भूकंप… इस महाविनाश के मायने समझें युवा वर्ग
By Abhishek Mehrotra
मंगल पर बस्तियां बसाने और चांद पर घूमने जाने की तैयारियों में लगा इंसान और विशेषकर आज का युवा वर्ग विज्ञान के बल पर हासिल अपनी असीम शक्तियों पर इतरा रहा है। समय-समय पर कुदरत अपने कहर से उसे उसके असली कद की याद दिलाती है लेकिन तकनीक के विकास ने इंसान को इतना सक्षम बना दिया है कि वो अब बड़ी से बड़ी प्राकृतिक आपदाओं को भी झेल जाने और जानमाल का कम से कम नुकसान होने देने के काबिल हो चुका है। इसके बावजूद एक प्राकृतिक आपदा ऐसी है जिसके सामने विज्ञान भी हार मान जाता है और इंसान के पास सिवाय प्रार्थना के और कोई चारा नहीं बचता। ये आपदा है भूकंप यानी जलजला जो जब अपने रौद्र रूप में आता है तो बचता है सिर्फ तबाही का तांडव और मौत का मातम।
ऐसे में आज के युवा जो ऐश-ओ-आराम के चक्कर में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की सीमा को पार कर चुके हैं, उन्हें समझना ही होगा कि अब वो समय आ गया जब युवा शक्ति को प्राकृतिक चुनौतियों के गहन अर्थों को समझकर कैसे उससे पार पाया जा सकता है, पर काम करना होगा। आज के युवाओं को प्रकृति के अनुरूप ही कदम उठाने होंगे। आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में जुटे युवा वर्ग को अब समझना होगा कि अगर ये दुनिया की सुरक्षित नहीं रहेगी, तो सफलता के मापन और मायने बेमतलब ही सिद्ध होंगे।
दरअसल अप्रैल के इस महीने में धरती का व्यवहार चौंकाने वाला रहा है। अफगानिस्तान, जापान,इक्वाडोर में बड़े भूकंप आए। वैज्ञानिकों की मानें तो ये भूकंप 2015 में नेपाल में आए 7.9 तीव्रता के भूकंप से भी बड़े भूकंप की आहट हैं। नेपाल में आए भूकंप ने इस देश को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। आठ हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। ऐसा ही भूकंप अब फिर आ सकता है। इसकी वजह भी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के नीचे की टेक्टोनिक प्लेट्स में बहुत ज्यादा ऊर्जा जमा हो गई है। ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के जरिए धीरे-धीरे निकल रही है लेकिन ये छोटे भूकंप इस ऊर्जा को पूरी तरह निकाल नहीं पा रहे इसलिए जमीन के भीतर दबी ऊर्जा को निकालने के लिए धरती महाभूकंप का सहारा ले सकती है।
ये महाभूकंप रिक्टर पैमाने पर 9 की तीव्रता से ज्यादा का हो सकता है। तब जो मंजर होगा उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। धरती पर इंसान ने पिछले 100 सालों से भूकंप का लेखा-जोखा रखना शुरू किया है। इस दौरान बड़े-बड़े भूकंपों ने तबाही मचाई लेकिन कभी भी 10 तीव्रता का भूकंप नहीं रिकॉर्ड किया गया। वैज्ञानिकों की मानें तो ये भी एक बड़ी वजह है कि आने वाले वक्त में 10 तीव्रता का भूकंप आने की आशंका जताई जा रही है।
भूकंप से एक बार फिर पूरी दुनिया खौफ में है। इसकी वजह है दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक आए तीव्र भूकंप। वैज्ञानिक चिंता में हैं तो सरकारें दहशत में। धरती के इस तरह बार-बार डोलने को महाविनाश की आहट माना जा रहा है। ऐसा महाविनाश जो इसी महीने सैकड़ों-हजारों जिंदगियों को चपेट में लेने की कूवत रखता है। ये लोग किस देश के, किस इलाके के होंगे ये कोई नहीं जानता लेकिन इतनी भविष्यवाणी तो की ही जा रही है कि जो आपदा इनके सिर पर मौत बनकर खड़ी है वो पिछले साल नेपाल में आए भूकंप जैसी विनाशकारी हो सकती है।
ठीक पांच साल पहले मार्च 2011 में समंदर के नीचे धरती में हलचल हुई और दुनिया ने बड़ी बर्बादी देखी। जापान में 9 तीव्रता का भूंकंप आया, तो चंद सेकेंड बाद समंदर से उठी 10 मीटर से ज्यादा ऊंची लहरों ने हजारों बस्तियों को बर्बाद कर दिया। सुनामी की लहरों में तीन लाख से ज्यादा इमारतें बह गईं।चार हजार से ज्यादा सड़कों का नामो-निशान मिट गया। इस भूकंप की तीव्रता 9 नापी गई और जापान के परमाणु केंद्र भी इसे झेल नहीं पाए। त्रासदी में करीब 16 हजार लोगों की मौत हुई थी। अब पांच साल बाद जापान की सरकार और वहां के लोग खौफ से भरे हुए हैं। ये खौफ है बहुत बड़े भूकंप का। इस खौफ का ही नतीजा है कि जापान ने अपने ढाई लाख लोगों को राहत शिविरों में पहुंचा दिया है।
हर तरफ अलर्ट है…सरकार चौकन्नी है…। सिर्फ भारत ही नहीं, जापान ही नहीं, म्यांमार, इंडोनेशिया से लेकर अमेरिका तक वैज्ञानिक बिरादरी जमीन के भीतर जारी हलचलों पर निगाह रखे हुए हैं। तमाम आंकड़ों के अध्ययन के बाद कोलोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि 6 से 7 तीव्रता के आ रहे लगातार भूकंप एक बहुत बड़े जलजले की आशंका पैदा कर रहे हैं।अनुमान है कि 8 तीव्रता के चार बड़े भूकंप आ सकते हैं। ये भूकंप इसी महीने आ सकते हैं।
हम भी हैं खतरे में
पिछले हफ्ते हिंदुकुश इलाके में भूकंप आने के बाद पूरे उत्तर भारत में झटके महसूस किए गए। लोग तभी से ये चर्चा कर रहे हैं कि आखिर अप्रैल के महीने में भूकंप बार-बार क्यों आ रहा है। चिंता तो दिल्ली के लोगों को भी है कि अगर देश की राजधानी में इतनी तीव्रता का भूकंप आ गया तो क्या होगा। दिल्ली पर भूकंप की आशंका से तबाही मचने की वजहें भी हैं।
भारत को भूकंप के क्षेत्र के आधार पर चार हिस्सों सिस्मिक जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5 में बांटा गया है। जोन 2 सबसे कम और जोन-5 सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। जोन 5 में जम्मू-कश्मीर,उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से आते हैं। उत्तराखंड के निचले हिस्से, उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तथा राजधानी दिल्ली जोन-4 में आती हैं। मध्य भारत जोन-3 में दक्षिण भारत के इलाके आते हैं।
साफ है कि दिल्ली दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में है। दिल्ली फाल्ट लाइन यानी जमीन के नीचे भूकंप के लिहाज से सक्रिय तीन इलाकों की सरहद पर बसी है। ये फाल्ट लाइन हैं सोहाना फाल्ट लाइन, मथुरा फाल्ट लाइन। दिल्ली-मुरादाबाद फाल्ट लाइन। लंबी रिसर्च के बाद आईआईएससी यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिक भी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और उत्तरकाशी के इलाकों में भयंकर भूकंप आने की चेतावनी दे चुके हैं यानी करीब-करीब पूरा उत्तर भारत भूकंप की चपेट में आ सकता है।
भूकंप की आशंका की वजह जमीन के नीचे भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट में चल रही जबरदस्त रस्साकशी है। पिछले कुछ साल में भारत, पाकिस्तान, ईरान, चीन और आसपास के इलाकों में बार-बार आ रहे भूकंप की वजह भी यही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती में मीलों नीचे भारतीय प्लेट यूरेशिया प्लेट की ओर 45 मिलीमीटर प्रति साल की दर से खिसक रही है। इन दोनों प्लेट्स की इसी रगड़ या दुश्मनी का नतीजा है हिमालय पर्वत। धरती खिसकती रही और पर्वत बनता रहा। अब यही पर्वत आने वाले दिन में बड़ी तबाही की वजह भी बन सकता है। 2012 में छपी एक रिसर्च के मुताबिक हिमालय के केंद्रीय हिस्से में रिक्टर स्केल पर 8 से 8.5 की तीव्रता के कई भूकंप आ चुके हैं। हिमालय का ये हिस्सा ऐसे बड़े भूकंपों की अनगिनत संभावनाएं लिए हुए है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप की पूरी भविष्यवाणी तो संभव नहीं है लेकिन ये जरूर पता लगाया जा सकता है कि धरती के नीचे किस इलाके में किन प्लेट्स के बीच हलचल ज्यादा है और किन प्लेट्स के बीच ज्यादा ऊर्जा पैदा होने की आशंका है।
क्यों आता है भूकंप, कैसे मापी जाती है भयावहता
धरती की ऊपरी सतह सात टेक्टोनिक प्लेटों से मिल कर बनी है. जहां भी ये प्लेटें एक दूसरे से टकराती हैं वहां भूकंप का खतरा पैदा हो जाता है. हिमालय के इर्दगिर्द का हिस्सा इंडियन प्लेट कहा जाता है अफगानिस्तान की ओर जाने वाला हिस्सा यूरेशिया प्लेट कहलाता है वहीं उसके बगल में अरब प्लेट और अफ्रीकी प्लेट भी हैं। भूकंप तब आता है जब इन प्लेट्स एक दूसरे के क्षेत्र में घुसने की कोशिश करती हैं, प्लेट्स एक दूसरे से रगड़ खाती हैं, उससे अपार ऊर्जा निकलती है, और उस घर्षण या फ्रिक्शन से ऊपर कीधरती डोलने लगती है, कई बार धरती फट तक जाती है, कई बार हफ्तों तो कई बार कई महीनों तक ये ऊर्जा रह-रहकर बाहर निकलती है और भूकंप आते रहते हैं…इन्हें आफ्टरशॉक कहते हैं।
भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर मापी जाती है। जिसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। इसे1935 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी के चार्ल्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से खोजा था। भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है। हर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 10 गुना और उससे निकलने वाली ऊर्जा 32 गुना बढ़ जाती है।
दुनिया में आए 10 सबसे बड़े भूकंप
22 मई 1960 को वाल्डिविया, चिली में भूकंप की तीव्रता 9.5 नापी गई थी। सुनामी लहरों ने चिली समेत हवाई, जापान, फिलीपींस, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया तक में तबाही मचाई। सबसे ज्यादा असर चिली के वाल्डिविया शहर में हुआ।
27 मार्च 1964 को अलास्का, अमेरिका में भूकंप की तीव्रता 9.3 मापी गई। अलास्का में उस दिन 4 मिनट38 सेकंड तक धरती हिलती रही। भूकंप ने अलास्का का नक्शा ही बदल दिया।
26 दिसंबर 2004 को दक्षिण भारत में भूकंप की तीव्रता 9.2 मापी गई। इस दिन समंदर ने भारत के कई शहरों में मौत का तांडव किया। सुनामी लहरों ने मौत का ऐसा विकट जाल बिछाया जिसमें हजारों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई।
26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में भूकंप की तीव्रता 7.7 मापी गई। इससे पूरा शहर ही मानो मलबे के ढेर में तब्दील हो गया। कच्छ और भुज में 30 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। डेढ़ लाख से ज्यादा लोग जख्मी हुए और करीब 4 लाख मकान जमींदोज हो गए।
12 जनवरी 2010 को हैती में भूकंप की तीव्रता 7 मापी गई। सबसे ज्यादा तबाही राजधानी पोर्ट ओ प्रिंस में मची। भूकंप के बाद 52 ऑफ्टर शॉक्स महसूस किए गए। इस भूकंप ने एक लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली।
27 फरवरी 2010 को बायो-बायो, चिली में भूकंप की तीव्रता – 8.8 मापी गई। इस भूकंप ने चिली की 80फीसदी आबादी को प्रभावित किया था। इस भूकंप का दायरा इतना बड़ा था कि चिली के आसपास के सभी देशों में झटकों को महसूस किया गया।
8 अक्टूबर 2005 को पाकिस्तान के क्वेटा में भूकंप की तीव्रता 7.6 मापी गई। एक ही झटके में 75 हजार से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा गए। करीब 80 हजार लोग घायल हुए और 2 लाख 80 हजार लोग बेघर हो गए।
11 अप्रैल 2012 को सुमात्रा, इंडोनेशिया में भूकंप की तीव्रता 8.6 मापी गई। भूकंप का केंद्र जमीन से काफी नीचे होने की वजह से तबाही वैसी नहीं हुई जिसकी आशंका जताई जा रही थी।
11 मार्च 2011 को जापान में भूकंप की तीव्रता 9 मापी गई। सुनामी की लहरों में तीन लाख से ज्यादा इमारतें बह गई। चार हजार से ज्यादा सड़कों का नामो-निशान मिट गया। त्रासदी में करीब 16 हजार लोगों की मौत हुई थी।
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भूकंप की तीव्रता 8.1 मापी गई। 8000 से अधिक मौतें हुईं और 2000 से अधिक लोग घायल हुए। भूकंप के झटके भारत, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान तक महसूस किए गए।
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