हैप्पी फादर्स डे: आसान नहीं सिंगल फादर बनने का सफर
सिंगल पैरेंट होना अपने आप में बड़ी चुनौती है और ये चुनौती और बड़ी साबित हो सकती है अगर पैरेंट एक पुरूष है…यानि की पापा। लोगों के लिए सिंगल पैरेंटहुड थोड़ा महंगा साबित हो सकता है। मसलन एक महिला के लिए घर और बाहर की जिममेदारी निभा पाना कुछ हद तक आसान रहता है कारण कि उसे अमूमन ये सब काम करने की आदत होती है, वहीं इसके उलट पुरूषों को हमेशा से ही केवल बाहरी कामों के लिए दक्ष बनाने की कवायद चली आ रही है। ऐसे में किसी भी स्थिति में सिंगल फादर के लिए यह चुनौतीपूर्ण सफर होता है। इसलिए कहा भी जाता है कि सिंगर फादर होना सिंगल मदर के मुकाबले बहुत कठिन है।
सिंगल फादर को नहीं मिलता बच्चा गोद-
हालांकि सिंगल मदर होना और बच्चे को पालना एक बहुत ही मुश्किल काम है, लेकिन भारतीय पुरूष इनमें पीछे नहीं है, बच्चों की छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने से लेकर घर की एक -एक चीज का ध्यान रखना उन्हें बखूबी आता है। लेकिन अगर बात बच्चा गोद लेने की हो तो मामला कुछ मुश्किल हो जाता है। भारत में गोद लेने की प्रोसेस सिंगल पैरेंट्स के लिए कुछ जटिल है और सिंगल फादर के लिए तो बहुत ही मुश्किल।
बेटी को गोद लेना आसान नहीं-
सिंगल फादर केवल एक मेल बच्चे यानि कि एक लड़के को गोद ले सकता है , इस भारत का विवरण भारतीय हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एकट 1956 के तहत दिया गया है। वह किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता। टीवी एकटर राजीव खंडेलवाल ने एक बार एक लड़की गोद लेने की याचिका दायर की थी, लेकिन उसे इस बात पर खारिज कर दिया गया कि वे अब तक सिंगल हैं। हालांकि अभिनेता राहुल बोस ने अंडमान निकोबार की एक चैरिटी से छह बच्चों को गोद लिया लेकिन वे सभी लड़के हैं।
कई याचिकाएं पड़ी है लंबित-
आंकड़े बताते हैं कि कई अदालतों में सिंगल पैरेंट विशेषकर सिंगल फादर के बच्चों को गोद लेने की याचिकाएं लंबित पड़ी हैं। शायद ही आने वाले समय पर इनमें कोई सुनवाई हो।
बच्चों को दोनों का प्यार मिलना थोड़ा मुश्किल-
इस संबंध में काउंसलर अलग-अलग तर्क देते हैं। काउंसलर सुषमा अवस्थी का मानना है कि सिंगल फादर होना ज्यादा मुश्किल इसलिए है कयोंकि पिता अकसर गुस्सैल स्वभाव के होते हैं और कई बार अनजान भी। उन्हें कम मालूम होता है कि बच्चों को कम डांटना है और कब प्यार करना है । उनके लिए बच्चे को मां और बाप दोनों का प्यार देना बहुत मुश्किल होता है। हालांकि इसके विपरित कुछ ऐसे पापा भी हैं जो बच्चों को मां के न होते हुए बखूबी पाल रहे हैं और वे इन बातों को एक सिरे से नकार देते हैं।
सिंगल पैरेंट होने के अनुपात में हो रहा इजाफा-
हाल ही में पुरूषों के सिंगल पैेरेंट होने के अनुपात में इजाफा हुआ है। इसमें एक बात तो साफ हो चुकी है कि पुरूषों के अंदर महिलाओं के काम करने में अब कोई शर्म नहीं रही, यह एक पॉजिटिव सोच है जो इस बात की तरफ इशारा करती कि पुरूष अब जानते हैं कि हर काम हर कोई कर सकता है। काम जेंडर बायस्ड नहीं, वह महिला और पुरूष दोनों के लिए बराबर है।
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