मानवता की कोख पर गिरे परमाणु बम
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अमेरिका ने 6 अगस्त व 9 अगस्त को जो बम जापान पर गिराये वे बम दरअसल मनुष्यता की कोख पर गिरे थे. लाखों लोगों की जान लेने व दो शहरों को खत्म कर देने वाले उन बमों की गूंज पूरी दुनिया के कानों में आज भी गूंजती है.
आज यानी 6 अगस्त को हिरोशिमा पर परमाणु बम हमले की 71वीं बरसी है. इसके तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर बम गिराया गया था. इस हमले ने जापान की रीढ़ तोड़ दी. जापान अपनी जीजिविषा के चलते भले ही दोबारा उठ खड़ा हुआ लेकिन दुनिया उस खौफनाक मंजर को कभी भूल नहीं पायी. हर साल छह अगस्त की तारीख आते ही उन भीषण हमलों की याद ताजा हो जाती है.
बैकग्राउंड
जापान पर हुए परमाणु हमले की पृष्ठभूमि की बात करें तो दूसरा विश्वयुद्ध कम से कम यूरोप में तो समाप्त हो चुका था. लेकिन एशिया में वह चल रहा था. पर्ल हार्बर पर हमले के बाद से ही अमेरिका जापान पर खुन्नस खाये हुए था. जापान की कमर भी टूट चुकी थी लेकिन वह घुटने टेकने में टालमटोल कर रहा था.
अमेरिका ने 16 जुलाई 1945 को पहले यूरेनियम परमाणु बम का परीक्षण किया. बस फिर क्या था 25 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने फिलिप्पीन सागर में तैनात अमेरिका की प्रशांत महासागरीय वायुसेना के मुख्य कमांडर को आदेश दिया कि तीन अगस्त तक ‘विशेष बम’ के इस्तेमाल की तैयारी कर ली जाए. जिस विशेष बम – ‘लिटल बॉय’ – को तीन अगस्त को गिराने की बात ट्रूमैन कर रहे थे वह यूरेनियम बम था. लेकिन इसके साथ ही एक दूसरा बम ‘फैट मैन’ भी तैयार हो रहा था. यह प्लूटोनियम बम था जिसका पूर्ण परीक्षण अभी बाकी था. दोनों बमों में से कौन सा ज्यादा मारक क्षमता रखता है यह जानने के लिये इसे दो शहरों में गिराना जरूरी था. इसके लिये चार शहर चुने गये हिरोशिमा, क्योटो, कोकूरा व निईगाता.
हनीमून की याद से बचा क्योटो
नागासाकी शहर अमेरिकी निशाने पर था ही नहीं. लेकिन तत्कालीन युद्ध मंत्री स्टिम्सन के कहने पर क्योटो की जगह नागासाकी का नाम शामिल किया गया. दरअसल स्टिम्सन ने अपनी पत्नी के साथ क्योतो में कभी हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि उनकी यादों का खूबसूरत शहर खत्म हो जाये. इन बमों को गिराने के लिये यह दलील दी गयी कि जापान जल्द आत्मसमर्पण कर देगा. अमेरिका के लिए अपने सैनिकों की जान जरूरी थी. जापान ने जुलाई, 1945 में ओकीनावा की लड़ाई में 12,500 अमेरिकी सैनिकों का सफाया कर दिया था. तब तक पूरे प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में करीब 70 000 अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके थे.
6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर यूरेनियम वाला पहला परमाणु बम गिरा कर ट्रूमैन ने जता दिया कि वे जापान का कैसा विध्वंस चाहते हैं. सुबह आठ बज कर 16 मिनट पर ज़मीन से 600 मीटर ऊपर लिटिल ब्वाय नामक बम फूटा और 43 सेकंड के भीतर 80 प्रतिशत शहर राख हो गया. 10 लाख सेल्शियस तापमान वाला आग का एक ऐसा गोला तेज़ी से फैला, जिसने 10 किलोमीटर के दायरे में पेडों तक को जला डाला. शहर के76,000 घरों में से 70,000 तहस-नहस या क्षतिग्रस्त हो गये. 70,000 से 80,000 लोग तुरंत मर गये. जो लोगशहर के बीच में थे में थे उन के शरीर तो भाप बन गए.
जैसे यह सब पर्याप्त न हो, तीन ही दिन बाद 9 अगस्त को 11 बज कर दो मिनट पर नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया जिसका नाम था फैट मैन. यूरेनियम से भी कहीं अधिक विनाशकारी प्लूटोनियम वाले इस बम ने एक किलोमीटर के दायरे में 80 प्रतिशत मकानों को भस्म कर दिया. अनुमान है कि वहां भी70,000 से 80,000 हज़ार लोग मरे. दोनों बमों का औचित्य सिद्ध करने के लिए तर्क यह दिया गया कि उनके बिना जापान आत्मसमर्पण में टालमटोल जारी रखता.
क्या नागासाकी पर हमला जरूरी था?
जानकार कहते हैं कि जापान पर दो बम इसलिए गिराये गये क्योंकि अमेरिका के पास उस समय दो प्रकार के बम थे. यूरेनियम वाला बम हिरोशिमा पर गिराया गया और प्लूटोनियम वाला नागासाकी पर. यह दूसरा बम बहुत ख़र्चीला था और तब तक बिना परीक्षण का था. उसका गिराया जाना सीधे लड़ाई के मैदान में परीक्षण के समान था. जापान ने इस दूसरे बम के बाद 15 अगस्त, 1945 को अपनी हार मान ली थी और दो सितंबर को विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया.
Image Credit : www.dw.com
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