गणपति बप्पा सबके प्रिय हैं। ये अपने भक्तों के बीच कई नामों से पूजे जाते हैं। जितने रोचक इनके नाम हैं, उतनी ही रोचक हैं उनके नामों से जुड़ी कथाएं हैं। भगवान गणेश का एक ऐसा ही नाम है एकदंत। इनके इस नाम के पीछे एक नहीं, तीन कथाएं प्रचलित हैं। इनके एकदंत कहलाने की कथा का वर्णन भविष्य पुराण में मिलता है, जिसके अनुसार छोटेपन में इनके नटखटपन से परेशान होकर इनके बड़े भाई कार्तिक ने इनका एकम दांत तोड़ दिया था।
दूसरी कथा के अनुसार परशुराम जी के फड़से से इनका दांत टूटा था। इसके अलावा एक तीसरी और रोचक कथा भी है जो महाभारत से जुड़ी है। महाभारत श्रीगणेश ने लिखी है, ये तो सभी जानते हैं, लेकिन इसे लिखने से पहले उन्होंने वेदव्यास से एक शर्त रखी थी इसके बारे में शायद ही कोई जानता हो। इस शर्त से ही जुड़ी है गणेशजी के एकदंत कहलाने की रोचक कहानी।
दरअसल, महाभारत लिखने के लिए वेदव्यासजी ऐसा लेखक चाह रहे थे, जो उन्हें विचारों को बीच में रोके नहीं। इसलिए डन्होंने श्रीगणेशी को महाभारत लिखने के लिए कहा। गणेशजी ने उनकी बात तो मान ली, लेकिन एक शर्त रखी। उन्होंने वेदव्यास जी से कहा कि इस महाकाव्य को लिखते समय मेरी लेखनी पलभर के लिए भी न रूके, तो ही मैं इसे लिखूंगा। वेदव्यास ने उनकी शर्त मानी और कहा कि -मैं जो बोलू आपन उसे बिना समझे मत लिखना। इस तरह दोनों आमने-सामने बैठकर अपना-अपना काम करने लगे। लेकिन इसी बीच वेद व्यास ने गणेशजी का घमंड चूर करने के लिए तेज गति से कथा बोलना शुरू किया, जिस कारण गणेशजी की कलम टूट गई। इस स्थिति से हार न मानते हुए गणेशजी ने अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे स्याही में डुबोकर लिखना जारी रखा। तब वेद व्यास समझ गए कि गणेशजी की बुद्धि का कोई मुकाबला नहीं और फिर उन्होंने गणेशजी को नया नाम एकदंत दिया।
कहा जाता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तीन वर्ष का समय लगा।इन तीन वर्षों में गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की।