जनसंख्या के मान से हमारा देश युवा है। युवाओं की हर क्षेत्र में भागीदारी भी बढ़ती जा रही है। ये सब तो प्राकृतिक परिवर्तन और जीवन परिवर्तन की एक सतत प्रक्रिया है किन्तु किसी भी देश के विकास में सिर्फ युवा होना, युवाओं का हर क्षेत्र में भागीदार होना भी जरूरी नहीं होता है। जब तक हमारी सोच में युवापन नहीं आएगा तब तक सिर्फ प्राकृतिक परिवर्तन होता रहेगा, बदलाव नहीं आएगा। बदलाव सिर्फ साधनों का नहीं चाहिए, मानसिकता का भी चाहिए, मन की स्वच्छता का भी चाहिए।
युवा सोच के परिवर्तन से ही दुनिया में तेज गति से बदलाव आये हैं वरना परिवर्तन तो होता था किन्तु बहुत ही धीरे-धीरे सदियों में बदलाव आता था। आज इस तीव्र गति से बदलाव की वजह से सिर्फ साधनों में ही नहीं वरन जीवन शैली में भी परिवर्तन हुआ है। हमारे सोचने, समझने, निर्णय लेने में भी परिवर्तन आया है। अब समाज पुरूष प्रधान न होकर महिलाओं को भी विकास की पूरी स्वतंत्रता देता है। यही वजह है कि आज के दौर में महिलाओं ने हर क्षेत्र में सफलता के परचम गाड़े हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर कैरियर तक में लड़कों के साथ लड़कियों के लिए भी नए दरवाजे खुल चुके हैं। परिवार से बाहर निकल खेल से लेकर समाज, राजनीति, आर्थिक जगत सभी में महिलाओं का योगदान तेजी से बढ़ा है, जिसे हर वर्ग ने सराहा है और आगे बढ़ने में मदद कर भी रहे हैं।
इस खुलेपन की सोच ने सभी को आगे बढ़ने से लेकर भागीदार होने तक का कार्य पूरा कर लिया किन्तु देश विकास में आज भी अनेक अड़ंगे हैं, जिनकी वजह से हमें पूर्ण विकसित होने में समस्या आ रही है। मसलन भ्रष्टाचार, कालाधन, राजनीतिक पैंतरेबाज़ी, धार्मिक दंगे-फसाद, आतंकवाद इत्यादि। यदि हम गौर से देखें तो इन सभी समस्याओं के मूल में राजनीति के प्रति राजनीतिक लोगों की हल्की मानसिकता ही नज़र आती है। यहां आज भी हमारी बूढ़ी हो चुकी मानसिकता काम कर रही है जिसकी वजह से समस्याएं विकाराल रूप धर विकास को अवरूद्ध कर रही हैं। यदि हम इसके सुधार के प्रति कटिबद्ध हो जाए तो हम सही मायने में विकास के उच्च स्तर को छू सकते हैं। आम जनता से लेकर न्यायलय ने, चुनाव आयोग ने सुधार के लिए अनेक कदम उठाए हैं। हमारे प्रधानमंत्रीजी ने भी इसके प्रति इच्छा प्रदर्शित की है किन्तु सिर्फ इच्छा ही दिखाई है, कोई ठोस कदम उनके पास भी नहीं हैं। कालेधन के नाम पर 56 इंच का सीना, नोटबंदी कर जनता में हाहाकार पैदा कर दिखा दिया किन्तु आज भी राजनीतिक दलों द्वारा, सरकार के द्वारा ऐसा एक भी निर्णय नहीं लिया गया जिससे ये प्रतीत हो कि वे इसके प्रति ंगंभीर भी है। वहां तो 18 इंच का सीना भी नज़र नहीं आता है। अन्य राजनीतिक दल भी सरकार के इस सुर में सुर मिलाते नज़र आते हैं।
सरकारी सुविधाओं को लेने में वे पल भी नहीं लगाते, सभी एक स्वर हो जाते हैं, किन्तु चाहते हैं कि जनता सुविधाएं छोड़े। चुनावी चंदा हो या राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने की बात, स्वयं पर कोई अंकुश नहीं चाहती है। चुनावी सुधार की बात पर भी आज भी सभी दल धर्म-जाति के नाम पर लड़े जा रहे हैं, घोटालों में सभी भागीदार नज़र आते हैं। जनता के खून-पसीने की कमाई को पानी की तरह बहाकर भ्रष्टाचार, कालाधन वे स्वयं पैदा करते हैं जिसकी वजह से सभी दल अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं। ऐसी सभी बातों पर ध्यान दें तो राजनीति ही एक ऐसा बड़ा कारण है जहां सिर्फ युवा भागीदारी ही काफी नहीं है, युवाओं की गंभीर सोच भी जरूरी है तभी हम निर्णय लेने में विकास के चरम को छू पाएंगे। जय हिन्द।