइवर है। मुस्तफा ने हर तरह की मुश्किलों से लड़ते हुए सीएस की परीक्षा में देश भर में पहली रैंक हासिल की। मुस्तफा का अब तक का सफर इस बात का उदाहरण है कि धैर्य और दृढ़ संकल्प से क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है। मुस्तफा कहते हैं,‘ आज जो कुछ भी हूं और जहां तक पहुंचा हूं इन सब के पीछे मेरी कड़ी मेहनत और माता-पिता का आर्शीवाद है।’ मुस्तफा हर दिन लंबा सफर तय करके अपनी क्लास जाते थे। वह कहते हैं, ‘मैं हर दिन 2 बस बदलकर इंस्टिट्यूट पहुंचता हूं। इसमें मुझे करीब 2 घंटे का वक्त लगता है। और इतना ही वक्त मुझे घर वापस जाने में भी लगता है।’
अपने बेटे की इस सफलता पर पिता मुफ्फदल सिबात्रा कहते हैं, ‘हम पर किसी का कोई कर्ज नहीं है। यह सब मेरे बेटे की कड़ी मेहनत का नतीजा है क्योंकि वह जानता कि पढ़ाई करना कितना महत्वपूर्ण है।’ मां फातिमा की आंखों से आंसू बहने लगे वह कहती हैं, ‘मुस्तफा के पिता को डायबीटीज है और इतने कम पैसे में सबकुछ देख कर चलना मुश्किल होता है, लेकिन हमने कभी मुस्तफा की राह में आर्थिक स्थिति को बाधा नहीं बनने दिया। आज मैं अपने बेटे पर बहुत गर्व महसूस करती रहीं हूं। क्योंकि उसकी कड़ी मेहनत रंग लाई है।’
हालांकि जिस स्कूल में मूस्तफा ने अपनी पढ़ाई की है, उनके पिता भी उसी स्कूल में वैन सर्विस चलाते है। आज मुस्तफा सहजानंद कॉलेज में बी कॉम सेकेंड ईयर की पढ़ाई कर रहा है। मुस्तफा के पास कम्प्यूटर नहीं होने से वह अपने सारे ऑनलइन काम या उनके मोबाइल पर करते या किसी और के यहां जा कर करना पड़ता था।
सूत्रों के मुताबिक आईसीएसआई के चेयरमैन जिग्नेश शाह से स्कॉलरशिप के बारे में पूछने पर वह कहते है, ‘रजिस्ट्रेशन 8500 रू. का खर्च उन्हें खुद से वहन करना होगा, हम कोशिश करेंगे कि उनकी कमिटी मीटिंग में 24 हजार रू. की ट्यूशन फीस माफ कर दी जाए।’