Monday, August 14th, 2017
Flash

आखिर क्या बला है ये इंसेफिलाइटिस, जिससे गोरखपुर में हुईं 63 दर्दनाक मौतें




Health & Food

Sponsored

गोरखपुर के बीआरडी हॉस्पीटल में मरने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक मरने वालों की संख्या 33 हो गई है। बताया जा रहा है कि इंसेफिलाइटिस से एक और दर्दनाक मौत हो गई है। ऐसे में हम आपको बता देते हैं कि इंसेफिलाइटिस नाम की ये बीमारी आखिर बला क्या है। कैसे होती है ये बीमारी, क्या हैं इसके लक्षण।

वैसे तो इस बीमारी की चपेट में सभी उम्र  के लोग आ सकते हैं। लेकिन ज्यादातर ये बीमारी बच्चों को अपना शिकार बना रही है। वायरल इंफेक्शन की वजह से ये बीमारी हो रही है। गंभीर हो चुके इस मामले की वजह से विपक्ष सरकार के निशाने पर है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस हादसे की वजह से सीएम योगी का इस्तीफा तक मांग चुके हैं। उनका आरोप है कि अस्पताल में ऑक्सीजन  की सप्लाई कम होने की वजह से बच्चों की मौत हुई है। वहीं डॉक्टर्स इन आरोपों को खारिज कर रहे हैं।

कैसे फैलती है ये बीमारी –

इंसेफिलाइटिस नाम की इस बीमारी के फैलने के बाद शरीर पर कई तरह के इंफेक्शन सामने आने लगते हैं। इंसेफिलाइटिस, क्यूलेक्स मच्छर के काटने की वजह से होता है। इस बीमारी को ‘तेज दिमागी बुखार’ भी कहते हैं। मेडिकल न्यूज टुडे वेबसाइट के मुताबिक ये तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है, जिसमें मरीज के लिए तुरंत स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत होती है। कभी-कभी इस बीमारी के बढ़ने की वजह ये होती है कि खुद दिमाग का एम्यून सिस्टम दिमागी टिशूज पर हमला करने लगते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मामलों में बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से भी ये बीमारी होती है। ये छुआछूत से फैलने वाली बीमारी नहीं है।

क्या है जापानी इंसेफिलाइटिस
भारत में इस बीमारी के फैलने का मुख्य टाइप जापानी इंसेफिलाइटिस है। । जो कि मच्छर से फैलने वाला वायरस है। क्यूलेक्स मच्छर से फैलने वाली इस बीमारी का वायरस डेंगू के मच्छर जैसा ही होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक जेईवी प्राथमिक तौर पर बच्चों में फैलता है।

इंसेफिलाइटिस के लक्षणों में सिरदर्द मुख्य रूप से शामिल हैं। 250 में से एक केस ऐसा हो सकता है कि ये बीमारी इंसान के लिए खतरनाक साबित हो जाए। इस स्थिति में तेज बुखार, सिरदर्द और ज्यादा से ज्यादा मरीज कोमा में भी जा सकता है।

क्या है इलाज
इसके लक्षणों की वजह से एकदम से इस बीमारी को पहचानना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल होता है। इंसेफिलाइटिस का पता लगने के बाद डॉक्टर्स की कोशिश ये होती है कि वो ये पता करें ये दिमागी बुखार वायरल इंफेक्शन की वजह से हुआ है या किसी और कारक से। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वॉयरल फॉर्म में होने वाली इस दिमागी बुखार का इलाज संभव नहीं है, ऐसी स्थिति में डॉक्टर्स इसके लक्षणों का इलाज करते हैं।

इंडियन काउन्सिल ऑफ रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक जैपनीज इंसेफिलाइटिस वायरस की पहचान 1955 में भारत में हुई थी। जिसमें पहली बार तमिलनाडु के जिले में इस तरह का केस देखने को मिला था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1972 तक पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, गोवा जैसे राज्यों में ये बीमारी फैल चुकी थी।

दक्षिण भारत में सामने आई ये बीमारी 16 साल के कम उम्र के बच्चों में हुई थी। वहीं उत्तर भारत में हर उम्र के लोगों को ये बीमारी हुई थी। 2012 तक इंसेफिलाइटिस के 272 मामले ओडिशा से सामने आए जिसमें 24 की मौत हुई थी। 2014 में बीमारी से 550 लोगों की मौत की खबर सामने आई।

 

Sponsored



Follow Us

Youthens Poll

‘‘आज़ादी के 70 साल’’ इस देश का असली मालिक कौन?

    Young Blogger

    Dont miss

    Loading…

    Subscribe

    यूथ से जुड़ी इंट्रेस्टिंग ख़बरें पाने के लिए सब्सक्राइब करें

    Subscribe

    Categories